कमजोर व ठिगने बच्चों को जन्म देती हैं वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने वाली माएं
इटली के मिलान में यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसाइटी इंटरनेशनल कांग्रेस में प्रस्तुत किए गए के शोध के अनुसार, वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाली गर्भवती महिलाएं छोटे बच्चों को जन्म देती हैं। शोध से यह भी पता चलता है कि हरे-भरे इलाकों में रहने वाली महिलाएं बड़े बच्चों को जन्म देती हैं। हरे-भरे इलाकों को बढ़ाने से प्रदूषण के प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है।
किसी भी छोटे बच्चे का जन्म के समय वजन और फेफड़ों के स्वास्थ्य के बीच एक मजबूत संबंध होता है, कम वजन वाले बच्चों में अस्थमा का खतरा अधिक होता है और जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है, इनमें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) की दर भी अधिक होती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि शिशुओं और उनके विकासशील फेफड़ों को होने वाले नुकसान से बचाने में मदद के लिए वायु प्रदूषण को कम करने और कस्बों और शहरों को हरा-भरा बनाने की जरूरत है।
अध्ययन में कहा गया है कि यह शोध, उत्तरी यूरोप में श्वसन स्वास्थ्य (आरएचआईएन) अध्ययन के आंकड़ों पर आधारित था। जिसे नॉर्वे के बर्गेन विश्वविद्यालय (यूआईबी) में वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य और प्राथमिक देखभाल विभाग के एक शोधकर्ता रॉबिन मजाती सिंसामाला द्वारा प्रस्तुत किया गया। इसमें पांच यूरोपीय देशों -डेनमार्क, नॉर्वे, स्वीडन, आइसलैंड और एस्टोनिया)में रहने वाले 4286 बच्चे और उनकी माताएं शामिल थीं।
शोधकर्ताओं ने उपग्रह चित्रों पर वनस्पति के घनत्व को मापकर उन क्षेत्रों की हरियाली का अनुमान लगाया जहां महिलाएं गर्भावस्था के दौरान रह रही थीं। वनस्पति में जंगलों और कृषि भूमि के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में पार्क भी शामिल हैं। शोधकर्ताओं ने पांच प्रदूषकों को लेकर आंकड़ों का भी उपयोग किया, जिनमें नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2), ओजोन, ब्लैक कार्बन (बीसी) और दो प्रकार के कण पदार्थ (पीएम2.5 और पीएम10) शामिल थे।
वायु प्रदूषण का औसत स्तर यूरोपीय संघ के मानकों के भीतर था। शोधकर्ताओं ने इस जानकारी की तुलना शिशुओं के जन्म के वजन के साथ की, उन अलग-अलग कारणों को ध्यान में रखा, जो जन्म के समय वजन को प्रभावित करने के लिए जाने जाते हैं, जैसे कि मां की उम्र, क्या मां धूम्रपान करती थी या कोई उन्हें अन्य स्वास्थ्य समस्याएं थीं।
उन्होंने पाया कि वायु प्रदूषण का उच्च स्तर जन्म के समय कम वजन के साथ जुड़ा हुआ था, जिसमें पीएम2.5, 56 ग्राम, पीएम10, 46 ग्राम, एनओ2 48 ग्राम और बीसी और 48 ग्राम के जन्म के वजन में औसत कमी से जुड़े थे।
जब शोधकर्ताओं ने हरियाली पर गौर किए, तो जन्म के समय वजन पर वायु प्रदूषण का प्रभाव कम हो गया था। जो महिलाएं हरे-भरे इलाकों में रहती थीं, उनके शिशुओं का वजन जन्म के समय कम हरे इलाकों में रहने वाली माताओं की तुलना में थोड़ा अधिक, औसतन 27 ग्राम अधिक था।
शोधकर्ता सिंसामाला ने कहा कि, वह समय जब गर्भ में बच्चे बढ़ रहे होते हैं, फेफड़ों के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है। हम जानते हैं कि कम वजन वाले शिशुओं को छाती में संक्रमण होने की आशंका होती है और इससे बाद में अस्थमा और सीओपीडी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
किस तरह निपटा जा सकता इस समस्या से?
अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि, अपेक्षाकृत कम स्तर पर भी वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाली गर्भवती महिलाएं छोटे बच्चों को जन्म देती हैं। वे यह भी सुझाव देते हैं कि हरे-भरे क्षेत्र में रहने से इस प्रभाव से निपटने में मदद मिल सकती है। ऐसा हो सकता है कि हरे-भरे क्षेत्रों में यातायात कम हो या कि पौधे हवा से प्रदूषण साफ करने में मदद करते हैं, या हरे क्षेत्रों का मतलब यह हो सकता है कि गर्भवती महिलाओं के लिए शारीरिक रूप से सक्रिय रहना आसान है।
अध्ययन के हवाले से, यूरोपियन रेस्पिरेटरी सोसाइटी एडवोकेसी काउंसिल के अध्यक्ष, प्रोफेसर आरजू योर्गनसियोग्लु कहते हैं कि, यह अध्ययन वायु प्रदूषण से हमारे स्वास्थ्य पर होने वाले नुकसान के बढ़ते सबूतों को जोड़ता है। खासकर कमजोर शिशुओं और छोटे बच्चों में, जो महिलाएं गर्भवती हैं वे अपने बच्चों को संभावित नुकसान से बचाना चाहेंगी। हालांकि, व्यक्तिगत रूप से, वायु प्रदूषण के खतरों को कम करना या अपने पड़ोस को हरा-भरा बनाना मुश्किल हो सकता है।
अध्ययनकर्ता ने कहा, बच्चों के स्वास्थ्य की परवाह करने वाले डॉक्टरों और शोधकर्ताओं के रूप में, हम जिस हवा में सांस लेते हैं उसमें प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए सरकारों और नीति-निर्माताओं पर दबाव डालने की जरूरत है।
यह अध्ययन यह भी सुझाव देता है कि हम प्रदूषण के कुछ प्रभावों को अपने पड़ोस को हरा-भरा बनाकर कम करने में मदद कर सकते हैं।