सीसा: अदृश्य विष जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा
सीसा एक अदृश्य विष है जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन चुका है
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सीसे का कोई भी स्तर सुरक्षित नहीं है
यह हृदय संबंधी बीमारियों, तंत्रिका तंत्र की क्षति और बच्चों में मानसिक विकास की रुकावट का कारण बनता है।
इस समस्या का समाधान केवल सरकारी नीतियों में नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता में भी निहित है।
सीसा, जिसे हम सामान्यतः औद्योगिक उपयोग की एक साधारण धातु मानते हैं, वास्तव में एक अदृश्य विष है जो हमारे शरीर, पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में चेतावनी दी है कि सीसे का कोई भी स्तर सुरक्षित नहीं है। यह धातु हृदय संबंधी बीमारियों, तंत्रिका तंत्र की क्षति और बच्चों में मानसिक विकास की रुकावट का एक प्रमुख कारण है।
डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि यह समस्या पूरी तरह रोकथाम योग्य है, फिर भी हर साल इससे लगभग 15 लाख मौतें होती हैं। यह आंकड़ा न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोरी का संकेत है, बल्कि पर्यावरणीय न्याय के असंतुलन की ओर भी इशारा करता है।सीसा आज हमारे चारों ओर फैला हुआ है।
पेंट, बैटरियों, सौंदर्य प्रसाधनों, पारंपरिक औषधियों, मसालों और यहां तक कि पानी की पाइपलाइन तक में इसका अस्तित्व देखा जा सकता है।
पुराने भवनों की दीवारों पर चढ़ा हुआ पेंट धीरे-धीरे झड़कर धूल बन जाता है, और बच्चे जब उस वातावरण में सांस लेते हैं या खेलते हैं, तो सीसा उनके शरीर में प्रवेश कर जाता है। वायु, जल और मिट्टी के माध्यम से यह संपर्क वर्षों तक बना रहता है।
यही कारण है कि कई देशों में, विशेषकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, लोग अनजाने में इस विष के स्थायी संपर्क में हैं। सीसे के विषाक्त प्रभाव शरीर में धीरे-धीरे प्रकट होते हैं। वयस्कों में यह धातु रक्तचाप को बढ़ाती है, धमनियों को कठोर करती है और हृदयाघात या स्ट्रोक का जोखिम बढ़ा देती है।
गुर्दों की कार्यक्षमता पर इसका सीधा असर पड़ता है, और लंबे समय तक संपर्क रहने पर यह तंत्रिका तंत्र को भी कमजोर कर देता है। पुरुषों में प्रजनन क्षमता घटती है और महिलाओं में गर्भस्थ शिशु के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, सीसे के कारण होने वाली बीमारियों का सबसे अधिक बोझ हृदय संबंधी विकारों और स्ट्रोक के रूप में सामने आता है।परंतु सबसे भयावह प्रभाव बच्चों में देखा जाता है।
बच्चों का शरीर वयस्कों की तुलना में चार से पांच गुना अधिक सीसा अवशोषित करता है। यह धातु उनके विकसित होते मस्तिष्क में प्रवेश कर, तंत्रिकाओं की क्रियाओं को बाधित करती है। इसके परिणामस्वरूप उनकी सीखने की क्षमता घटती है, आईक्यू कम होता है, स्मृति और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कमजोर पड़ती है।
कई मामलों में बच्चे व्यवहारिक रूप से आक्रामक या अत्यधिक चिड़चिड़े हो जाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो सीसा शरीर में कैल्शियम, जिंक और आयरन जैसे आवश्यक खनिजों की जगह ले लेता है, जिससे एंजाइमों की सामान्य कार्यप्रणाली बाधित होती है।
यही कारण है कि 5 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से भी कम रक्त स्तर पर सीसा बच्चों के लिए खतरनाक सिद्ध होता है।सीसे का यह संकट केवल स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि आर्थिक नुकसान का भी है। कम्यूनिकेशन अर्थ एंड एनवायरमेंट नामक पत्रिका में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार, बच्चों के सीसे के संपर्क से दुनिया को हर साल लगभग 3.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है।
कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय और सिंगापुर के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि यह आर्थिक बोझ मुख्य रूप से उन देशों पर पड़ता है जहां गरीबी और नियामक ढांचा दोनों कमजोर हैं।
भारत, बांग्लादेश और अफ्रीकी देशों में सीसा पुनर्चक्रण उद्योगों की अव्यवस्थित व्यवस्था इस खतरे को और बढ़ा रही है।वर्तमान में दुनिया के कई देशों ने पेट्रोल से सीसा हटाने में सफलता पाई है, परंतु अब पेंट, बैटरी और कॉस्मेटिक उत्पादों में इसकी उपस्थिति चिंता का विषय बनी हुई है।
डब्ल्यूएचओ और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने इस वर्ष 19 से 25 अक्टूबर तक ‘तेरहवां अंतरराष्ट्रीय सीसा विषाक्तता रोकथाम सप्ताह’ मनाने की घोषणा की है। इस अवसर पर डब्ल्यूएचओ के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग के निदेशक डॉ. रुएडिगर क्रेच ने कहा, “सीसे का कोई भी स्तर सुरक्षित नहीं है।
हर बच्चा उस भविष्य का हकदार है जो सीसे के विष से मुक्त हो।” डब्ल्यूएचओ ने सभी सरकारों, समुदायों और स्वास्थ्य एजेंसियों से अपील की है कि वे निर्णायक कदम उठाएं ताकि इस संकट को जड़ से समाप्त किया जा सके।भारत में भी इस दिशा में कुछ कदम उठाए गए हैं। पेट्रोल में सीसे पर प्रतिबंध, कुछ राज्यों में सीसा-रहित पेंट का प्रोत्साहन, और बैटरी पुनर्चक्रण के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
लेकिन जमीनी स्तर पर इन नियमों के पालन में कमी है। पुराने घरों की दीवारें, सड़क किनारे स्थित अनधिकृत बैटरी रीसाइक्लिंग इकाइयांं और मसालों में मिलावट जैसी समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस दिशा में दिशानिर्देश दिए हैं, परंतु इनकी निगरानी और जन-जागरूकता दोनों को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती बढ़ते विद्युतीकरण और इलेक्ट्रिक वाहनों के विस्तार से जुड़ी है। इलेक्ट्रिक बैटरियों की बढ़ती मांग के साथ यदि पुनर्चक्रण प्रक्रिया सुरक्षित नहीं रखी गई, तो यह नया हरित संक्रमण भी सीसे का नया स्रोत बन जाएगा।
डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि असंगठित रीसाइक्लिंग उद्योग हवा, मिट्टी और जल में सीसे का स्तर कई गुना बढ़ा सकते हैं। यदि इसे अभी नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह न केवल स्वास्थ्य संकट बल्कि पर्यावरणीय असमानता का भी प्रतीक बनेगा। इस समस्या का समाधान केवल सरकारी नीतियों में नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता में भी निहित है।
माता-पिता को यह जानना आवश्यक है कि बच्चों में कैल्शियम और आयरन की कमी सीसे के अवशोषण को बढ़ा देती है। इसलिए संतुलित पोषण और स्वच्छ वातावरण बच्चों की सुरक्षा की पहली शर्त है। घरों में पुराने पेंट को हटाना, सीसा-रहित रंगों का उपयोग करना और बाजार से मसाले या कॉस्मेटिक खरीदते समय उनकी गुणवत्ता पर ध्यान देना भी आवश्यक कदम हैं।
स्कूलों और सामुदायिक स्तर पर "सीसा जागरूकता अभियान" चलाना अब समय की मांग है।सीसा एक मौन हत्यारा है जो दिखता नहीं, पर पीढ़ियों तक असर छोड़ जाता है। यह रसायन हमारे शरीर में नहीं, बल्कि समाज की नीतियों, लापरवाही और असमानता में जमा होता है।
डब्ल्यूएचओ की यह चेतावनी हमें याद दिलाती है कि आधुनिकता की दौड़ में यदि हमने स्वास्थ्य और सुरक्षा को पीछे छोड़ दिया, तो विकास का कोई अर्थ नहीं रहेगा। अब समय है कि सरकारें कठोर नीतियाँ बनाएं, उद्योग जिम्मेदारी निभाएं और नागरिक जागरूक बनें। हर बच्चा, हर परिवार और हर देश उस भविष्य का हकदार है जो सीसे के विष से मुक्त हो।
यह केवल एक वैज्ञानिक चेतावनी नहीं, बल्कि मानवता के लिए एक नैतिक दायित्व है। एक स्वच्छ, सुरक्षित और स्वस्थ समाज की दिशा में पहला कदम यही है — सीसे से मुक्ति का संकल्प।