कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय में केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर डॉ चिरंजीव भट्टाचार्य द्वारा तैलीय अपशिष्ट जल के उपचार (वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट) उपकरण विकसित किया गया है। जिसका उपयोग आसान और बहुत किफायती होना बताया जा रहा है।
डॉ भट्टाचार्य ने कहा अब जल्द ही ऑटोमोबाइल सर्विसिंग उद्योग, खाद्य उद्योग और अन्य छोटे और मध्यम स्तर के उद्यमों के पास तैलीय अपशिष्ट जल के उपचार (वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट) के लिए एक अति कुशल, किफायती बिजली से चलने वाला उपकरण होगा। यह तेल और पानी को अलग करने वाला झिल्ली नुमा उपकरण (इलेक्ट्रिक फील्ड असिस्टेड मेम्ब्रेन डिवाइस) है।
निम्न आय वर्ग के उपयोगकर्ता ज्यादातर अपने यहां उत्पन्न तैलीय अपशिष्ट जल को छानने या उपचार करने के लिए अभी मौजूद उपचार तकनीकों की बहुत अधिक लागत को वहन नहीं कर सकते हैं। नतीजतन, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशानिर्देशों का पालन किए बिना बड़ी मात्रा में अनुपचारित तैलीय अपशिष्ट जल जलीय निकायों में छोड़ दिया जाता है।
डॉ भट्टाचार्य द्वारा विकसित की गई यह तकनीक, अपशिष्ट जल के उपचार के लिए इलेक्ट्रोकोएग्यूलेशन और इलेक्ट्रोफ्लोटेशन एन्हांस्ड मेम्ब्रेन मॉड्यूल (ईसीईएफएमएम) तकनीकों का उपयोग करती है।
इलेक्ट्रोकोएग्यूलेशन एक अपशिष्ट जल उपचार तकनीक है जो सतह पर अपशिष्ट कणों को बदलने के लिए विद्युत चार्ज का उपयोग करता है। यह छाने गए पदार्थ को अलग कर देता है और इलेक्ट्रोफ्लोटेशन के तहत पानी के माध्यम से बिजली प्रवाहित करके उत्पन्न हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के बुलबुलों का उपयोग करके पानी में मिले कणों को अलग करता है।
विकसित मॉड्यूल में, इलेक्ट्रोकोऐग्यलेशन और इलेक्ट्रोफ्लोटेशन एक साथ झिल्ली से जुड़े होते हैं। अपशिष्ट जल के माध्यम से हाइड्रोजन द्वारा एक तरह की हलचल या बुदबुदाहट पैदा की जाती है जो झिल्ली पर तेल को जमा नहीं होने देती है। यहां ये बताते चले कि हाइड्रोजन से किए गए हलचल या बुदबुदाहट झिल्ली मॉड्यूल के घूमने के साथ-साथ भीतर की झिल्ली की सतह पर पर्याप्त हलचल पैदा करता है।
झिल्ली द्वारा चीजों को अलग करने के दौरान विद्युत क्षेत्र के प्रयोग से, झिल्ली पर प्रदूषण काफी हद तक कम हो जाता है और यह झिल्ली की उम्र बढ़ने में मदद करता है, इस तरह झिल्ली को लंबे समय तक उपयोग किया जा सकता है। इसमें लगातार झिल्ली बदलने की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे इसके रखरखाव की लागत काफी हद तक कम हो जाती है।
छोटे और मध्यम स्तर के उद्यमों के लिए आर्थिक रूप से काफी लाभदायक है। इसमें नई तरह की अपशिष्ट जल उपचार तकनीक है। इसके अलावा, अन्य पारंपरिक उपचार के विपरीत, यह इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज के माध्यम से अत्यधिक स्थिर तेल से पानी को तेजी से अलग करता है।
इस तकनीक को भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के समर्थन से विकसित किया गया है। इस तकनीक का उपयोग करने के लिए बहुत कम लोगों की आवश्यकता होती है और इसको चलाने के लिए उच्च तकनीकी ज्ञान पर्याप्त लोगों की भी आवश्यकता नहीं होती है, इस प्रकार इसको चलाने में होने वाले खर्च को भी काफी हद तक कम कर देता है। तेल अपशिष्ट जल उपचार के बाद प्राप्त तेल का उपयोग औद्योगिक बर्नर, तेल भट्ठी, तेल मोल्ड, हाइड्रोलिक तेल आदि के रूप में किया जा सकता है।
इस तरह, एकत्रित किए गए तेल को बेचकर निम्न आय वाले समूहों के लिए कमाने का एक बहुत बड़ा अवसर बनता है। यह तकनीक अपशिष्ट जल उपचार के उद्देश्य की पूर्ति करेगी और इस तरह पीसीबी के नियमों के अनुसार जल प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए निम्न-आय वर्ग के उपयोगकर्ताओं के लिए एक मौका देती है।
यह 'मेक इन इंडिया' पहल का हिस्सा है। प्रोटोटाइप का सत्यापन और परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है और यह छोटे पैमाने पर सत्यापन और परीक्षण पूरा होने के कगार पर है।
डॉ भट्टाचार्य ने कहा अब तक, इस तरह के तैलीय अपशिष्ट जल के उपचार के लिए विभिन्न क्षेत्रों में चलने वाली अलग-अलग तकनीकों में एक इलेक्ट्रोलाइटिक सेल या डीएएफ लगाना शामिल है जिसके बाद झिल्ली इकाई होती है। हालांकि, दो अलग-अलग इकाइयों को स्थापित करने के लिए वर्तमान इकाई की तुलना में अधिक क्षेत्र की आवश्यकता होती है, जहां दो-इकाईयों को एक साथ चलाया जा सकता है।