अब लीलागर नदी को खतरा, खदान का गाद भरा पानी बहाने की तैयारी

29 सितंबर को लीलागर नदी का पानी देश की प्रमुख कोयला खदान में घुस गया था, अब इस पानी को निकाल कर नदी में बहाने की तैयारी की जा रही है
अपना किनारा तोड़कर खदान की बढ़ती लीलागर नदी। फाइल फोटो
अपना किनारा तोड़कर खदान की बढ़ती लीलागर नदी। फाइल फोटो
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कोल इंडिया के साउथ इस्टर्न कोलफील्ड द्वारा संचालित देश में अच्छी किस्म का कोयला उत्पादन के लिए मशहूर दिपका कोयला खदान में 29 सितंबर को नजदीक से बह रही लीलागर नदी का पानी घुस आया था, इस वजह से जहां से कोयले का उत्पादन प्रभावित हुआ है, वहीं प्रशासन द्वारा जिस तरह से खदान से पानी निकालने की बात कही जा रही है, उससे नदी को ही खतरा पैदा हो गया है।

कोल इंडिया के दिपका प्लांट के एरिया पर्सनल मैनेजर जीएलएन दुर्गा प्रसाद बताते हैं कि प्लांट में जल्द से जल्द उत्पादन शुरू करने के लिए वहां का पानी निकाला जा रहा है। इसके लिए पंपों की मदद ली जा रही है। खदान में कुल 8 से 10 पंप लगाए गए हैं। कन्वेयर बेल्ट सिस्टम में डंपिंग यार्ड की मिट्टी, बोल्डर व पत्थर जमा हो गए हैं। इनको हटाने के लिए काम शुरू हो गया है। कन्वेयर बेल्ट की सफाई शुरू हो गई है। 

पर्यावरणविद् इस बात की चिंता जता रहे हैं कि प्रदूषित पानी नदी में दोबारा छोड़ने से नदी और अधिक प्रदूषित होगी। छत्तीसगढ़ में सक्रिय रहने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता आलोक शुक्ला के मुताबिक जब पानी प्लांट में घुस रहा था तो उसका रंग काला पड़ गया था। यह कोयला खदान में मौजूद प्रदूषक तत्वों की वजह से हुआ है। दोबारा मिट्टी और पानी नदी में छोड़ने पर नदी पर खतरनाक प्रभाव पड़ेगा। आलोक ने आशंका जताई कि नदी के पास खदान के श्रमिक निवास करते हैं और उन निचले इलाकों का पानी भी इसमें छोड़ा जाएगा जो कि प्रदूषण की दूसरी वजह बनेगी।

आलोक शुक्ला बताते हैं कि लीलागर नदी तो खनन की वजह से बर्बाद होने का काफी छोटा उदाहरण है। अडानी की खनन कंपनी केलो नदी पर तटबंध बनाकर कोयला निकालने वाली है। अगर यह हुआ तो इससे भी घातक परिणाम होंगे। वे कहते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार को अब चेत जाना चाहिए और नदी के कैचमेंट में खनन की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

वहीं, छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के अधीक्षण यंत्री राम प्रसाद शिंदे जो कि कोरबा में पदस्थ हैं मानते हैं कि भारी वर्षा के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई और इससे अभी तक पर्यावरण को कोई क्षति नहीं हुई है। उनके मुताबिक स्थिति पर नजर रखी जा रही है। हालांकि उन्होंने माना कि खदान में भरा पानी निकालकर वापस नदी में डाला जा रहा है। डाउन टू अर्थ के सवालों का जवाब देते हुए शिंदे ने कहा कि खदान का इलाका नदी से काफी दूर है लेकिन लगातार 48 घंटे की बारिश होने की वजह से पानी ओवरफ्लो हो गया। शुरुआती जांच में इसकी यही वजह सामने आई है। 

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