प्रकृति की इस अद्भुत प्रजाति को नुकसान पहुंचा रहा है माइक्रोप्लास्टिक : शोध

बढ़ता माइक्रोप्लास्टिक पर्यावरण के लिए खतरा बन गया है
Photo credit: pxhere
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बढ़ता माइक्रोप्लास्टिक पर्यावरण के लिए खतरा बन गया है। कोरल पर पड़ने वाले इस प्लास्टिक के प्रभाव का पता यूसीनो समुद्री विज्ञान के प्रोफेसर सेनजी लिन सहित शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने लगाया है।

वातावरण में फेंका गया प्लास्टिक जब पांच मिलीमीटर से कम माप के छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाता है, तो इसे माइक्रोप्लास्टिक्स कहा जाता है। माइक्रोप्लास्टिक पूरे वातावरण में व्यापक रूप से फैला हुआ है। यह भोजन के साथ मनुष्यों सहित, छोटे जीवों से लेकर बड़े शिकारी जानवरों द्वारा निगला जा रहा है।

प्लास्टिक में खतरनाक यौगिक जैसे बिस्फेनॉल (बीपीए), जलन पैदा करने वाले तत्व, कैंसरकारी तत्व होते हैं। इस शोध को चेकोस्फीयर पत्रिका में प्रकाशित गया है।

लिन कहते हैं कि समुद्री वातावरण में, बहुत छोटे जीव जैसे कि प्रोटिस्ट, फाइटोप्लांकटन, और अन्य भी माइक्रोप्लास्टिक के हानिकारक प्रभावों से प्रभावित हैं, इनके प्रभावित होने से प्रवाल भित्तियां (कोरल रीफ्स) के लिए समस्या पैदा होती है, क्योंकि ये दोनों एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। 

कोरल पारिस्थितिक तंत्र में एक दूसरे के साथ रहते हैं। कोरल अकशेरूकीय हैं जो शैवाल पर भरोसा करते हैं, शैवाल कोरल के अंदर रहते हैं और कोरल के लिए ऊर्जा और पोषण संबंधी यौगिकों को संश्लेषित करते हैं। बदले में शैवाल कोरल के चयापचय (मेटाबोलिक) कचरे से पोषक तत्व प्राप्त करते हैं। यह एक बहुत ही पारस्परिक प्रणाली है। अकशेरूकीय प्राणी- उन प्राणियों को कहते हैं जिनमें मेरुदंड नहीं होता और ही किसी अवस्था में मेरुदण्ड विकसित होता है।

लिन कहते हैं कि, प्रवाल (कोरल) और एंडोसिम्बियन के बीच सहयोग से अलग, कोरल समुद्री जीवों के लिए निवास स्थान प्रदान करते हैं। वे समुद्र में सबसे अधिक जैव विविधता वाले पारिस्थितिक तंत्र हैं, तथा अत्यंत मूल्यवान जैविक संसाधन हैं। एंडोसिम्बियन या एंडोबियन्ट ऐसा जीव है जो शरीर या कोशिकाओं के भीतर रहता है।

दुर्भाग्य से, इन पारिस्थितिक तंत्रों को बड़े पैमाने पर बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण और मानव गतिविधियां शामिल हैं।

कोरल पारिस्थितिक तंत्र पर माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव की जांच

लिन और उनके साथी शोधकर्ता एक आम उष्णकटिबंधीय प्रवाल भित्तियों पर माइक्रोप्लास्टिक्स के प्रभावों का पता लगाना चाहते थे। शोधकर्ताओं ने एक विशेष एंडोसिमबियंट्स को देखा जिसे सिम्बायोडिनेशिया कहा जाता है क्योंकि वे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जल में प्रवाल पारिस्थितिक तंत्र में सबसे अधिक प्रकाश संश्लेषक है और दोनों साथ में जीवन बिताते हैं। उन्होंने सिंबियोडिनेशिया की प्रजातियों पर फोकस किया, जिसे क्लैडोकोपियम गोरेयूई कहा जाता है।

टीम ने शैवाल युक्त कोशिकाओं को पहले से देखना शुरू कर उन्हें समूहों में विभाजित किया। जिनमें से कुछ शैवालों में माइक्रोप्लास्टिक्स पाया गया। लगभग एक सप्ताह के बाद, माइक्रोप्लास्टिक्स के संपर्क में आने वाले समूह की संख्या व आकार के साथ-साथ कोशिका के आकार में भी काफी कमी का अनुभव किया गया।

टीम ने कोशिकाओं के भीतर तनाव प्रतिक्रिया और विषहरण (डिटाक्सिफिकैशन) से संबंधित एंजाइमों की गतिविधियों को भी मापा।

शोधकर्ताओं ने सुपरऑक्साइड डिसूटेज (एसओडी) नामक एक घटक में अधिकता देखी, और ग्लूटाथियोन एस-ट्रांसफरेज़ (जीएसटी) में उल्लेखनीय कमी को देखा। टीम ने यह भी पाया कि कोशिका को संकेत देने वाला एक महत्वपूर्ण एंजाइम समाप्त हो गया था। ये परिवर्तन कोशिका तनाव के स्तर को बढ़ाते हैं और कोशिका की खुद को डिटॉक्सीफाई करने की क्षमता को समाप्त कर देते हैं, इस सब के लिए माइक्रोप्लास्टिक ही जिम्मेदार था, जो शैवाल युक्त कोशिकाओं के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है।

शोधकर्ताओं ने समूहों के बीच जीन के काम में अंतर को भी देखा। उन्होंने 191 जीन पाए, जो कि आंशिक रूप से ठीक थे, जिनमें प्रतिरक्षा प्रणाली, प्रकाश संश्लेषण और चयापचय से संबंधित जीन शामिल थे। जीन के काम के डेटा से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक्स से जीन का कार्य प्रभावित हो रहा हैं, कोशिका डिटॉक्सीफिकेशन गतिविधियों को दबा सकते हैं, प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित कर सकते हैं, और इस बात की आशंका बढ़ जाती है कि कोशिका स्वयं नष्ट हो सकती है।

लिन ने कहा कि माइक्रोप्लास्टिक्स प्रदूषण कोरल के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं और माइक्रोप्लास्टिक्स के संपर्क में आने के बाद एंडोसिम्बियन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। यह रूप सबसे परेशान करने वाला है, क्योंकि दुनिया भर में, कोरल रीफ (प्रवाल-भित्ति) में पहले ही लगभग 50% की गिरावट देखी गई है।

लिन ने कहा कि यदि हम नुकसान को कम करने के लिए कोई कदम नहीं उठाने हैं तो 2050 तक 90% कोरल रीफ गायब हो जाएंगे। यह एक गंभीर मुद्दा है और हमें इस पर तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है।

लिन का कहना है कि चूंकि माइक्रोप्लास्टिक वातावरण में इतने लंबे समय तक बना रहता है, इसलिए हमें दैनिक जीवन में प्लास्टिक के उपयोग को कम से कम करना चाहिए। माइक्रोप्लास्टिक्स की समस्या से हम तुरंत पार नहीं पा सकते, लेकिन लिन को भरोसा है कि प्लास्टिक के उपयोग को कम करने से पर्यावरण को बेहतर ढंग से संरक्षित करने पर इसका सीधा असर कोरल रीफ पर पड़ेगा।

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