वायु प्रदूषण के बढ़ने और घटने में मौसम का बड़ा किरदार है। अभी सर्दी के दौरान अनुभव किए जाने वाले वायु प्रदूषण पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है जबकि गर्मी के वायु प्रदूषण की प्रकृति अभी थोड़ी अनसुलझी है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा जारी “क्लीन एयर ब्ल्यू स्काइज, एयर पाल्यूशन डयूरिंग ए समर ऑफ लॉकडाउन” रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्मी के मौसम में सामान्य तौर पर तापामान ज्यादा होता है और हवाओं की रफ्तार तेज होती है साथ ही रुक-रुक कर वर्षा भी होती है। जबकि सर्दियों में इसके एकदम विपरीत ठंडी और ठहरी हुई मंद गति वाली हवा प्रदूषकों को कैद कर लेती हैं। इसलिए, वायु गुणवत्ता पर मौसम के प्रभाव अलग-अलग होते हैं। वहीं, गर्मियों के मौसम की अपेक्षा सर्दियों के मौसम की तुलना में धूल की अधिकता हो जाती है, साथ ही वायुमंडल में गैसों से बनने वाले द्वितीयक कणों की सघनता बढ़ जाती है। यह बात इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर, एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टिट्यूट और ऑटोमेटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा किए गए संयुक्त अध्ययन में कही गई है। इसलिए, इस विश्लेषण ने गर्मी के संदर्भ में लॉकडाउन के दौरान प्रमुख प्रदूषकों के व्यवहार के रूझानों की जांच की है। वास्तव में, 25 मार्च 2020 को शुरू हुए राष्ट्रीय लॉकडाउन के बाद वातावरण में धूल कण और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में कमी दर्ज हुई। इस गिरावट ने राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर ध्यान अपनी तरफ खींचा है।
लेकिन गर्मियों के दौरान एक अतिरिक्त चिंता का विषय भी पैदा हुआ है जिस पर अभी तक पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। यह है ट्रोपोस्फेरिक ओजोन प्रदूषण। सतह वाला यह ओजोन पूरे साल बहुत ज्यादा परिवर्तनशील रहता है, जब आसमान साफ़ होता है तो इसका स्तर चरम पर पहुंच जाता है। तटीय शहरों में सर्दियों के महीनों में अधिक पाया जाता है। इसलिए, इस तरह के विश्लेषणों ने पीएम 2.5 और एनओटू स्तरों में परिवर्तन पर नजर रखते हुए, ओजोन के व्यवहार के तरीके पर एक विशेष परिणाम पेश किए हैं।
गर्मियों में प्रदूषण का स्तर ओजोन द्वारा और जटिल हो जाता है। हालांकि, अभी इस मामले को बहुत अच्छी तरह से समझा नहीं गया है। वायु गुणवत्ता में परिवर्तन 2020 की गर्मियों के दौरान हुआ है। इस तरह, गर्मियों के प्रदूषण को समझने का यह एक अवसर है, जो सर्दियों के प्रदूषण से भी अलग है। आमतौर पर शीतकालीन प्रदूषण पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। गर्मी के प्रदूषण की प्रकृति और विशेषताओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है। वैश्विक अनुभव से पता चलता है की ओजोन नई पीढ़ी के लिए बहुत बड़ी समस्या है और इस पर सामान रूप से मजबूती से ध्यान देने की और कार्रवाई करने की जरूरत है। इसलिए बहुत जरूरी है की भारत के शहरों में ओजोन की समस्या को ध्यान में रखते हुए जो कार्य योजनाएं लागू हो रही हैं, उससे कण और गैस उत्सर्जन दोनों को कम किया जा सके। लेकिन उसी समय, हमें अलग-अलग प्रदूषकों में बदलते रुझानों की बेहतर समझ के लिए अच्छे शोध की जरूरत है। साथ ही साथ राष्ट्रीय परिवेश में वायु गुणवत्ता मानकों के अनुपालन के लिए बेहतर गुणवत्ता वाले मॉनिटरिंग ग्रिड के आधार पर वायु की क्वालिटी का आंकलन करने के लिए अच्छे विज्ञान की जरूरत है। अलग-अलग प्रदूषकों के अनुपालन की रिपोर्ट करने के लिए आवश्यक विधि और प्रोटोकॉल तत्काल निर्देश दिया जाना चाहिए।
कोरोना काल के दौरान तमाम सारे विश्लेषणों के द्वारा प्रदूषण के सबसे निम्न स्तर को समझने में मदद मिली है जो की वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए प्रदूषण को समझना बहुत हद तक संभव हो पाया है। यह बात इस रिपोर्ट के शोधकर्ताओं अनुमिता रॉयचौधरी और अविकल सोमवंशी ने कही है। उनका कहना है कि भारत में मौसमी प्रदूषण के लिए प्रकृति को लेकर जो समस्याएं हैं उन पर भी प्रकाश डाला गया है। ऐसा देखा गया है की गर्मियों और सर्दीयों में प्रदूषण का स्तर अलग-अलग दर्ज किया जाता है। गर्मियों और सर्दियों के प्रदूषण के स्तर में काफी अंतर रहता है। सर्दी के महीनों में कड़ाके की ठंड और शांत मौसम की स्थिति बनती है तो स्मॉग का स्तर काफी बढ़ जाता है। सर्दियों में प्रदूषण और स्मॉग की स्तिथि बदतर हो जाती है जो की चिंता का विषय है। स्मॉग काफी हद तक संचित कणों द्वारा हवा में संचालित होते हैं।