स्वामीनाथन की सलाह, पराली से बढ़ सकती है किसानों की कमाई

हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने पराली जलाने से मुक्ति का नायाब रास्ता सुझाया है, जिससे किसानों को रोजगार भी मिलेगा
Photo: Vikas Choudhary
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दिल्ली का वायु प्रदूषण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोक स्वास्थ्य के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गया है। दिल्ली में पसरे वायु प्रदूषण के लिए सरकार किसानों के द्वारा पराली जलाए जाने को भी एक बड़ी वजह मान रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने बयानों में लगातार इस तरफ इशारा किया है। यह कहा जा रहा है कि किसानों के द्वारा खेत में पराली जलाने पर उससे निकला धुआं दिल्ली की हवा खराब कर रहा है।

इस विषय पर प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने सरकारों को ऐसा उपाय सुझाया है जिससे दिल्ली का प्रदूषण तो कम होगा ही, पराली का सही तरीके से उपयोग भी किया जा सकेगा। इतना ही नहीं, इससे किसानों को आर्थिक लाभ भी मिल सकेगा।

स्वामीनाथन ने ट्वीट करते हुए कहा है कि दक्षिण भारत में किसान पराली नहीं जलाते हैं, क्योंकि पराली का पशु के चारे के रूप में एक आर्थिक महत्व है। वह लिखते हैं कि उन्होंने वर्षों से पराली के फायदेमंद इस्तेमालों के बारे में बताया है। हमें पराली के निस्तारण के लिए किसानों के साथ मिलकर ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना इससे लाभ कमाया जा सके।

वह लिखते हैं कि हाल ही में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन ने राइस बायोपार्क की स्थापना म्यांनमार के नेपयितव में विदेश मंत्रालय के सहयोग से किया गया है जिसका उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति के द्वारा किया गया है। इस पार्क ने यह दिखाया है कि पराली का प्रयोग कागज, कार्टन, कार्डबोर्ड और जानवरों का चारा बनाने में किया जा सकता है।

स्वामीनाथन ट्वीट में आगे बताते हैं, " मैं दिल्ली, हरियाणा, उत्तरप्रदेश सरकारों को ऐसे ही राइस पार्क स्थापित करने की सलाह देते हैं, जहां किसान अपने पराली का सही उपयोग कर सकें और इससे रोजगार भी उत्पन्न हो। किसानों को पराली जलाने के लिए जिम्मेदार ठहराने से समस्या का समाधान नहीं होगा। इसके बदले हमें उन्हें ऐसा तरीका सुझाना होगा जिससे उनकी आर्थिक मदद भी की जा सके और पर्यावरण को भी लाभ हो।"

प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन को देश में हरित क्रांति का जनक कहा जाता है। स्वामीनाथन जेनेटिक वैज्ञानिक हैं। तमिलनाडु के रहने वाले इन वैज्ञानिक ने 1966 में मेक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीज विकिसित किए हैं। 

कैसे काम करता है राइस बायोपार्क

इस पार्क में धान से चावन बनाने की उन्नत पद्धति का इस्तामाल कर इस प्रक्रिया में बर्बाद होने वाले पोषक तत्वों की मात्रा को कम से कम करने की कोशिश होती है। इसके अलावा पार्क में तकनीक का इस्तेमाल कर धान की फसल से निकले पराली को पशुओं के चारे के रूप में परिवर्तित किया जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पराली में पशुओं के लिए भरपूर पोषण होता है और इसमें अनाज की मात्रा मिलाकर इसे और पोषक बनाया जा सकता है। इस केंद्र में चावल बनने की प्रक्रिया में निकला भूसा और अन्य अनुपयोगी पदार्थों से कागज जैसे उपयोगी चीजें बनाई जाती है। 

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