भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के श्वसन रोग विशेषज्ञ विजय हड्डा बताते हैं कि निचले फेफड़ों के संक्रमण में वायु प्रदूषण की बड़ी भूमिका है। खासतौर से पार्टिकुलेट मैटर 2.5 जो कि आंखों से नहीं दिखाई देते हैं और बेहद महीन कण होते हैं सांसों के दौरान श्वसन नली से निचले फेफड़े तक आसानी से पहुंच जाते हैं। इसे आसानी से ऐसे समझिए कि एक बाल का व्यास 50 से 60 माइक्रोन तक होता है जबकि 2.5 व्यास वाला पार्टिकुलेट मैटर कितना महीन होगा। ऐसे में किसी प्रदूषित वातावरण में जितनी सांस एक व्यस्क ले रहा है उससे ज्यादा सांसे बच्चे को लेनी पड़ती हैं। इसलिए जहां ज्यादा पीएम 2.5 प्रदूषण, वहां ज्यादा मौतें हो रही हैं। 2017 में जारी द लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार में पीएम 2.5 सालाना सामान्य मानकों से काफी अधिक रहा।