प्लास्टिक कचरे के पहाड़ पर खाना ढूंढती गाएं; फोटो: आईस्टॉक
प्लास्टिक कचरे के पहाड़ पर खाना ढूंढती गाएं; फोटो: आईस्टॉक

भारतीय वैज्ञानिकों ने खोजा ऐसा फंगस जो प्लास्टिक का बेहद जल्द कर सकता है सफाया

भारतीय वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि ‘क्लैडोस्पोरियम स्पैरोस्पर्मम’ नामक यह फंगस डिस्पोजेबल प्लास्टिक बैग बनाने वाले पॉलीमर को बड़ी तेजी से नष्ट कर सकता है
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भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसा फंगस खोजा है जो सिंगल यूज प्लास्टिक का भी बेहद जल्द सफाया कर सकता है। यह खोज चेन्नई के भारतीदासन और मद्रास विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा की गई है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं।

शोधकर्ताओं ने ‘क्लैडोस्पोरियम स्पैरोस्पर्मम’ नामक इस फंगस को सूक्ष्म जीवों से संक्रमित माइक्रोप्लास्टिक्स के तैरते मलबे से अलग किया है। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा इस पर की गई रिसर्च से पता चला है कि यह फंगस आमतौर पर डिस्पोजेबल प्लास्टिक बैग बनाने में उपयोग होने वाले पॉलिमर को बड़ी तेजी से तोड़, उसका वजन कम करने में मदद कर सकता है।

हालांकि इससे पहले भी ऐसे फंगसों की पहचान की गई है, जो प्लास्टिक को नष्ट करने में मदद कर सकते थे, लेकिन प्लास्टिक को तोड़ने की उनकी गति धीमी थी। ऐसे में वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक को तेजी से नष्ट करने में मददगार फंगस की पहचान के लिए शहरी कचरे के ढेर और दूषित पानी पर तैरते प्लास्टिक के टुकड़ों पर पाए गए 33 फंगस प्रजातियों की जांच की है।

इनमें से 28 फंगस ऐसे थे, जो बेहद कम घनत्व वाली पॉलीथीन (एलडीपीई) को तोड़ सकने की क्षमता रखते थे। जब इन फंगसों का परीक्षण किया गया तो इन सभी में ‘क्लैडोस्पोरियम स्पैरोस्पर्मम’ नामक फंगस ने सबसे बेहतर प्रदर्शन किया। 

इसके बाद वैज्ञानिकों ने बेहद कम घनत्व वाली पॉलीथीन (एलडीपीई) के एक छोटे टुकड़े को फंगस कल्चर में डाला और इसकी तुलना एलडीपीई के उस टुकड़े से की जिसका इलाज नहीं किया गया था।

कैसे प्लास्टिक को तेजी से नष्ट करता है ‘क्लैडोस्पोरियम स्पैरोस्पर्मम’

इस फंगस ने प्लास्टिक से चिपकने और विशेष एंजाइम जारी करने के लिए मायसेलिया नामक छोटे जड़ जैसे भागों का उपयोग किया। इन एंजाइमों ने प्लास्टिक को छोटे टुकड़ों में बदल दिया। इसकी वजह से प्लास्टिक के टुकड़े की संरचना ढह गई, उसमें दरारें, गड्ढे और छिद्र बन गए। साथ ही सतह खुरदरी हो गई।

इसकी वजह से प्लास्टिक के टुकड़े की संरचना ढह गई, उसमें दरारें, गड्ढे और छिद्र बन गए। साथ ही सतह खुरदरी हो गई। नतीजन इन बदलावों की वजह से जहां प्लास्टिक के टुकड़े का वजन एक सप्ताह में 15.2 फीसदी तक कम हो गया।

वहीं 31 दिनों में इसमें 50 फीसदी तक की गिरावट आ गई। वहीं दूसरी तरफ प्लास्टिक के जिस टुकड़े को फंगस कल्चर में नहीं डाला गया, उसके वजन में कोई बदलाव या कमी नहीं देखी गई। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि यह फंगस प्लास्टिक के टुकड़े को नष्ट करने में मदद करता है।

गौरतलब है कि आज दुनिया में बढ़ता प्लास्टिक कचरा एक बड़ी चुनौती बन चुका है। इसमें सिंगल यूज प्लास्टकी की बेहद अहम भूमिका रही है। बता दें कि इस बेहद कम घनत्व वाली पॉलीथीन (एलडीपीई) का उपयोग डिस्पोजेबल और किराना बैग के साथ-साथ खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में भी किया जाता है।

गंगा-यमुना से लेकर प्लेसेंटा तक में मिल चुके हैं प्लास्टिक के सबूत

आंकड़ों की मानें तो कुल प्लास्टिक उत्पादन में 60 फीसदी का योगदान यह एलडीपीई ही देता है। इतना ही पर्यावरण में लगातार बढ़ता इसका कचरा अनिगिनत समस्याएं भी पैदा कर रहा है। प्लास्टिक के महीन कण आज हमारे भोजन, पानी यहां तक की जिस हवा में हम सांस ले रहे हैं, उसमें तक घुल चुके हैं। बता दें कि हाल ही में वैज्ञानिकों को गंगा-यमुना के जल में भी माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी के सबूत मिले थे।

प्लास्टिक के कई कण ऐसे हैं जो हमारे शरीर में भी अपनी पैठ बना चुके हैं। एक अन्य रिसर्च के हवाले से पता चला है कि लोग हर सप्ताह तकरीबन पांच ग्राम के बराबर माइक्रोप्लास्टिक के कण निगल रहे हैं, जो करीब-करीब एक क्रेडिट कार्ड के वजन के बराबर हैं। 2022 में पहली बार इंसानी फेफड़ों में माइक्रोप्लास्टिक्स के कण पाए गए थे।

इसी तरह वैज्ञानिकों को अब तक इंसानी रक्त, फेफड़ों के साथ नसों में भी माइक्रोप्लास्टिक के अंश मिल चुके हैं। वहीं जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित एक अध्ययन में अजन्मे शिशुओं के प्लेसेंटा यानी गर्भनाल में भी माइक्रोप्लास्टिक के होने के सबूत मिले हैं। मतलब की धरती, आकाश, समुद्र, ऊंचे पहाड़ और दूर ध्रुवों तक भी प्लास्टिक पहुंच चुका है।

इतना ही नहीं वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक में 16,325 केमिकल्स के होने की भी पुष्टि की है। इनमें से 26 फीसदी केमिकल ऐसे हैं जो इंसानी स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए चिंता का विषय हैं। ऐसे में जिस तरह दिनों-दिन प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ता जा रहा है उससे निजात पाने के लिए सभी विकल्पों पर विचार करना जरूरी है, ताकि दुनिया को कभी वरदान समझे जाने वाले इस अभिशाप से जल्द से जल्द छुटकारा मिल सके।

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