दुनिया भर में फैले माइक्रोप्लास्टिक को लेकर हर दिन नई जानकारियां सामने आ रही हैं। पता चला है कि प्लास्टिक के यह महीन कण पक्षियों की आंत में मौजूद माइक्रोबायोम में बदलाव कर रहे हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। ऐसे में इंसानों को भी इससे सावधान रहने की जरूरत है।
इस बारे में समुद्री पक्षियों पर किए अध्ययन से पता चला है कि पाचन तंत्र में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स ने पक्षियों की आंत में मौजूद माइक्रोबायोम को बदल दिया था। जो उनके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित हुए हैं।
रिसर्च से पता चला है कि समुद्री पक्षियों में मौजूद इन माइक्रोप्लास्टिक्स ने आंतों में पाए जाने वाले फायदेमंद बैक्टीरिया को कम करते हुए रोगजनकों और एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी रोगाणुओं की उपस्थिति को बढ़ा दिया था। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित हुए हैं।
गौरतलब है कि यह माइक्रोबायोम शरीर में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों जैसे बैक्टीरिया, फंगस, वायरस और उनके जीन का संग्रह होते हैं। यह सूक्ष्मजीव स्वाभाविक रूप से शरीर में पाए जाते हैं और पाचन तंत्र में मदद करते हैं। यह माइक्रोबायोम ने केवल हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं साथ ही प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
यदि माइक्रोप्लास्टिक्स की बात करें तो वो आज दुनिया के सामने एक बड़ी समस्या बन चुका है। इसके प्रभावों को लेकर वैज्ञानिक वर्षों से चिंतित हैं। प्लास्टिक के पांच मिलीमीटर से भी छोटे प्रदूषण यह कण दुनिया पर किस कदर हावी हो चुके हैं कि इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह आज न केवल महासागरों की गहराइयों से लेकर अंटार्कटिका के निर्जन क्षेत्रों तक मौजूद हैं। इतना ही नहीं यह हमारे भोजन से लेकर हमारे रक्त तक में घुल चुके हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक जंगली जीवों में इनका पाया जाना गंभीर हैं चूंकि इंसान भी पर्यावरण और आहार के जरिए इन माइक्रोप्लास्टिक को निगल रहा है ऐसे में यह गंभीर चिंता का विषय है।
लम्बे समय से माइक्रोप्लास्टिक्स युक्त दूषित आहार के सेवन से प्रजातियां कैसे प्रभावित होती हैं, इस बारे में बेहतर समझ हासिल करने के लिए कि वैज्ञानिकों ने समुद्री पक्षियों को दो प्रजातियों नॉर्दर्न फुलमार (फुलमारस ग्लेशियलिस ) और कोरिस शियरवाटर (कैलोनेक्ट्रिस बोरेलिस) की आंत में मौजूद माइक्रोबायोम की जांच की है। यह पक्षी प्रजातियां मुख्य रूप से समुद्रों के पास ऊंचे स्थानों पर रहती हैं और समुद्री मोलस्क, क्रस्टेशियन और मछली खाती हैं।
स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है माइक्रोबायोम में आया बदलाव
इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता ग्लोरिया फेकेलमैन ने बताया कि, "क्या प्राकृतिक वातावरण में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा प्रभावित प्रजातियों के आंत में मौजूद माइक्रोबायोम पर नकारात्मक प्रभाव डालती है, इस पर अब तक बहुत कम अध्ययन किया गया है।"
इस रिसर्च से पता चला है कि दोनों प्रजातियों में माइक्रोप्लास्टिक ने इनके पाचन तंत्र में मौजूद सूक्ष्मजीवों को बदल दिया था। उनमें माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा जितनी ज्यादा थी, फायदा पहुंचाने वाले बैक्टीरिया उतने ही कम पाए गए थे।
उनके मुताबिक यह फायदेमंद बैक्टीरिया अपने मेजबान को आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति करते हैं। रोगजनकों के खिलाफ रक्षा में मदद करते हैं। ऐसे में उनमें आई गड़बड़ी, स्वास्थ्य से जुड़ी कई प्रक्रियाओं को खराब कर सकती है। इसकी वजह से मेजबान में बीमारियां पैदा हो सकती हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक्स के प्रभावों की खोज करने वाले अधिकांश अध्ययन प्रयोगशालाओं में किए गए हैं। लेकिन जंगली जीवों में इनके अध्ययन से पता चला है कि जीवों में बहुत कम मात्रा में इनकी मौजूदगी भी उनके माइक्रोबायोम में बदलाव कर सकती है। माइक्रोप्लास्टिक्स की यह वो मात्रा है जो पहले ही प्राकृतिक वातावरण में मौजूद है।
देखा जाए तो यह रिसर्च एक बार फिर प्लास्टिक प्रदूषण के बढ़ते खतरों को उजागर करती है। प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक्स के इन्हीं खतरों को देखते हुए इनसे निजात पाने के लिए लिए संयुक्त राष्ट्र की अंतर सरकारी वार्ता समिति (आईएनसी-2) की दूसरी बैठक फ्रांस के पेरिस शहर में शुरू हो चुकी है। यह बैठक 29 मई से 2 जून, 2023 के बीच संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के मुख्यालय में हो रही है।