प्रकाश प्रदूषण: रोशन रातों की काली सच्चाई

प्रकाश प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। यह न केवल अनावश्यक धन और ऊर्जा की क्षति है बल्कि इसके कई दुष्परिणाम हैं
प्रकाश प्रदूषण: रोशन रातों की काली सच्चाई
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जैसे-जैसे कोरोनोवायरस महामारी दुनिया भर में फैलनी शुरु हुई, शहरों में लॉकडाउन लगते चले गए। लोगों को घर पर ही रहने के लिए प्रोत्साहित किया गया। कई जगहों पर कर्फ्यू लगा दिए गए।

वसंत के महीने में ब्रिटेन में लगे लॉकडाउन के दौरान मैं अपने गृह नगर मैनचेस्टर में था। उन दिनों मैंने कई रात इस शहर की सैर की। मैं कई चीजों को देख कर आश्चर्यचकित था। यातायात या ट्रेनों का शोरगुल नहीं था। इस अजीबोगरीब शांति में पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी। प्रदूषणरहित ताजी हवा सांसों में भर रही थी। फिर भी, रात में ये शहर कृत्रिम रोशनी से नहा रहा था, वह भी बिना किसी खास कारण के।

अब, जैसा कि इंग्लैंड दूसरे लॉकडाउन में प्रवेश कर चुका है, शहरी परिदृश्य अभी भी रोशनी से नहाए रहते हैं। दुनिया भर में यही हालत है। यह बताता है कि हम कुछ बेकार तरीकों के इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि हम उनके बारे में सोचते भी नहीं हैं।

प्रकाश प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। यह न केवल अनावश्यक ऊर्जा और धन की क्षति है, बल्कि इसके और भी कई दुष्परिणाम हैं। हर जगह प्रकाश अक्सर हमारे समकालीन जीवन में शामिल बिन बुलाए मेहमान की तरह है। यह उन कृत्रिम उपकरणों से निकलता है, जिसका हम इस वातावरण में उपयोग करते हैं।

इस बीच, अंधेरा अवांछित प्रतीत होता है। आखिर हम यह कैसे मानने लगे कि अगर शहर प्रकाश से चकाचौंध नहीं है तो यह परेशान करने वाली बात है और यहां तक कि हमारे लिए खतरा भी है?

अंधेरे से प्रकाश की ओर

ज्ञान बोध होने के बाद से, पश्चिमी संस्कृति अच्छे और बुरे के प्रतिनिधि के रूप में रोशनी और अंधेरे के विचार से बंधी हुई है। प्रकाश का मतलब था- सत्य, पवित्रता, ज्ञान और ज्ञान की खोज। इसके विपरीत- अंधकार, अज्ञानता, भटकाव, पुरुषवाद और बर्बरता से जुड़ा था।

यूरोप में 16वीं और 18वीं शताब्दी के बीच, रात के प्रति दृष्टिकोण और विश्वास में परिवर्तन अंधेरे की अवधारणाओं के निर्माण में महत्वपूर्ण थे। समाज में परिवर्तन ने श्रम और अवकाश के नए अवसरों को जन्म दिया। यह कृत्रिम रोशनी और स्ट्रीट लाइट्स के साथ मिलकर, दिन के विस्तार के रूप में रात को पुनर्जीवित करते हैं। अंधेरे को स्वीकार करने के बजाय इसे प्रकाश के सहारे खत्म किया जाने लगा।

लेकिन यह विचार अन्य संस्कृतियों द्वारा साझा नहीं किया गया था। उदाहरण के लिए, 1933 में इन प्रेज ऑफ शैडोज में, जापानी लेखक जून इचिरो तनीजकी ने अत्याधिक प्रकाश की मात्रा के बेतुकेपन को इंगित किया। इसके बजाय, उन्होंने रोजमर्रा के जीवन के उन नाजुक और बारीक पहलुओं का जश्न मनाया, जो कृत्रिम रोशनी के कारण तेजी से खो रहे थे।

प्रगतिशील पश्चिमी व्यक्ति हमेशा अपने बेहतर की कोशिश में रहता है। मोमबत्ती से लेकर तेल का दीपक, तेल का दीपक से लेकर गैसलाइट तक, गैसलाइट से लेकर बिजली की रोशनी तक, तेज रोशनी की उसकी तलाश कभी बंद नहीं होती। वह अंधेरा की छाया को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ता।

आज कई शहरों के लिए अंधेरा अवांछित है। यह आपराधिक, अनैतिक और भयावह व्यवहार से जुड़ा हुआ है। लेकिन, इंजीनियरिंग फर्म अरूप के हालिया शोध से पता चला है कि इनमें से कुछ चिंताएं गलत हो सकती हैं। आगे के शोध से पता चला है कि असमानता से निपटने के लिए शहरों को प्रकाश की बेहतर समझ की आवश्यकता है। इसका उपयोग नागरिक जीवन को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है। साथ ही, उन शहरी स्थानों को जीवंत, सुलभ और आरामदायक बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसे आम लोग साझा करते हैं।

इस बीच, शहरी परिदृश्य में प्रकाश, स्पष्टता, स्वच्छता और सुसंगतता के मूल्यों की इतनी बात हुई कि यह वैश्विक अनुभव में अधिक व्यापक बनता चला गया। नतीजतन, दुनिया भर से रात का आकाश गायब हो गया है।

प्रकाश की लागत

यह कोई छोटी बात नहीं है। वैज्ञानिक इसे वैश्विक चुनौती के रूप में देख रहे हैं। इंटरनेशनल डार्क-स्काई एसोसिएशन ने बताया है कि इससे ऊर्जा और धन दोनों का बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है। अकेले अमेरिका में यह नुकसान 3.3 अरब डॉलर तक बढ़ चुका है और प्रत्येक वर्ष 2.1 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का अनावश्यक उत्सर्जन होता है। चिंता की बात यह है कि इसका मानव स्वास्थ्य, अन्य प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र पर विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा हैं।

रात में कृत्रिम प्रकाश के संपर्क में आने से मनुष्यों की सर्कैडियन लय (शरीर की अंतरिक घड़ी) बाधित हो जाती है। इससे लंबे समय तक या शिफ्ट में काम करने वालों में कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकारों जैसे रोगों का खतरा होता है। ब्रिटेन में अब नौ कर्मचारियों में से एक रात्रि श्रमिक हैं। इसलिए यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।

लाखों प्रवासी पक्षी बिजली की रोशनी से परेशान हो जाते हैं। वे इमारतों से टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं, जबकि प्रवासी समुद्री कछुए और झिंगुर जो कि चांद की रोशनी का उपयोग करते हैं, उनका जीवन भी अस्त-व्यस्त हो जाता है।

यह साफ है कि हमें विकल्पों की आवश्यकता है और वह भी शीघ्र। प्रकाश प्रदूषण को कम करने की बजाय, नई एलईडी प्रौद्योगिकियों ने वास्तव में इसे बढ़ाया ही है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस प्रौद्योगिकी को अन्य मुद्दों की बजाय आर्थिक बचत पर जोर दे कर लाया गया है। मात्रा से अधिक गुणवत्ता पर जोर देना महत्वपूर्ण है ताकि हम विभिन्न संदर्भों के लिए उपयुक्त प्रकाश व्यवस्था कर सकें। जैसे मास्को के जाराडिए पार्क के लिए लागू की गई प्रकाश योजना। इसे यूएस डिजाइन स्टूडियो डिलर स्कोफिडियो और रेनफ्रो द्वारा डिज़ाइन किया गया है, जो प्रकाश के मौजूदा स्रोतों को प्रतिबिंबित करता है।

अंधकार की महत्ता

अंधेरा का आकाश में अपना महत्व है। यह अद्भुत है और ऐसा प्राकृतिक उपहार है, जो खतरे में है। यह आश्चर्यजनक है कि अब लोग शहरों में या ग्रामीण इलाकों में, रात में चलने की खुशियों को फिर से खोज रहे हैं। हमें उन स्थानों के लिए अंधेरे की एक नई अवधारणा की आवश्यकता है, जो हमें अधिक जिम्मेदार और कम पर्यावरणीय हानिकारक प्रकाश व्यवस्था के माध्यम से रात के आकाश के साथ फिर से जुड़ने में सक्षम बनाते हैं।

थियरी कोहेन्स विलेज इटैंटेज (डार्केंड सिटीज) फोटोग्राफिक सीरिज बताती है कि शहरी रोशनी के लिए एक अधिक जिम्मेदार और पारिस्थितिक दृष्टिकोण के साथ भविष्य के शहर कैसे हो सकते हैं। उनकी तस्वीरें ब्रह्मांड और अंधेरा आकाश के साथ हमारे संबंध की याद दिलाती हैं।

जलवायु परिवर्तन के जटिल और हानिकारक मुद्दों के बीच, हमारे शहरों के अंधेरे के साथ जुड़ना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण और जरूरी है। दुनिया भर में शहरी विकास असमान है और हम पहले से ही प्रकाश प्रदूषण के कारण होने वाली समस्याओं को और अधिक बढ़ाएंगे।

यह वक्त हमारे लिए अंधेरे को गले लगाने का है।

(लेखक यूनाइटेड किंगडम के लंकास्टर शहर स्थित लंकास्टर विश्व विद्यालय में अर्बन डिजाइन विभाग में बतौर प्रोफेसर कार्यरत हैं )

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