आज धरती पर 14 लाख से अधिक झीलें ऐसी हैं, जो आकार में 10 हेक्टेयर या उससे ज्यादा बड़ी हैं। इनमें से हर झील भूवैज्ञानिक इतिहास और पर्यावरणीय महत्व की एक अनूठी कहानी बयां करती है। यह झीलें न केवल हमारी पानी की जरूरतों को पूरा करती है, साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी आवश्यक सेवाएं प्रदान करके सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
लेकिन यह तभी मुमकिन होगा जब यह झीलें स्वस्थ हों। देखा जाए तो कहीं न कहीं यह झीलें भी हम इंसानों की तरह ही जीवित प्रणालियां हैं, जिन्हें ऑक्सीजन, साफ पानी और संतुलित ऊर्जा के साथ-साथ पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। लेकिन ऐसा न हो पाने के कारण यह झीलें स्वास्थ्य से जुड़ी कई समस्याओं से पीड़ित हैं।
इनमें सांस और प्रवाह से जुड़ी समस्याएं, संक्रमण, पोषक तत्वों में असंतुलन, तापमान, विषाक्तता और संक्रमण जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। यह स्वास्थ्य समस्याएं काफी हद तक इंसानों के स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों जैसी ही हैं, जिनके उपचार पर यदि समय पर ध्यान न दिया गया तो मर्ज पुराना हो सकता है।
झीलों के तीन किलोमीटर के दायरे में रह रही है दुनिया की 12 फीसदी आबादी
इसकी वजह से न केवल झीलों के पारिस्थितिकी तंत्र पर बल्कि उन लाखों लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ेगा जो इन झीलों और उनके पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर हैं। गौरतलब है कि दुनिया की 12 फीसदी से अधिक आबादी इन झीलों के तीन किलोमीटर के दायरे में बसी है।
ऐसे में जर्नल अर्थ फ्यूचर में इनके स्वास्थ्य को लेकर प्रकाशित एक रिसर्च में कहा है कि इन समस्याओं को रोकने और इलाज के लिए हमें मानव स्वास्थ्य देखभाल में उपयोग की जाने वाली रणनीतियों के जैसी ही रणनीतियों की आवश्यकता है।
इनमें समस्याएं उत्पन्न होने से पहले कार्रवाई करना, समस्याओं का शीघ्र पता लगाने के लिए नियमित जांच करना और स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर तक उचित पैमाने पर समाधान लागू करना शामिल है।
अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने झीलों के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों का आंकलन, निदान और इलाज के लिए इंसानों के स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रयोग होने वाली शब्दावली और दृष्टिकोण का उपयोग करने का सुझाव दिया है। इसका मुख्य कारण वैश्विक स्तर पर झीलों के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों के बारे में लोगों में जागरूकता और समझ को बढ़ावा देना है।
उदाहरण के लिए, कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही झीलों को 'सहरुग्णता' या 'मल्टीमॉर्बिडिटी' के रूप में चिन्हित किया जा सकता है। साथ ही इंसानों की तरह ही नियमित जांच से झीलों से जुड़ी समस्याओं के बारे में जल्द पता लगाने में मदद मिल सकती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक मानव रूपी उपमाएं लोगों को प्रकृति से बेहतर ढंग से जुड़ने और उसकी रक्षा करने में मदद कर सकती हैं।
रिसर्च के मुताबिक कुछ समृद्ध देशों में झीलों के स्वास्थ्य का आंकलन करने के तरीके मौजूद हैं। लेकिन शोधकर्ताओं ने झीलों के स्वास्थ्य को वर्गीकृत करने के लिए एक विश्वव्यापी प्रणाली बनाई है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की मानव स्वास्थ्य वर्गीकरण प्रणाली पर आधारित है।
इस मानचित्र में दुनिया भर में मौजूद 10 हेक्टेयर या उससे बड़ी झीलों को दर्शाया गया है। इनमें से करीब पांच फीसदी झीलें मानव निर्मित जलाशय हैं, लेकिन मानचित्र पर केवल सबसे बड़ी 7,000 जलाशयों को दिखाया गया है। इन 1,427,688 झीलों में से अधिकांश (994,072) उत्तरी अमेरिका में हैं, इसके बाद यूरोप में 281,956, एशिया में 68,169, दक्षिण अमेरिका में 54,048, अफ्रीका 15,964, और ओशिनिया में 3,479 झीलें हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक धरती पर हर आकार की कितनी झीले मौजूद हैं इसकी सटीक संख्या तो ज्ञात नहीं है। लेकिन उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों और जांच से पता चला है कि दुनिया में तीन हेक्टेयर या उससे अधिक आकार की कुल झीलों की संख्या 34 लाख के आसपास है। वहीं यदि एक हेक्टेयर या उससे बड़े आकार की झीलों को देखें तो यह संख्या 2.1 करोड़ है, जबकि छोटी झीलों, तालाबों को भी जोड़ दें तो यह संख्या बढ़कर 11.7 करोड़ पर पहुंच जाएगी।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने लेकएटलस नामक डेटाबेस का उपयोग किया है। इसमें से उन्होंने 14,27,688 लाख झीलों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इनकी मदद से उन्होंने झीलों से जुड़ी समस्याओं की जांच की है।
जलवायु परिवर्तन और इंसानी प्रभाव से बिगड़ रहा है झीलों का स्वास्थ्य
इनमें परिसंचरण संबंधी विकार जैसे बाढ़ और सूखा, चयापचय सम्बन्धी समस्याएं जैसे अम्ली और लवणीकरण, साथ ही पोषण और श्वसन यानी ऑक्सीजन की कमी से जुड़ी समस्याएं शामिल थी। देखा जाए तो इन समस्याओं के लिए कहीं न कहीं हम इंसान ही जिम्मेवार हैं, जो बड़ी तेजी से अपने वातावरण को प्रभावित कर रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने झील के स्वास्थ्य को उत्कृष्ट से गंभीर श्रेणी में वर्गीकृत किया है। अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक करीब 115,000 झीलें सीधे तौर पर बारिश से मिलने वाले पानी की तुलना में दोगुना खो रही हैं। इसकी वजह से इन झीलों के आसपास रहने वाले 15.3 करोड़ लोगों पर खतरा मंडरा रहा है।
वहीं उन स्थानों की बात करें जहां झीलों के आसपास की 75 फीसदी से अधिक जमीन का उपयोग खेती के लिए किया जा रहा है। वहां झीलों में बढ़ते पोषक तत्वों की वजह से हानिकारक शैवालों के बढ़ने का जोखिम बेहद ज्यादा है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि दुनिया भर में दस हेक्टेयर से बड़ी 14 लाख झीलों में से करीब 0.9 फीसदी झीलें इस समस्या से जूझ रही हैं। इनमें से अधिकांश झीलें भारत में हैं, जिनकी संख्या 3,043 है।
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आज जलवायु परिवर्तन और तेजी से होते दोहन की वजह से इन झीलों में पानी का स्तर तेजी से कम हो रहा है। नतीजन पेयजल, फसलों, और मछली पालन के लिए पानी की उपलब्धता घट रही है। इसकी वजह से झीलों से सम्बंधित महत्वपूर्ण सेवाओं में भारी गिरावट आई है।
धरती पर कई झीलें ऐसी हैं जो अभी भी समय-समय पर बर्फ से ढंकी रहती हैं। हालांकि जिस तरह जलवायु में बदलाव आ रहे हैं यह तेजी से अपने बर्फ के आवरण को खो रही हैं। अनुमान है कि तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ और करीब 35,000 झीलें अपने मौसमी बर्फ के आवरण को खो देंगी।
इसी तरह शोधकर्ताओं के मुताबिक झीलों के स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ लक्षणों जैसे शैवाल का खिलना, मछलियों का मरना और झीलों पर तैरते प्रदूषण को उपग्रहों आदि की मदद से आसानी से देखा जा सकता है। लेकिन इनसे जुड़ी अन्य समस्याएं केवल नैदानिक परीक्षणों से ही सामने आ सकती हैं, जो मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए किए जाने वाले नैदानिक परीक्षणों की तरह ही महंगी हो सकती हैं।
ऐसे में शोधकर्ताओं ने झीलों के स्वास्थ्य की सही तस्वीर हासिल करने के लिए और अधिक परीक्षण करने की सिफारिश की है। इनमें पानी के नमूनों की जांच या सेंसर का उपयोग शामिल है। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया है कि खासकर कमजोर देशों में झीलों से जुड़ी कई समस्याएं ऐसी हैं, जिनके बारे में पहले से जानकारी है। हालांकि उनका अब तक समाधान नहीं किया गया है।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया है कि इससे पहले की हालत बेहद खराब हो जाए इन बीमार झीलों के उपचार के लिए तत्काल मिलकर काम करने की जरूरत है। शोधकर्ताओं का मानना है कि हमें सीवेज जल के उपचार, जलवायु परिवर्तन से निपटने और लोगों एवं आक्रामक विदेशी प्रजातियों की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई को प्राथमिकता देनी चाहिए।