कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मेलमैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि वातावरण में बढ़ता वायु प्रदूषण महिलाओं की हड्डियों के लिए खतरनाक है। रिसर्च के मुताबिक बढ़ती उम्र में वायु प्रदूषण का संपर्क महिलाओं में बोन मिनरल डेंसिटी में कमी के साथ ऑस्टियोपोरोसिस से भी जुड़ा हुआ है। इसकी वजह से हड्डियों में फ्रैक्चर आने के साथ-साथ उसके टूटने का भी जोखिम बढ़ जाता है।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या भारतीय महिलाओं में बढ़ती उम्र के साथ हड्डियों के कमजोर होने और ऑस्टियोपोरोसिस के लिए क्या बढ़ता वायु प्रदूषण भी जिम्मेवार है। देखा जाए तो देश के कई हिस्सों में वायु गुणवत्ता पहले ही काफी खराब हो चुकी है। वहीं दिल्ली-फरीदाबाद जैसे शहरों का तो बुरा हाल है।
गौरतलब है कि इससे पहले भी शोध में इस बात के सबूत सामने आए थे कि वायु प्रदूषण महिलाओं की हड्डियों के लिए खतरनाक हो सकता है। लेकिन यह पहला मौका है जब वैज्ञानिकों ने पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं में बढ़ते वायु प्रदूषण और हड्डियों के कमजोर होने का पता लगाया है। इस रिसर्च के नतीजे द लांसेट डिस्कवरी साइंस से जुड़े जर्नल ई क्लिनिकल मेडिसिन में प्रकाशित हुए हैं जोकि एक ओपन एक्सेस जर्नल है।
रिसर्च से पता चला है कि यह प्रभाव लंबर स्पाइन में कहीं ज्यादा स्पष्ट थे। इतना ही नहीं सामान्य उम्र बढ़ने के साथ होते नुकसान से यदि तुलना करें तो नाइट्रस ऑक्साइड इस हिस्से के लिए दोगुना हानिकारक था।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने महिला स्वास्थ्य पहल के लिए 161,808 पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है। साथ ही उन्होंने इन महिलाओं के घर के आधार पर वायु प्रदूषकों जैसे पीएम 10, नाइट्रिक ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड के जोखिम का अनुमान लगाया है।
साथ ही उन्होंने ड्यूल एनर्जी एक्स-रे अब्सॉर्पटीओमेट्री तकनीक की मदद ली है। इस तकनीक की मदद से शोधकर्ताओं ने इन महिलाओं में पहले, तीसरे और छठे वर्ष में बोन मिनरल डेंसिटी (बीएमडी) को मापा था।
रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक नाइट्रोजन ऑक्साइड के चलते लंबर स्पाइन की बोन मिनरल डेंसिटी में हर वर्ष 1.22 फीसदी की दर से गिरावट दर्ज की गई थी। देखा जाए तो यह प्रभाव शरीर के किसी भी हिस्से में उम्र बढ़ने के साथ बोन मिनरल डेंसिटी में आती गिरावट का करीब दोगुना है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह प्रभाव ऑक्सीडेटिव क्षति और अन्य तंत्रों के माध्यम से हड्डी की कोशिका की होती मृत्यु के कारण होते हैं। हालांकि बीएमडी में आती इस गिरावट से हड्डियों में फ्रैक्चर का खतरा कितना बढ़ जाएगा यह अभी भी शोध का विषय है।
इस बारे में कोलंबिया मेलमैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डिडिएर प्राडा का कहना है कि रिसर्च के नतीजे पुष्टि करते हैं कि खराब वायु गुणवत्ता हड्डियों को होते नुकसान के लिए जिम्मेवार कारक हो सकती हैं। पहली बार इस बात के सबूत हैं कि विशेष रूप से नाइट्रोजन ऑक्साइड, हड्डियों को होने वाले नुकसान में विशेष रूप से योगदान देता है। वहीं लंबर स्पाइन इस क्षति के सबसे ज्यादा संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है।
भारत में एक बड़ी समस्या है कम होती बोन मिनरल डेंसिटी
इससे पहले 204 देशों और क्षेत्रों में शोधकर्ताओं ने ओस्टियोपोरोसिस, कम होती बोन मिनरल डेंसिटी और उससे जुड़े फ्रैक्चर को लेकर जो अनुमान लगाए थे उनके अनुसार वैश्विक स्तर पर कम होती बोन मिनरल डेंसिटी 2019 में 1,66,47,466 विकलांगता-समायोजित जीवन-वर्षों के बराबर थी।
इतना ही नहीं इसकी वजह से दुनिया भर में 437,884 लोगों की मौत हो गई थी। इसी तरह यदि 1990 से 2019 के बीच देखें तो इस दौरान कम होती बोन मिनरल डेंसिटी और उससे जुड़े फ्रैक्चर के कारण विकलांगता-समायोजित जीवन-वर्षों में 121 फीसदी की वृद्धि हुई है।
देखा जाए तो लो कम होती बोन मिनरल डेंसिटी और उससे जुड़े फ्रैक्चर का सबसे ज्यादा बोझ भारत पर पड़ रहा है। देखा जाए तो भारत में 2019 में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा 25.1 लाख विकलांगता-समायोजित जीवन-वर्षों के बराबर था। इसके बाद चीन (18.4 लाख), अमेरिका (8.19 लाख), जापान (3.23 लाख) और 2.98 लाख विकलांगता-समायोजित जीवन-वर्षों के साथ जर्मनी का नंबर आता है।
वहीं भारत में वायु प्रदूषण की जो स्थिति है वो किसी से भी नहीं छुपी है। भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है।
हाल ही में भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य और वायु प्रदूषण को लेकर किए एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में औसतन करीब 18.7 फीसदी ग्रामीण महिलाएं ऐसे घरों में रह रही हैं, जहां वायु प्रदूषण का स्तर हानिकारक है। यह प्रदूषण बुजुर्ग और अधेड़ उम्र की महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।
देश में यह समस्या कितनी बड़ी है इसका अंदाजा एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट के नतीजों से लगा सकते हैं जिनके अनुसार बढ़ता प्रदूषण हर दिल्लीवासी से उसके जीवन के औसतन 10.1 साल लील रहा है, जबकि बढ़ते प्रदूषण के चलते लखनऊ वालों की औसत आयु 9.5 साल तक घट सकती है।
वहीं यदि एक औसत भारतीय की जीवन सम्भावना की बात करें तो बढ़ता प्रदूषण उसमें औसतन पांच साल तक कम कर रहा है। मतलब यह कुपोषण और धूम्रपान से भी कहीं ज्यादा खतरनाक है।
ऐसे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता एंड्रिया बैकारेली का कहना है कि, "वायु प्रदूषण के जोखिम में आया सुधार, विशेष रूप से नाइट्रोजन ऑक्साइड में आई कमी, पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं में हड्डियों को होने वाली क्षति को कम कर सकता है। इससे हड्डी में फ्रैक्चर का जोखिम घट जाएगा। साथ ही यह पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी लागत के बोझ को कम करने में मददगार होगा।
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