कावेरी के जल को जहरीला बना रहें हैं औषधीय अपशिष्ट और भारी धातुएं

आईआईटी मद्रास द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि औषधीय अपशिष्ट, प्लास्टिक, कीटनाशक और जहरीली धातुएं कावेरी के जल को जहरीला बना रही हैं
कावेरी के जल को जहरीला बना रहें हैं औषधीय अपशिष्ट और भारी धातुएं
Published on

औषधीय उत्पाद, उनसे जुड़ा कचरा, आर्सेनिक, जस्ता, क्रोमियम, सीसा और निकल जैसी जहरीली धातुएं कावेरी के जल को जहरीला बना रही हैं। इतना ही नहीं निजी देखभाल से जुड़े उत्पाद, अग्निशामक, प्लास्टिक और कीटनाशक जैसे प्रदूषक भी इस पवित्र नदी को दूषित कर रहे हैं। यह जानकारी आईआईटी मद्रास द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है, जोकि हाल ही में जर्नल साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है। 

कावेरी जिसे दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है। इस नदी को तमिल में 'पोन्नी' के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत की प्रमुख नदियों में से एक यह दक्षिण की चौथी सबसे बड़ी नदी भी है। इसका उद्गम कर्नाटक के कोडागु जिले के तालकावेरी से होता है जो पश्चिमी घाट में स्थित है। तमिलनाडु से होती हुई यह नदी पूम्पुहार होती हुई बंगाल की  खाड़ी में मिल जाती है।  

देखा जाए तो नदी के जल में औषधीय उत्पादों का पाया जाना विशेष रूप से चिंता का विषय है क्योंकि उनकी बहुत थोड़ी मात्रा में भी उपस्थिति स्वास्थ्य के साथ-साथ पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुंचा सकती है। 

यह शोध डॉ. लिगी फिलिप के नेतृत्व में आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं के एक दल द्वारा किया गया है। जिसमें भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के साथ-साथ यूके की नेचुरल एनवायरनमेंट रिसर्च काउंसिल ने भी उनका सहयोग किया था। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने नदी में बढ़ते हुए दूषित पदार्थों और प्रदूषकों की मात्रा के मौसमी वितरण का पता लगाया है। 

नदी में प्रदूषकों को समझने के लिए यह अध्ययन करीब दो वर्षों तक चला था, जिसमें शोधकर्ताओं ने नदी किनारे 22 स्थानों से नमूने एकत्र किए थे। साथ ही जल गुणवत्ता पर निगरानी के लिए उन्होंने जहां से अपशिष्ट जल की निकासी होती है वहां 11 और जहां से जलापूर्ति के लिए नदी जल लिया जाता है वहां भी 11 स्टेशन भी स्थापित किए थे। इसके साथ ही जलग्रहण स्थानों पर भी पानी की गुणवत्ता पर नजर रखी गई थी। 

मानसून से भी प्रभावित थी जल गुणवत्ता और औषधीय प्रदूषकों का स्तर

शोध से पता चला है कि कावेरी में जल गुणवत्ता और औषधीय प्रदूषकों की मात्रा मानसून से भी प्रभावित थी। मानसून के बाद जब नदी के प्रवाह में कमी और कई स्रोतों से निरंतर नदी में पहुंच रहे अपशिष्ट के चलते उसमें औषधीय प्रदूषकों के साथ-साथ अन्य प्रदूषकों के स्तर में भी वृद्धि दर्ज की गई थी। इन दूषित पदार्थों में एंटी इंफ्लेमेटरी दवाएं जैसे आईबुप्रोफेन, डाइक्लोफेनाक, एंटी-हाइपरटेन्सिव जैसे एटेनोलोल और आइसोप्रेनालाईन, साथ ही पेरिंडोप्रिल, कैफीन, कार्बामाज़ेपाइन और सिप्रोफ्लोक्सासिन जैसे एंटीबायोटिक्स पाए गए थे। 

इस बारे में शोधकर्ता लिगी फिलिप ने जानकारी दी है कि शोध के जो नतीजे सामने आए हैं वो चिंताजनक हैं। अब तक इस बारे में बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं  है कि समय के साथ यह औषधीय प्रदूषक इंसानी स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे प्रभावित करते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार पर्यावरण पर बढ़ते खतरे के मूल्यांकन से पता चला है कि औषधीय प्रदूषक नदी प्रणाली के कुछ चुनिंदा जलीय जीवों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं। 

हालांकि देखा जाए तो भारत में सिर्फ कावेरी ही ऐसी नहीं है जो घटती जल गुणवत्ता और प्रदूषकों से प्रभावित है। देश में गंगा, यमुना जैसी कई प्रमुख नदियां उद्योगों और घरों से निकले दूषित पदार्थों के कारण खतरे में हैं। भले ही इन नदियों को बचाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें और वादे किए जाए पर सच यही है कि इन नदियों की स्थिति आज भी कोई खास अच्छी नहीं है। 

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in