अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में लगभग 500 करोड़ टन प्लास्टिक का कचरा अब तक लैंडफिल या वातावरण में जमा हो चुका है। इस आंकड़े के अगले तीन दशकों में दोगुना होने का अनुमान है। बढ़ते प्लास्टिक के कचरे के चलते माइक्रोप्लास्टिक जमीन से लेकर समुद्र, यहां तक की हमारे भोजन में भी पाया जाता है। अब दुनिया भर में किए गए अध्ययनों से इस बात का पता चला है कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसमें भी माइक्रोप्लास्टिक मौजूद हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा हमने पहली बार इस बात की जांच की है कि हवा में फैले माइक्रोप्लास्टिक्स वातावरण में किस तरह का असर डालते हैं। क्या वे पृथ्वी की जलवायु प्रणाली को गर्म या ठंडा कर रहे हैं। अन्य प्रकार के वायुजनित कण (एयरोसोल) जैसे धूल और ब्लैक कार्बन (कालिख) या तो सूर्य के प्रकाश को बिखेरते हैं या अवशोषित करते हैं, परिणामस्वरूप वे जलवायु प्रणाली को ठंडा या गर्म करते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा हमने पाया कि माइक्रोप्लास्टिक दोनों कामों के लिए जिम्मेवार हैं।
कैंटरबरी विश्वविद्यालय की शोधकर्ताओं लौरा ई. रेवेलो ने कहा कि एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक्स और जलवायु परिवर्तन को जोड़ने के लिए, हम इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण कितना व्यापक है। इसमें वैश्विक स्तर पर जलवायु को प्रभावित करने की कितनी क्षमता है।
वातावरण में माइक्रोप्लास्टिक की वर्तमान मात्रा कम है और इस समय वैश्विक जलवायु पर उनका बहुत कम प्रभाव है। लेकिन आने वाले दशकों में प्लास्टिक कचरे के दोगुने होने के अनुमानों को देखते हुए, इस बात की आशंका है कि जब तक हम प्लास्टिक प्रदूषण को दूर करने के लिए कार्रवाई नहीं करते हैं, तब तक माइक्रोप्लास्टिक पृथ्वी की जलवायु प्रणाली पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है।
माइक्रोप्लास्टिक महीन टुकड़े या फाइबर अथवा रेशे होते हैं जो प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के टूटने के दौरान बनते हैं। वे काफी हल्के होते हैं जिन्हें हवा द्वारा बड़ी दूर तक ले जाया जा सकता है। हाल ही में शोधकर्ताओं ने सुदूर पर्वतीय पानी वाले हिस्सों, आर्कटिक की बर्फ और संरक्षण वाले इलाकों में माइक्रोप्लास्टिक की पुष्टि की है।
अन्य अध्ययनों से पता चला है कि एक बार जब माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषक समुद्र में प्रवेश कर जाते हैं, तो यह जरूरी नहीं है कि वे वहीं रहें, लेकिन समुद्री लहरों और हवा के माध्यम से वातावरण में लौट सकते हैं। रेवेलो ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुए प्लास्टिक चक्र के बारे में सोचने के लिए हमें मजबूर किया है। माइक्रोप्लास्टिक मिट्टी, नदियों, समुद्र या हवा में ही नहीं रहता है, बल्कि पृथ्वी प्रणाली के विभिन्न हिस्सों के बीच घूमता रहता है।
रेवेलो ने कहा कि प्रारंभ में, हमें उम्मीद थी कि एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक्स अधिकांश एरोसोल की तरह सूरज की रोशनी पर असर डालेंगे, जो छोटे डिस्को गेंदों की तरह काम करते हैं और सूरज की रोशनी को वापस अंतरिक्ष में भेजते हैं। इसकी वजह से पृथ्वी की जलवायु ठंडी हो जाती है।
रेवेलो ने कहा पृथ्वी के वायुमंडल में अधिकांश प्रकार के एरोसोल प्रकाश को परावर्तित करते हैं, इसलिए सामान्य तौर पर, एरोसोल ने हाल के दशकों में ग्रीनहाउस गैस वार्मिंग को आंशिक रूप से बदल दिया है। एक अपवाद यह भी है कि कालिख या ब्लैक कार्बन जो सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करने में अच्छा है और इसका गर्म प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने कहा हमने पाया कि, कुल मिलाकर, वायुजनित माइक्रोप्लास्टिक सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करने या बिखेरने में अच्छे हैं, जिसका अर्थ है कि जलवायु पर शीतलन या ठंडा प्रभाव पड़ता है। हालांकि, वे पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित विकिरण को भी अवशोषित कर सकते हैं, जिसका अर्थ है कि वे ग्रीनहाउस गैस को बढ़ाने में बहुत कम योगदान देते हैं।
जलवायु पर माइक्रोप्लास्टिक का प्रभाव
रेवेलो ने कहा हम अभी तक नहीं जानते हैं कि माइक्रोप्लास्टिक्स वातावरण में कितनी दूर तक पहुंच चुके हैं, लेकिन एक विमान आधारित अध्ययन से पता चलता है कि यह धरती से 3.5 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर पाए गए हैं। अब इस बात को जानना अहम है कि क्या माइक्रोप्लास्टिक्स रासायनिक प्रतिक्रियाओं के लिए जगह प्रदान करके वायुमंडलीय रसायन शास्त्र को बदल सकता है और वे बादलों के साथ किस तरह का परस्पर प्रभाव डालते हैं।
लंदन और बीजिंग के शहरी क्षेत्रों से हवा में माइक्रोप्लास्टिक्स के लिए गए नमूनों में इसकी बहुत अधिक मात्रा पाई गई, जोकि प्रति घन मीटर हवा में हजारों टुकड़े थे।
जलवायु पर माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव का परिणाम हमारे जलवायु मॉडल सिमुलेशन में अलग-अलग होता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि पृथ्वी के वायुमंडल में प्लास्टिक के टुकड़े किस तरह फैले हुए हैं। शोधकर्ता ने कहा चूंकि एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक शोध इतना नया है, इसलिए हमारे पास अपने शोध को साबित करने के लिए सीमित संख्या में अध्ययन थे। यह शोध नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
रेवेलो ने कहा कि हमारे शोध से पता चलता है कि वैश्विक जलवायु पर माइक्रोप्लास्टिक का प्रभाव वर्तमान में बहुत कम है, शीतलन या ठंडा करने वाला प्रभाव इस पर हावी है। हालांकि भविष्य में इसके बढ़ने के आसार हैं, इस हद तक कि एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक अन्य प्रकार के एरोसोल की तुलना में जलवायु पर अधिक असर डालेगा।
अब तक लगभग 500 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा लैंडफिल या वातावरण में जमा हो चुका है। इस आंकड़े के अगले तीन दशकों में दोगुना होने का अनुमान है। प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के प्रयासों के बिना, वायुजनित माइक्रोप्लास्टिक से निपटना कठिन है। माइक्रोप्लास्टिक की अधिकता से भविष्य में जलवायु पर इसके प्रभाव में वृद्धि जारी रहेगी।