
जर्नल जिओ हेल्थ में प्रकाशित एक नए शोध से पता चला है कि वातावरण में बढ़ता कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर हमारे सोचने समझने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलोरेडो द्वारा किये गए इस अध्ययन से पता चला है कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है। यह वृद्धि न केवल घरों के बाहर बल्कि अंदर भी हो रही है। शोध के अनुसार सदी के अंत तक घरों के अंदर कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 1400 पीपीएम तक पहुंच जायेगा। जोकि वर्त्तमान में आउटडोर सीओ2 के स्तर से करीब तीन गुणा ज्यादा है। गौरतलब है कि हवाई के मौना लोआ ऑब्जर्वेटरी के आंकड़े के मुताबिक, कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 415.26 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) से ज्यादा हो चुका है। औद्योगिक क्रांति के बाद से इसके स्तर में लगातार वृद्धि हो रही है। आईपीसीसी के अनुमान के अनुसार सदी के अंत तक वातावरण में सीओ2 का स्तर 930 पीपीएम हो जायेगा। जबकि शहरी इलाकों में बढ़कर 1030 पीपीएम तक पहुंच जायेगा। वातावरण में सीओ2 का यह स्तर हमारे सोचने समझने की क्षमता और निर्णय लेने की काबिलियत को प्रभावित कर सकता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार 1400 पीपीएम पर सीओ हमारी सामान्य बुद्धिमता को 25 फीसदी तक कम कर सकती है। जबकि जटिल निर्णय लेने की काबिलियत में करीब 50 फीसदी तक की कटौती कर सकती है। इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता क्रिस करनौसकर ने बताया कि यह ने केवल बच्चों पर असर डालेगा, बल्कि एक आम इंसान, व्यापारी, वैज्ञानिक, शिक्षक, नीति निर्माता हर किसी पर इसका असर पड़ेगा।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलोरेडो में प्रोफेसर शैली मिलर के अनुसार किसी बिल्डिंग में वेंटिलेशन बहुत जरुरी होता है। यह इमारतों में जरुरी हवा पहुंचाता है और सीओ2 के स्तर को नियंत्रित करता है। लेकिन जब बिल्डिंग में बहुत ज्यादा लोग रहते हैं, या फिर वहां वेंटिलेशन की सही व्यवस्था नहीं होती। तो ऐसे में सभी के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन और ताजी हवा नहीं मिल पाती। ऐसे में हम सांस के जरिये अधिक मात्रा में सीओ2 लेने लगते हैं। जिससे हमारे रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ जाता है। ऐसे में हमारे दिमाग तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन भी कम हो जाती है। जिसके चलते हमें नींद आने लगती है। साथ ही दिमागी तनाव भी बढ़ जाता है। वहीं इसका असर हमारे सोचने समझने की क्षमता पर भी पड़ने लगता है। शोधकर्ताओं के अनुसार बाहर के मुकाबले घर के अंदर सीओ2 की मात्रा अधिक होती है। जबकि शहरी इलाकों में ग्रामीण की तुलना में सीओ2 का स्तर अधिक होता है। हालांकि बिल्डिंग के बाहर और अंदर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बराबर होती है। पर बिल्डिंग में मौजूद लोग जो सांस के साथ इसे छोड़ते हैं उससे वहां सीओ2 की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि इनडोर सीओ2 के स्तर में कई तरीकों से इजाफा किया जा सकता है। पर इसका सबसे अच्छा तरीका है कि इसे हानिकारक स्तर पर पहुंचने से पहले ही रोक दिया जाए। जिसके लिए जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन में कमी लाना सबसे बेहतर उपाय है। उनके अनुसार इसके लिए पेरिस समझौते में जो मार्ग सुझाया गया है, उसका सभी को पालन करना होगा।
करनौसकर और उनकी टीम के अनुसार यह एक जटिल समस्या है। इस शोध के नतीजे शुरुवाती हैं। अभी इसपर और काम करना बाकी है। पर इतना जरूर है कि जलवायु परिवर्तन के कुछ ऐसे भी प्रभाव हैं जो अभी सामने नहीं आये हैं। सीओ2 का हमारे सोचने समझने और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करना ऐसा ही एक असर है। जिसपर आगे भी और अध्ययन करने की जरुरत है। इसका असर हमारी सोच से कहीं ज्यादा जटिल है।