
उत्तराखंड के गंगोत्री नेशनल पार्क और भागीरथी इको सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) जैसे अत्यंत संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में उत्तरकाशी जिला प्रशासन द्वारा चालू किए गए एक कचरा-दहन संयंत्र (इंसिनिरेटर) को लेकर स्थानीय सामाजिक संगठनों, पर्यावरणविदों और जनप्रतिनिधियों ने कड़ा विरोध दर्ज किया है और इसे तुरंत बंद करने की मांग की है।
हिमालयी नागरिक दृष्टि मंच नाम के संगठन की ओर से 9 जून, 2025 को भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), जलशक्ति मंत्रालय की नमामि गंगे योजना (एनएमसीजी), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) और अन्य संबंधित अधिकारियों को एक गंभीर आपत्ति पत्र भेजते हुए कहा कि यह न सिर्फ गंगा को विषाक्त बना रहा है बल्कि इसके चलते गंगा में घातक भारी तत्वों की मौजूदगी बढ़ रही है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और राज्य स्तरीय प्राधिकरणों को भेजे गए आपत्ति पत्र में बताया गया है कि उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री धाम के नजदीक, जो कि गंगोत्री नेशनल पार्क और भागीरथी ईएसजेड क्षेत्र में आता है, वहां ऐसी ईकाई की स्थापना और संचालन नहीं किया जा सकता है। यह सिर्फ भागीरथी इको जोन अधिसूचना के प्रावधान 3 (ए-vii) का उल्लंघन करती है, बल्कि सीपीसीबी की रेड कटेगरी में प्रदूषित ईकाइयों में भी यह शामिल हैं।
सीपीसीबी के मुताबिक ऐसी इकाइयां जिनका प्रदूषण सूचकांक 60 से अधिक है, वे लाल श्रेणी में आती हैं और इन्हें इको सेंसिटिव जोन में किसी भी रूप में स्थापित नहीं किया जा सकता। जबकि इंसीनरेटर का प्रदूषण सूचकांक 100 होता है। यानी यह उच्चतम प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों में से एक है।
पत्र में यह आरोप लगाया गया है कि इस इंसीनरेटर की स्थापना के लिए ना तो राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति ली गई और ना ही इसकी कोई जनसुनवाई हुई। इतना ही नहीं, केंद्र व राज्य सरकार द्वारा बार-बार जारी दिशा-निर्देशों को भी नजरअंदाज कर जिला प्रशासन ने यह इकाई सीधे रिसाइकलर के नजदीक एक अत्यंत संवेदनशील और प्रतिबंधित क्षेत्र में संचालित कर दी है।
संगठन के द्वारा भेजे गए पत्र में आरोप है कि भारत सरकार द्वारा जारी सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 के खंड-20 में विशेष रूप से हिमालयी क्षेत्रों के लिए ठोस कचरा प्रबंधन के नियम निर्धारित किए गए हैं लेकिन उत्तरकाशी प्रशासन ने इन सभी नियमों की अनदेखी की है।
सॉलिड वेस्ट रूल्स, 2016 में नियम 20(अ) के अनुसार, पहाड़ियों पर लैंडफिल नहीं बनाया जा सकता। इसकी जगह, प्लेन एरिया में 25 किमी के दायरे में सैनिटरी लैंडफिल स्थापित किया जाना चाहिए। जबकि इसके उलट इंसीनरेटर की राख और अवशेष गंगा घाटी की तरफ सीधे डंप किए जा रहे हैं, जो कि नियमों के विरुद्ध और गंगाजल को विषाक्त करने वाला कार्य है।
पत्र के मुताबिक, स्थानीय निकाय को पर्यटन स्थलों पर कूड़ा ना फेंकने के लिए जागरूकता फैलानी होती है, नियम बनाने होते हैं और टूरिस्ट्स से शुल्क लेकर स्थायी कचरा प्रबंधन सुनिश्चित करना होता है। जबकि स्थानीय निकाय द्वारा न तो कोई सूचना बोर्ड लगाए गए, न कोई जागरूकता अभियान चलाया गया और न ही वैकल्पिक स्थान पर कचरा निस्तारण की व्यवस्था की गई है।
नियम के अनुसार, पहाड़ी क्षेत्रों में स्थानीय प्रोसेसिंग इकाई के लिए स्टेप गार्डेन सिस्टम अपनाया जाना चाहिए ताकि जगह का सही उपयोग हो। इस नियम की अवहेलना करते हुए एक उच्च प्रदूषणकारी संयंत्र लगाया गया है जिसे पहाड़ों में स्थापित ही नहीं किया जाना चाहिए।
प्राधिकरणों को भेजे गए आपत्ति पत्र में यह भी बताया गया है कि इंसीनरेटर से उत्पन्न राख और भारी धातुओं वाले विषैले अवशेषों को सीधे गंगा घाटी की ओर फेंका जा रहा है। इससे गंगाजल की शुद्धता पर सीधा संकट उत्पन्न हो गया है। पत्र में चेतावनी दी गई है कि इस प्रक्रिया से जल में हेवी मेटल्स मिल सकते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ जलीय जीवन और पारिस्थितिकी के लिए भी जानलेवा हो सकता है
पत्र में आरोप है कि यह पूरी तरह से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा घोषित फ्लड जोन और भागीरथी इको जोन के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है। साथ ही स्थानीय प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सूचित किए बिना यह निर्णय लिया गया है, इसलिए इसे तत्काल बंद किया जाना चाहिए।
संगठन की ओर से इस आपत्ति पत्र को भेजने वालों में पार्षद एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमरीकन पुरी, सामाजिक कार्यकर्ता गौतम भट्ट सतार्थ, मुरारी लाल भट्ट, गीता गैरोला, अधिवक्ता डॉ नागेश जगूड़ी और सामाजिक कार्यकर्ता दीपक रमोला शामिल हैं।