सरे विश्वविद्यालय के एक नए अध्ययन से खुलासा हुआ है कि निर्माण कार्य, गाड़ियों की बढ़ती संख्या, डीजल जनरेटर, बिजली संयंत्र, उद्योग और सड़क के किनारे बायोमास जलाने जैसी गतिविधियां दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हानिकारक वायु प्रदूषकों के लिए जिम्मेदार हैं।
इंग्लैंड स्थित सरे विश्वविद्यालय के ग्लोबल सेंटर फॉर क्लीन एयर रिसर्च (जीसीएआरई) की अगुवाई में एक टीम ने दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के 12 स्थलों से चार साल के प्रदूषण के आंकड़ों को इकट्ठा किया। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि पदार्थ कण पीएम2.5 और पीएम10 और गैसें नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और ओजोन इन क्षेत्रों को सबसे अधिक प्रभावित कर रहे हैं। यह अध्ययन सस्टेनेबल सिटीज एंड सोसाइटी में प्रकाशित हुआ है।
लंबे समय तक किए गए इस अध्ययन से पता चलता है कि गर्मी या मानसून की अवधि की तुलना में सर्दियों के महीनों में वायु प्रदूषकों का स्तर बहुत अधिक था। सर्दियों के महीनों में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5 और पीएम10) का उच्च स्तर पाया गया। कणों का उच्च स्तर दिल्ली के आस-पास के राज्यों में फसल के अवशेष जलने से होने वाले धुएं और घरों को गर्म करने के लिए बायोमास जलने के कारण होता है। क्योंकि इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में सेंट्रल हीटिंग सिस्टम नहीं है, इसलिए बायोमास जलाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि सर्दियों के दौरान मौसम-विशेष रूप से वर्षा कम होती है और हवा की गति कम होने से भी प्रदूषण स्तर बढ़ जाता है।
जीसीएआरई की टीम ने अध्ययन की अवधि के दौरान प्रत्येक स्टेशन से मौसम संबंधी डेटा भी लिया, जिससे हवा की गति और कणों के उड़ने की दिशा की जांच की गई। विश्लेषण के परिणाम बताते हैं कि प्रदूषण के स्थानीय स्रोत, जैसे कि यातायात, निर्माण और बायोमास जलाना, क्षेत्रीय स्रोतों (लंबी दूरी के यातायात से वायु प्रदूषण) से अधिक प्रदूषण होता है।
सरे विश्वविद्यालय में जीसीएआरई के संस्थापक निदेशक प्रोफेसर प्रशांत कुमार ने कहा: एक अवधि के दौरान दिल्ली के वायु प्रदूषण के आंकड़ों के बारे में हमारा विश्लेषण यह पुष्टि करता है कि, प्रदूषण के स्थानीय स्रोत - जैसे कि यातायात और घरों को गर्म करना आदि, दिल्ली क्षेत्र में वायु गुणवत्ता को खराब कर रहे हैं। इसके अलावा, दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में सर्दियों के दौरान वायु गुणवत्ता पर जबरदस्त प्रभाव पड़ रहा है।
वायु गुणवत्ता में सुधार करने हेतु वायु प्रदूषण स्रोतों के प्रभावी नियंत्रण के लिए आसपास के क्षेत्रों के साथ काम करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, स्थानीय स्रोतों के प्रभाव को देखते हुए, सर्दियों के दौरान जब समस्या अपने चरम पर पहुंच जाती है तभी प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास किए जाते है, जबकि नियंत्रण के प्रयास पूरे वर्ष भर किए जाने चाहिए। लगातार प्रयास ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकड़ों में सुधार ला सकते हैं, जिसमे डब्ल्यू.एच.ओ ने कहा था कि, 2016 में दुनिया भर में वायु प्रदूषण के कारण लगभग 42 लाख अकाल मौतें हुई। भारत में वायु प्रदूषण के सालाना लगभग 6 लाख मौतें हो जाती हैं, दुनिया में सबसे अधिक वायु प्रदूषण दिल्ली शहर में है।