कितनी बड़ी समस्या बन गया है भारत में समुद्र में बढ़ता प्लास्टिक कचरा

भारत की प्रमुख नदियों एवं सहायक नदियों के द्वारा लगभग 15 से 20 प्रतिशत प्लास्टिक अपशिष्ट को बहाकर समुद्र तक लाया जाता है
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समुद्रों को माइक्रोप्लास्टिक का महासागर बनने से बचाने के लिए यथाशीघ्र उचित कदम उठाए जाने की आवश्यकता हैं। पृथ्वी पर जीवन एवं संवहनीयता के दृष्टिकोण से स्वच्छ समुद्र का होना अति आवश्यक है। पिछले कुछ दशकों में प्लास्टिक की मांग एक नाटकीय क्रम में तेजी से बढ़ी हैं। प्लास्टिक की मांग में तेजी होने के प्रमुख कारण - प्लास्टिक का हल्का, लचीलापन, लंबी अवधि तक टिके रहने की क्षमता आदि हैं।

वर्ष 2019 तक वैश्विक स्तर पर सिर्फ प्लास्टिक का उत्पादन 460 मिलियन टन था जिसमें से 353 मिलियन टन उसी वर्ष प्लास्टिक अपशिष्ट के के रूप में जनित हुई। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार तत्कालीन वर्ष में लगभग 50 प्रतिशत वेस्ट प्लास्टिक को विभिन्न लैंडफिल साइट पर डंप किया गया।

वर्ष 2021-22 में भारत में कुल प्लास्टिक की मांग लगभग 20.89 मिलियन टन है, जबकि कुल मांग का लगभग 40 प्रतिशत प्लास्टिक कूड़े के रूप में परिवर्तित होकर लैंडफिल या डंप साइट का हिस्सा बनती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नई दिल्ली की 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 3.46 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट के रूप में जनित हुआ।

एकल प्रयोग आधारित (सिंगल यूज) प्लास्टिक उत्पाद न सिर्फ धरती, अपितु समुद्र में रहने वाले जलीय जीवों के लिए बहुत ही हानिकारक हैं। पिछले कुछ दशकों में समुद्र में प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा बहुत तेजी से बढ़ी है। समय के साथ शहरीकरण और तटीय क्षेत्रों में अनियंत्रित विकास से प्रतिवर्ष लगभग 8 मिलियन टन प्लास्टिक वेस्ट मरीन लिटर या समुद्री मलवे का हिस्सा बन रहा है।

समुद्री कचरा या मरीन लिटर - ऐसे सभी मानव और औद्योगिक क्षेत्रों से निर्मित ठोस एवं तरल अपशिष्ट पदार्थ जो समुद्र में प्रदूषण को बढ़ाती हैं और समुद्र आधारित जीवो एवं वनस्पतियों को हानि पहुंचाती हैं।

दो प्रकार के मरीन लिटर निम्नलिखित हैं-

  1. भूमि आधारित - डंपसाइट से निकलने वाला तरल - लिचैट, औद्योगिक इकाइयों से बहने वाला हानिकारक रसायनिक तरल पदार्थ, मनुष्य के द्वारा तटीय क्षेत्रों पर फेंके जाने वाले प्लास्टिक पैकेजिंग आइटम और बॉटल्स, शिपयार्ड और सी पोर्ट से निकलने वाला अपशिष्ट, नगर निकायों के द्वारा निकलने वाला ठोस और तरल अपशिष्ट, चमड़ा और फर्टिलाइजर औद्योगिक इकाई से निकलने वाला रसायन, प्राकृतिक आपदा से उत्पन्न हुए मलबे आदि।
  2. समुद्र आधारित - मर्चेंट, पब्लिक ट्रांसपोर्ट शिपिंग, रिसर्च वेसल, फिशिंग एक्टिविटी से उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट जैसे फिशिंग गियर, घोस्ट या नेट जाल, समुद्र में सभी प्रकार के असंवैधानिक डंपिंग, साइक्लोन, सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा से उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट आदि।

भारत की प्रमुख नदियों एवं सहायक नदियों के द्वारा लगभग 15 से 20 प्रतिशत प्लास्टिक अपशिष्ट को बहाकर समुद्र तक लाया जाता है और यदि इसी प्रकार से वैश्विक स्तर पर यह क्रम चलता रहा तो 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा वेस्ट प्लास्टिक की मात्रा होगी। इस कारण समय रहते अति आवश्यक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

समुद्र में व्याप्त माइक्रोप्लास्टिक अब धीरे-धीरे मनुष्य के आहार श्रंखला का हिस्सा भी हो रही है। इसी कारण यूनाइटेड नेशन ने भी अपने एजेंडा 2030 में यह कहा कि वैश्विक स्तर पर 2025 तक सभी देशों को मरीन पॉल्यूशन / मरीन लिटर को कम करने के लिए सभी प्रकार के जमीन और जल आधारित प्रदूषण को रोकने और कम करने की आवश्यकता है।

भारत में कुल लगभग 65 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट जनित होता है जिसमें से लगभग 62 मिलियन टन नगरीय ठोस अपशिष्ट के रूप में वर्गीकृत है। इस ठोस अपशिष्ट का लगभग 75 से 80 प्रतिशत ही 4355 नगर निकायों के द्वारा संग्रहित किया जाता है। जबकि शेष अपशिष्ट का प्राकृतिक रूप से जल स्रोतों के माध्यम से, नदियों के माध्यम से अंततोगत्वा समुद्र में पहुंचकर समुद्री मलबे का हिस्सा बनते हैं।

सिंगल यूज और मल्टी लेयर प्लास्टिक बड़ी समस्या है

हालांकि 1 जुलाई 2022 से भारत सरकार ने चिन्हित कुल 19 प्रकार के सिंगल यूज प्लास्टिक आइटम्स पर प्रतिबंध / बैन लगा दिया है और प्रतिबंधित उत्पादों के उपयोग नहीं किए जाने के लिए भारत सरकार के द्वारा विगत 6 वर्षों से लगभग 3000 करोड़ रुपए से ज्यादा की धनराशि खर्च करते हुए व्यापक रूप से जागरूकता अभियान और कोस्टल क्लीनिंग ड्राइव या तटीय क्षेत्रों की सफाई का अभियान चलाया जा रहा है। परंतु ठोस कार्रवाई के अभाव में आज भी समुद्री मलबे / मरीन लिटर में मल्टीलेयर प्लास्टिक, प्रतिबंधित सिंगल यूज प्लास्टिक आइटम्स, प्लास्टिक बोतल, सिगरेट बड्स, पैकेजिंग सामान आदि मिल रहे हैं।

अपशिष्ट प्लास्टिक संग्रहण और प्रसंस्करण क्षमता बढ़ाए जाने की है आवश्यकता

देश में एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी पॉलिसी के तहत सभी ब्रांड निर्माता,आयातक और स्वामी को उनके द्वारा मार्केट में छोड़े गए प्लास्टिक सामान को प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी ऑर्गेनाइजेशन के सहयोग से या स्वयं की संस्थाओं के माध्यम से वापस से एकत्रित और प्रसंस्करित किया जाना था जिससे कि पर्यावरण पर कोई भी प्रतिकूल प्रभाव ना पड़े।

परंतु इन हितग्राहकों के द्वारा इस प्रकार का कोई भी कदम नहीं उठाया गया बल्कि सिर्फ पेट बॉटल्स और कुछ विशिष्ट प्रकार के प्लास्टिक अपशिष्ट को ही संग्रहित करने में रुचि दिखाई गई।

जिसके परिणाम स्वरूप एक अधिक मात्रा में मल्टीलेयर प्लास्टिक और सिंगल यूज प्लास्टिक आधारित उत्पाद नगरीय ठोस अपशिष्ट और मरीन/लिटर समुद्री मलबा का हिस्सा बन रहे हैं। इस कारण संबंधित सभी विभागों को इस दिशा में सघन निरीक्षण कर उल्लंघन कर्ता के विरुद्ध ठोस कार्यवाही किए जाने की आवश्यकता है।


5 जुलाई 2022 को भारत सरकार के द्वारा "स्वच्छ सागर - सुरक्षित सागर" नामक एक 75 दिवसीय समुद्र तटीय क्षेत्र सफाई अभियान चलाया गया। अभियान की तीन मुख्य रणनीति –

  1. जिम्मेदारी पूर्ण उपभोग,
  2. घरों पर ही कूड़े का पृथक्करण
  3. जिम्मेदारीपूर्ण निपटान

नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा स्थानीय निकायों और जनता के सहयोग से लगभग 7500 किलोमीटर भारत की तटीय लंबाई को आच्छादित करते हुए 75 कोस्टल बीच / तटीय क्षेत्र की सफाई का अभियान पूर्ण किया गया। सफाई के दौरान मुख्य रूप से प्लास्टिक के बोतल, टूटी चप्पल, फिशिंग घोस्ट नेट, सिंगल यूज प्लास्टिक, सिगरेट बड, मल्टीलेयर पैकेजिंग आइटम्स आदि मरीन लिटर के रूप में प्राप्त हुए।

सुझाव-

  1. भारत सरकार को पूर्व में प्रतिबंधित 19 चिन्हित सिंगल यूज प्लास्टिक आधारित सामान वाली सूची में मल्टीलेयर प्लास्टिक और पैकेजिंग आइटम को भी शामिल किया जाना चाहिए।
  2. प्रतिबंधित प्लास्टिक का विक्रय, भंडारण एवं उपयोग करने वाले लोगों को चिन्हित कर उल्लंघन कर्ता पर ठोस कार्रवाही किए जाने की आवश्यकता है।
  3. समुद्र तटीय क्षेत्रों में लगातार शहरीकरण और बढ़ते पर्यटन के कारण अंधाधुंध, अनियंत्रित व अवैध निर्माण की गतिविधियां तेज हो गई हैं इसी कारण समुद्री तट क्षेत्रों में कोस्टल रेगुलेशन जोन / तटीय क्षेत्र विनियमन प्रभावी रूप से लागू किए जाने की आवश्यकता हैं। जिससे कि तटीय क्षेत्रों में रहने वाली आबादी के कारण भारी मात्रा में होने वाले मरीन लिटर को कम और नियंत्रित किया जा सके ।
  4. ट्रांसबाउंड्री आधारित मरीन लिटर, जल व जमीन आधारित ठोस और तरल अपशिष्ट से होने वाले प्रदूषण, घोस्ट नेट में फंसे समुद्र के नीचे जीव जंतु और वनस्पतियों, प्लास्टिक को निगलने वाले समुद्रीय पक्षियों और मनुष्य की आहार श्रृंखला में शामिल हो रहे नैनो प्लास्टिक कणों के ख़तरों को ध्यान में रखते हुए नेशनल मरीन लिटर पॉलिसी/ राष्ट्रीय समुद्र प्रदूषण नीति को भारत सरकार के द्वारा यथाशीघ्र बनाए और लागू किए जाने की आवश्यकता है।

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