हर साल करीब 176,500 मीट्रिक टन सिंथेटिक माइक्रोफाइबर जमीन पर जमा हो रहा है, जिसके लिए पॉलिएस्टर और नायलॉन से बने कपडे जिम्मेवार हैं। अभी तक इसी बात की जानकारी थी कि धुलाई के दौरान कपड़ों से निकलने वाले माइक्रोफाइबर हमारे जल स्रोतों को दूषित कर रहे हैं। पर यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया द्वारा किये इस नए शोध से पता चला है कि इसका एक बड़ा हिस्सा जमीन पर भी जमा हो रहा है जोकि जल स्रोतों में जमा माइक्रोफाइबर से भी ज्यादा है। यह शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल प्लोस वन में प्रकाशित हुआ है।
1950 से 2017 के बीच करीब 920 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन किया गया था जिसमें से 530 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक को लैंडफिल या फिर खुले वातावरण में डंप कर दिया गया था। गौरतलब है कि प्लास्टिक के करीब 14 फीसदी हिस्से को कपड़ों के लिए सिंथेटिक फाइबर बनाने में प्रयोग किया जाता है। मूल रूप से यह माइक्रोफाइबर लंबाई में 5 मिलीमीटर से छोटे रेशे होते हैं। जब इन कपड़ों को धोया जाता है तो इनसे बड़ी मात्रा में यह माइक्रोफाइबर उत्पन्न होते हैं। पिछले कई वर्षों से जल स्रोतों में जमा होने वाले माइक्रोफाइबर पर ही विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है पर वो अकेले ही नहीं हैं जहां कपड़ों से निकले माइक्रोफाइबर जमा होते हैं। जब धोने का पानी ट्रीटमेंट प्लांट में जाता है तो यह माइक्रोफाइबर भी उनके जरिए गाद के रूप में जमा हो जाते हैं, जिन्हें या तो खेतों या फिर लैंडफिल में डाल दिया जाता है।
दुनिया भर में कितना सिंथेटिक माइक्रोफाइबर उत्पन्न हो रहा है इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने इसके लिए प्लास्टिक के वैश्विक उत्पादन, खपत और वेस्ट से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसमें कपड़ों को मशीन और हाथ से धोने के दौरान उत्पन्न हुए माइक्रोफाइबर सम्बन्धी आंकड़ों को भी मापा गया है। साथ ही ट्रीटमेंट प्लांट के जरिए कितना माइक्रोफाइबर जमा हो रहा है उसके आंकड़े भी एकत्र किए गए हैं।
सिंथेटिक माइक्रोफाइबर के उत्सर्जन में हर साल 12.9 फीसदी की दर से हो रही है वृद्धि
हालांकि यह जो आंकड़ें हैं वो कपड़ों से उनके पूरे जीवनकाल में उत्पन्न होने वाले माइक्रोफाइबर की गणना नहीं करते। उदाहरण के लिए, इसमें सेकंडहैंड कपड़ों का कोई हिसाब नहीं है। हालांकि इस शोध से पता चला है कि 1950 से 2016 के बीच कपड़ों की धुलाई से लगभग 56 लाख मीट्रिक टन सिंथेटिक माइक्रोफाइबर उत्पन्न हुआ था, जोकि सिंथेटिक फाइबर के व्यापक उपयोग की शुरुआत थी। जबकि उसका करीब आधा माइक्रोफाइबर पिछले एक दशक में उत्पन्न हुआ है। यदि सिंथेटिक माइक्रोफाइबर के उत्सर्जन को देखें तो उसमें हर साल 12.9 फीसदी की दर से वृद्धि हो रही है।
यदि आंकड़ों पर गौर करें तो इसमें से करीब 19 लाख मीट्रिक टन जमीन पर छोड़ दिया गया है। वहीं 6 लाख मीट्रिक टन लैंडफिल में डंप कर दिया गया है। जबकि यदि वर्तमान उत्सर्जन को देखें तो हर साल करीब 176,500 मीट्रिक टन माइक्रोफाइबर जमीन पर छोड़ा जा रहा है। वहीं 167,000 मीट्रिक टन माइक्रोफाइबर जल स्रोतों में डाला जा रहा है। जमीन पर पहुंचने वाला करीब 92 फीसदी माइक्रोफाइबर बायोसॉलिड्स के रूप में पहुंचता है| 8 फीसदी वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांट से निकले अपशिष्ट जल से हो रही सिंचाई के जरिए पहुंच रहा है जबकि 3 लाख मीट्रिक टन राख के जरिए जमीन पर पहुंच रहा है|
1950 से 2016 के बीच 29 लाख मीट्रिक टन माइक्रोफाइबर को जल स्रोतों में छोड़ दिया गया था। जिसका 88 फीसदी हिस्सा गंदे अपशिष्ट जल के रूप में जल स्रोतों तक पहुंच रहा है। वहीं 8 फीसदी साफ किए अपशिष्ट जल और 4 फीसदी बायोसॉलिड्स के जरिए जल स्रोतों में पहुंच रहा है।
इस शोध से जुड़े शोधकर्ताओं के अनुसार तकनीकी रूप से पर्यावरण में मौजूद माइक्रोफाइबर को हटाने की सम्भावना बहुत कम है, ऐसे में इसके उत्सर्जन में कमी लाना ही इससे निजात पाने का सबसे बेहतर उपाय है।