एनसीएपी के दायरे और बाहर के शहरों के बीच पीएम 2.5 के रुझानों में कम अंतर

यूएन इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई पर जारी सीएसई ने विश्लेषण जारी किया
एनसीएपी के दायरे और बाहर के शहरों के बीच पीएम 2.5 के रुझानों में कम अंतर
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राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम ( एनसीएपी ) के तहत आने वाले शहरों और इसके दायरे से बाहर के शहरों के बीच पीएम 2.5 ( पार्टिकुलेट मैटर 2.5) रुझानों में बमुश्किल कोई अंतर है।

यह बात यूएन इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काई पर जारी सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ( सीएसई ) के एक नए विश्लेषण में कही गई है।

सीएसई के विश्लेषण में कहा गया है कि शहरों के दोनों समूह विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता में समान मिश्रित प्रवृत्तियों को दर्शाते हैं। इसका मतलब है कि उन्हें राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में सक्षम होने के लिए कण अथवा पर्टिकुलेट प्रदूषण के स्तर में भारी कमी लाने की आवश्यकता है।

एनसीएपी ने 2017 के आधार वर्ष से 2024 तक पीएम2.5 और पीएम 10 सांद्रता में 20-30 प्रतिशत की कमी का लक्ष्य राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित किया है, लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( सीपीसीबी ) द्वारा प्रदर्शन से जुड़े फंडों के वितरण के लिए एनसीएपी शहरों के एक नवीनतम मूल्यांकन में केवल पीएम 10 डेटा पर विचार किया गया है जो मुख्य्तः धूल के बड़े कण हैं।

चूंकि पीएम 2.5 की निगरानी (छोटे कण जो बहुत अधिक हानिकारक हैं) सीमित है अतः मूल्यांकन के लिए पीएम 2.5 में कमी के आधार पर शहरों का एक समान मूल्यांकन नहीं किया गया है। 

सीएसई ने शहरों में पीएम 2.5 के स्तर का राष्ट्रीय विश्लेषण किया है और एनसीएपी और गैर-एनसीएपी दोनों शहरों में प्रवृत्ति को समझने के लिए डेटा उपलब्ध होने के अलावा राष्ट्रीय स्वच्छ वायु मानकों को पूरा करने के लिए शहरों के दोनों समूहों में आवश्यक कमी के स्तर का भी विश्लेषण किया है।

इसने मैनुअल और रीयल टाइम मॉनिटरिंग, शहरों में पीएम10 और पीएम 2.5 की निगरानी के संदर्भ में वायु गुणवत्ता निगरानी की स्थिति और लंबी अवधि की वायु गुणवत्ता प्रवृत्ति के निर्माण और सत्यापन के लिए डेटा गुणवत्ता की चुनौतियों का खुलासा किया है।

सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं, “हालांकि यह उत्साहजनक है कि क्लीन एयर एक्शन की फंडिंग शहरों के प्रदर्शन और वायु गुणवत्ता में सुधार प्रदर्शित करने की उनकी क्षमता से जुड़ा हुआ है। 

लेकिन पीएम 10 की केवल मैनुअल निगरानी पर निर्भरता स्पष्ट रूप से खर्च में पूर्वाग्रह पैदा करती है क्योंकि यह धूल नियंत्रण पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है और इसमें उद्योग, वाहनों, अपशिष्ट और ठोस ईंधन जलाने से हुए प्रदूषण का हिसाब नहीं होता।”

उन्होंने कहा, “पीएम 2.5 और प्रमुख गैसों के विस्तृत निगरानी नेटवर्क को लेवेरज करने की आवश्यकता है ताकि सभी क्षेत्रों में जोखिम को अधिक प्रभावी ढंग से कम करने के लिए बहु-प्रदूषक कार्रवाई को प्राथमिकता दी जा सके।”

सीएसई के प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी कहते हैं कि जैसा कि सिस्टम अधिक प्रदर्शन उन्मुख होता जा रहा है और रियाल टाइम वायु गुणवत्ता निगरानी का विस्तार हो रहा है। ऐसे में रियल टाइम डेटा के गुणवत्ता नियंत्रण के लिए मजबूत प्रोटोकॉल और विधियों को विकसित करना और परिभाषित करना और डेटा प्रोसेसिंग, एनालिटिक्स, डेटा अंतराल और डेटा पूर्णता को संबोधित करने के लिए मानक तरीकों को अपनाना आवश्यक है।

इसके अलावा राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता लक्ष्य के साथ प्रदर्शन और अनुपालन को सत्यापित करने के लिए एक विश्वसनीय प्रवृत्ति का भी निर्माण करना होगा।

विश्लेषण में भारत में 2021 में सक्रिय 332 रियल टाइम निगरानी स्टेशनों को शामिल किया गया है, जो 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 172 शहरों में फैले हुए हैं। यह सीपीसीबी की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा पर निर्भर है।

हालांकि, एनसीएपी की संचालन समिति की 29 जुलाई, 2022 की 5वीं बैठक की कार्रवाई में और भी स्टेशनों को सूचीबद्ध किया गया है। वर्तमान में 378 शहरों में 882 मैनुअल स्टेशन हैं और 192 शहरों में 36 सीएएक्यूएम ( सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी ) स्टेशन हैं। यह विश्लेषण केवल पीएम 2.5 डेटा पर केंद्रित है, जिसे सीपीसीबी के रीयल टाइम डेटा पोर्टल से इसके सबसे छोटे प्रारूप में प्राप्त किया गया है।

डेटा को और साफ और संशोधित किया गया है और यूनाइटेड स्टेट्स एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी पद्धति के आधार पर प्रत्येक स्टेशन के लिए 24 घंटे के मूल्यों की गणना की गई है। इस पद्धति के अनुसार वार्षिक औसत की गणना तिमाही औसतों के औसत के रूप में की गई है, लेकिन डेटा गुणवत्ता के मुद्दों को देखते हुए डेटा पूर्णता की आवश्यकता को थोड़ा संशोधित किया गया है ताकि शहरों के एक बड़े पूल को शामिल किया जा सके।

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