पिछले पांच वर्षों में 1798 परियोजनाओं में किया गया पर्यावरण मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन
पिछले पांच वर्षों में करीब 1798 परियोजनाओं ने देश में पर्यावरण मंजूरी सम्बन्धी शर्तों का उल्लंघन किया है| यह जानकारी आज राज्यसभा में श्रीमती वेदना चौहाण द्वारा पूछे एक प्रश्न के जवाब में सामने आई है|
इन परियोजनाओं में सबसे ज्यादा हिस्सा औद्योगिक परियोजनाओं का है| जिसमें 679 परियोजनाओं में नियमों का उल्लंघन किया गया है| इसके बाद इन्फ्रास्ट्रक्चर और सीआरजेड की 626 परियोजनाएं, कोयले को छोड़कर खनन से जुड़ी 305 परियोजनाएं, कोयला खनन 92 परियोजनाएं, थर्मल पावर से जुड़ी 59 और हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी की 37 परियोजनाएं शामिल हैं|
गौरतलब है कि देश में ईआईए अधिसूचना में निर्दिष्ट प्रक्रिया के अनुसार पर्यावरण एवं वन और जलवायु परिवर्तन (एमओईएफ व सीसी मंत्रालय) द्वारा परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी दी जाती है। किसी भी औद्योगिक, इन्फ्रास्ट्रक्चर या खनन परियोजना को शुरू करने से पहले सरकारी या प्राइवेट एजेंसी को पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) की रिपोर्ट सौंपनी होती है। इस रिपोर्ट में परियोजना के कारण पर्यावरण या जंगल को होने वाले संभावित नुकसान और उसकी भरपाई के तरीकों की जानकारी दी जाती है। इसी के आधार पर सरकार की ओर से मंजूरी मिलने के बाद ही परियोजना शुरू करने का प्रावधान है लेकिन इसके बावजूद कई परियोजनों में मंजूरी मिलने के बाद मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन किया जाता है|
यदि राज्य स्तर पर देखें तो इनमें सबसे ज्यादा परियोजनाएं हरियाणा से सम्बन्ध रखती हैं| जहां 259 परियोजनाओं में पर्यावरण मंजूरी सम्बन्धी शर्तों की अवहेलना की गई है| इसके बाद महाराष्ट्र (221) और फिर उत्तराखंड (194) का नंबर आता है|
इसी तरह झारखण्ड में 190, पंजाब में 169, हिमाचल प्रदेश में 152, असम में 109, राजस्थान में 91, उत्तर प्रदेश में 80, तेलंगाना में 72, बिहार में 67 परियोजनाएं, मेघालय में 36 और दिल्ली की 27 परियोजनाएं शामिल हैं|
वहीं नियमों को ताक पर रखने वालों में कर्नाटक में 25, पश्चिम बंगाल की 19, ओडिशा की 14, छत्तीसगढ़ की 13, चंडीगढ़ की 11 और जम्मू कश्मीर की 9 परियोजनाएं शामिल हैं| जबकि त्रिपुरा में 8, आंध्रप्रदेश की 6, केरल की 5, सिक्किम, मणिपुर और मध्यप्रदेश में चार-चार, तमिलनाडु में तीन, गोवा और अरुणाचलप्रदेश में दो-दो और नागालैंड और गुजरात दोनों राज्यों की एक-एक परियोजनाएं शामिल हैं|
गौरतलब है कि पर्यावरण मंजूरी के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 31 जुलाई, 2020 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के लिए एक आदेश जारी किया था| जिसमें मंत्रालय को पर्यावरण मंजूरी के मामले में प्रभावी कदम उठाने की सलाह दी थी|
कोर्ट ने कहा था कि किसी भी प्रोजेक्ट के एसेस्समेंट के आधार पर पर्यावरण मंजूरी के लिए केवल शर्तें तय करना ही काफी नहीं है| जब तक की उसके पूरा हो जाने तक उसकी निगरानी नहीं की जाती और जब तक उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता तब तक मंत्रालय की जिम्मेदारी बनी रहती है|