नदी तलछट को प्रभावित कर रहा माइक्रोप्लास्टिक, बढ़ते कटाव की बन रहा वजह

रेत के प्रवाह में आने वाला यह बदलाव न केवल नदी में बढ़ते कटाव का कारण बन सकता है, साथ ही नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को भी गंभीर तौर पर नुकसान पहुंचा सकता है
पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा गंगा किनारे जमा प्लास्टिक और अन्य कचरा; फोटो: आईस्टॉक
पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा गंगा किनारे जमा प्लास्टिक और अन्य कचरा; फोटो: आईस्टॉक
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नदी तल पर बालू कैसे प्रवाहित होती है, माइक्रोप्लास्टिक्स उसे प्रभावित कर रहा है। रेत के प्रवाह में आने वाला यह बदलाव न केवल नदी में बढ़ते कटाव का कारण बन सकता है, साथ ही नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को भी गंभीर तौर पर नुकसान पहुंचा सकता है। यह जानकारी अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा नदियों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स पर किए अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं।

इस बारे में अध्ययन और पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के सिविल और एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग विभाग से जुड़े शोधकर्ता रॉबर्टो फर्नांडीज ने जानकारी दी है कि, "नदियों में प्लास्टिक यूं ही नहीं तैरता है, वास्तव में यह सक्रिय रूप से तलछट के प्रवाह को प्रभावित करता है जो कटाव का कारण बनता है। जो वहां रहने वाले जीवों के आवास को प्रभावित करता है।"

डॉक्टर फर्नांडीज के मुताबिक, माइक्रोप्लास्टिक का घनत्व रेत की तुलना में कम होता है। यही वजह है कि यह पानी के अंदर कहीं ज्यादा गतिशील होता है।

नदियों में प्राकृतिक प्रवाह से नदी तल पर लहरें और टीले बनते हैं, रेत की इन संरचनाओं को बेडफॉर्म कहा जाता है। आमतौर पर नदी तल के साथ रेत, कणों के रूप में नीचे की ओर प्रवाहित होती है। लेकिन जब माइक्रोप्लास्टिक्स उसमें मिलता है तो इनकी वजह से अचानक कटाव की घटनाएं बढ़ जाती हैं जो इन बेडफॉर्म को प्रभावित करती हैं और पानी में अधिक रेत ले जाती हैं।

रिसर्च के मुताबिक प्लास्टिक में ऐसे गुण होते हैं, जो प्राकृतिक रूप से रेत के प्रवाह की तुलना में उसमें वृद्धि कर सकती है। ऐसे में नदी के कुछ क्षेत्रों में कहीं ज्यादा कटाव हो सकता है।  यह भी पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक्स की वजह से रेत के कण नदी तल के पास धीरे-धीरे जाने के बजाय नदी तल से दूर ऊपर की ओर पानी में कहीं ज्यादा तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण में होते इजाफे को देखते हुए शोधकर्ता फर्नांडीज का मानना है कि उनकी टीम ने माइक्रोप्लास्टिक्स और रेत के कणों के बीच जो परस्पर क्रिया देखी है वो शायद दुनिया भर में नदियों और खाड़ियां को प्रभावित कर रही हैं।

उनके मुताबिक अध्ययन में जो निष्कर्ष सामने आए हैं वो केवल माइक्रोप्लास्टिक्स और रेत तक ही सीमित नहीं हैं। जहां भी कम घनत्व वाला इंसानी कचरा, प्राकृतिक तलछट के साथ संपर्क करता है, वहां इसी तरह की प्रक्रियाओं के घटित होने की संभावना बनी रहती है। हालांकि उनका यह भी कहना है कि वो बड़े पैमाने पर इसके परिणामों को लेकर निश्चित नहीं हैं, लेकिन इसके स्थानीय प्रभाव सामान रहने की आशंका है।

अगले 37 वर्षों में हर साल पैदा होगा 100 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा

प्लास्टिक के यह महीन कण दुनिया भर में पर्यावरण, स्वास्थ्य और जैवविविधता को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। जो आज करीब-करीब दुनिया के हर क्षेत्र को आपने आगोश में ले चुके हैं।

गौरतलब है कि भारत में कावेरी नदी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक को लेकर किए एक अध्ययन से पता चला था कि यह और इस जैसे अन्य प्रदूषक मछलियों के कंकाल में विकृति पैदा कर रहे हैं। इतना ही नहीं नदी में बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण के चलते इनके विकास पर भी असर पड़ रहा है।

अंतराष्ट्रीय ऐड एजेंसी टेअरफण्ड और पर्यावरण परामर्श संगठन रिसोर्स फ्यूचर द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत सहित दुनिया भर में 21.8 करोड़ लोगों पर प्लास्टिक की वजह से बाढ़ का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। यह वो प्लास्टिक है, जो ऐसे ही फेंकें जाने के कारण नालियों में जमा हो रहा है और ड्रेनेज सिस्टम को अवरुद्ध कर रहा है।

देखा जाए तो वातावरण में बढ़ता माइक्रोप्लास्टिक न केवल पर्यावरण बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है। ऐसे में इससे बचने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत है।

देखा जाए तो आज दुनिया में बढ़ता कचरा एक बड़ी समस्या बन चुका है। ओईसीडी द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि अगले 37 सालों में प्लास्टिक कचरे की मात्रा तीन गुणा बढ़ जाएगी। रिपोर्ट की मानें तो 2060 तक हर साल करीब 100 करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा पैदा होगा, जिसमें से करीब 15.3 करोड़ टन कचरे को बिना उपचार के ऐसे ही पर्यावरण में डंप कर दिया जाएगा, जो आगे चलकर गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है।

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