हमारे महासागरों में प्लास्टिक छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाता है, जिसके परिणामस्वरूप माइक्रोप्लास्टिक एक गंभीर पारिस्थितिक समस्या बन रहा है। वाइजमैन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के एक नए अध्ययन में माइक्रोप्लास्टिक के एक चिंता बढ़ाने वाले पहलू का पता चला है, जो 5 मिमी से अधिक छोटे कणों के रूप में पाया गया है। माइक्रोप्लास्टिक के कण समुद्र से हवा के द्वारा दूर-दराज के हिस्सों और वायुमंडल में मिल रहे हैं। विश्लेषण से पता चलता है कि इस तरह के महीन टुकड़े घंटों या दिनों तक हवा में रह सकते हैं, जिनकी समुद्री पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की आशंका बढ़ गई है और यह खाद्य श्रृंखला में मिलकर मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।
पृथ्वी और ग्रह विज्ञान विभाग के डॉ. मिरी ट्रेनिक ने कहा कि कुछ अध्ययनों से पानी के ठीक ऊपर वायुमंडल में माइक्रोप्लास्टिक होने का पता चला है। लेकिन हम पानी के ऊपर कुछ महीन कण पाकर आश्चर्यचकित थे।
समुद्र और हवा के बीच होने वाले संपर्क को समझने के लिए डिज़ाइन किए गए अध्ययनों पर कोरन और वर्डी कई वर्षों से काम कर रहे हैं। जिस तरह से महासागरों ने वायुमंडल से सामग्रियों को अवशोषित किया है, उसका अच्छी तरह से अध्ययन किया गया है। इसके विपरीत प्रक्रिया - एरोसोलिज़ेशन, जिसमें वाष्पशील, वायरस, अल्गल के टुकड़े और अन्य कण समुद्र के पानी से वायुमंडल में मिल रहे हैं, इनकी बहुत कम जांच की गई हैं।
इस प्रयास के रूप में तारा अनुसंधान पोत, जिसमें कई अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ता एक साथ थे, उन्होंने समुद्री जैव विविधता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए वेजमैन लैब में एरोसोल के नमूने एकत्र किए।
एयरोसोल नमूनों में फंसे हुए माइक्रोप्लास्टिक के कणों की पहचान करना और उन्हें मापना आसान था, क्योंकि माइक्रोस्कोप के बिना कणों को बाहर से देखना मुश्किल था। यह समझने के लिए कि प्लास्टिक किस तरह वातावरण में मिल रहा है, टीम ने उनके रासायनिक बनावट और आकार को निर्धारित करने के लिए संस्थान के रासायनिक शोध सहायता के डॉ. इडडो पिंकस की मदद से रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी माप की।
रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग आमतौर पर रसायन विज्ञान में एक संरचनात्मक फिंगरप्रिंट बनाने के लिए किया जाता है जिसके द्वारा अणुओं की पहचान की जा सकती है।
शोधकर्ताओं ने नमूनों में सामान्य प्लास्टिक के उच्च स्तर को पाया, जिसमें पॉलीस्टाइनिन, पॉलीइथाइलीन, पॉलीप्रोपाइलीन और अन्य का पता लगाया। फिर महासागरों के औसत हवा की दिशाओं और गति के साथ-साथ माइक्रोप्लास्टिक कणों के आकार और द्रव्यमान की गणना की। टीम ने दिखाया कि इन माइक्रोप्लास्टिक्स के स्रोत में प्लास्टिक बैग और अन्य प्लास्टिक कचरा होने के आसार थे, जो अक्सर किनारे पर छोड़ दिए जाते हैं, और ये सैकड़ों किलोमीटर दूर समुद्र में बहते रहते हैं।
जहां से नमूने लिए गए उन स्थलों के नीचे समुद्री जल की जांच करने से एरोसोल में उसी प्रकार की प्लास्टिक दिखाई देते हैं, जो इस बात का समर्थन करता है कि माइक्रोप्लास्टिक समुद्र की सतह पर बुलबुले के माध्यम से वायुमंडल में प्रवेश करता है या हवाओं द्वारा दूरदराज के भागों में पहुंच जाता है।
ट्रेनिक कहते हैं कि जब माइक्रोप्लास्टिक वातावरण में होते हैं, तो वे सूख जाते हैं और वे यूवी प्रकाश और वायुमंडलीय घटकों के संपर्क में होते हैं, जिसके साथ वे रासायनिक रूप से क्रिया करते हैं। इसका मतलब है कि इन कणों के महासागर में वापस मिलने से इनके और भी अधिक हानिकारक होने की आशंका होती है। यदि अब इन्हें किसी भी समुद्री जीव द्वारा निगला जाता है तो ये उनके स्वास्थ्य के लिए यह बहुत नुकसान दायक होगा। यह शोध कम्युनिकेशन्स अर्थ एंड एनवायरनमेंट नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
वर्डी कहते हैं, इससे भी बढ़कर इनमें से कुछ प्लास्टिक सभी प्रकार के समुद्री बैक्टीरिया के विकास के लिए मचान बन जाते हैं, इसलिए हवा में मिलने वाला प्लास्टिक कुछ प्रजातियों को मुफ्त की सवारी करवा सकता है, जिसमें रोगजनक बैक्टीरिया शामिल हैं जो मनुष्य और समुद्री जीवन दोनों के लिए हानिकारक हैं।
ट्रेनिक कहते हैं समुद्र के एरोसोल में माइक्रोप्लास्टिक की वास्तविक मात्रा हमारे माप से लगभग निश्चित रूप से अधिक हो सकती है, क्योंकि हमारी व्यवस्था आकार में कुछ माइक्रोमीटर से नीचे के कणों का पता नहीं लगा सकता था। उदाहरण के लिए प्लास्टिक के अलावा जो छोटे टुकड़ों में भी टूट जाते हैं, ऐसे नैनोकण हैं जो सौंदर्य प्रसाधन में उपयोग किए जाते हैं और जिन्हें आसानी से समुद्र में मिल जाते हैं, या समुद्र में माइक्रोप्लास्टिक के टूटने से ये बनते हैं।
प्लास्टिक के कणों के मामले में आकार का बहुत फर्क पड़ता है, इसलिए कि हल्के आकार वाले लंबे समय तक हवा में रह सकते हैं। जब वे पानी की सतह पर उतरते हैं, तो उनके छोटे समुद्री जीवों के द्वारा खाए जाने की अधिक आशंका होती है, जो निश्चित रूप से उन्हें पचा नहीं सकते हैं। इस प्रकार इन कणों में से हर एक में समुद्री जीव को नुकसान पहुंचाने और खाद्य श्रृंखला के द्वारा हमारे शरीर तक पहुंच जाते हैं।