वाराणसी में गंगा मैली, सीधे प्रवाहित हो रही है 100 एमएलडी शहर की गंदगी

वाराणसी में बन रहे सीवर ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण में देरी हो रही है और जिसका उद्घाटन हो चुका है, वह क्षमता से केवल 25% सीवर ट्रीट कर पा रहा है
वाराणसी में गंगा में सीधे प्रवाहित होता अस्सी नाला। फोटो: विकास चौधरी
वाराणसी में गंगा में सीधे प्रवाहित होता अस्सी नाला। फोटो: विकास चौधरी
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रिज़वाना तबस्सुम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी शहर का लगभग 33 प्रतिशत गंदा पानी सीधे गंगा में प्रवाहित हो रहा है। इसमें मल कीचड़ भी शामिल है। गंगा पर बन रहे दो सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण में लगातार देरी हो रही है। वहीं, पहले से बने ट्रीटमेंट प्लांट भी क्षमता के मुताबिक सीवर ट्रीट नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि अधिकारियों का दावा है कि दोनों सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनने के बाद शहर का सीवर ट्रीट करके ही गंगा में डाला जाएगा, यह दावा कितना सच साबित होगा, यह कह पाना मुश्किल लगता है। 

गंगा प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह अस्सी नदी (अस्सी नाला) माना जाता है। यहां से प्रतिदिन गंगा नदी में 50 एमएलडी (मिलियन लीटर रोजाना) से अधिक सीवर गिरता है। शहर का लगभग एक चौथाई सीवर का पानी विभिन्न नालों से होते हुए अस्सी में मिलता है। अस्सी नदी (अस्सी नाला) करीब आठ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद गंगा में मिलती है। इसका जल-ग्रहण क्षेत्र करीब 14 वर्ग किलोमीटर के दायरे में है। इसमें औसतन तीन करोड़ लीटर पानी प्रतिदिन बहता है।

गंगा को अस्सी नाले से बचाने के लिए गंगा प्रदूषण विभाग की ओर से रमना में 102 करोड़ रुपए की लागत से एक एसटीपी का निर्माण किया जा रहा है, जिसे नवंबर 2019 में पूरा हो जाना है, लेकिन इसमें देरी हो रही है। नमामि गंगे परियोजना के तहत रमना में एसटीपी निर्माण कार्य शुरू हुआ। पीपीपी मोड पर बनने वाले इस प्लांट को बनाने का जिम्मा एसएल कंपनी ने लिया। इसमें 40 करोड़ 80 लाख रुपये नमामि गंगे को और बाकी का पैसा कंपनी को लगाना था। कंपनी ने यस बैंक से लोन लिया, लेकिन बैंक और कंपनी के कुछ विवाद के चलते पेमेंट रुक गया है। इस वजह से काम रुका हुआ है। 

दूसरा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट रामनगर में बन रहा है। 72.91 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे इस प्लांट की आधारशिला पीएम मोदी ने नवंबर 2018 में रखी थी, लेकिन काम मार्च 2019 में शुरू हुआ, लेकिन जैसा कि मॉनसून में होता है। काम रुक गया, कारण बताया जा रहा है कि बाढ़ आने के कारण काम नहीं हो पाया, अब पानी कम हुआ है तो काम चल रहा है। अधिकारियों का दावा है कि काम जुलाई 2020 तक पूरा हो जाएगा। 

इसके अलावा जिले में इस समय कुल पांच सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम कर रहे हैं। इनमें 9.8 एमएलडी क्षमता का भगवानपुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, 80 एमएलडी का दीनापुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, 12 एमएलडी का डीएलडब्लू सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, 170 करोड़ की लागत से बने 140 एमएलडी दीपापुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और 118 करोड़ से 120 एमएलडी गोईठहां सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट शामिल है।

गोइठहां में बने एसटीपी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं उद्घाटन किया था, लेकिन आज भी मात्र 25 प्रतिशत ही सीवर का शोधन हो रहा है। इसकी वजह भी दिलचस्प है। अधिकारियों का कहना है कि इस ट्रीटमेंट प्लांट में इतना ही सीवर पहुंच पा रहा है, इस वजह से यह प्लांट क्षमता के मुताबिक ट्रीटमेंट नहीं कर पा रहा है।

वहीं, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जांच में स्पष्ट हुआ है कि दीनापुर में बनी नई एसटीपी की शोधन क्षमता 10/10 बीओडी (प्रति 10 लीटर 10 बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड) होनी चाहिए, जबकि वर्तमान में शोधन क्षमता 27/10 बीओडी है।

इसके बारे उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी कालिका सिंह ने बताया कि उनकी टीम एसटीपी की नियमित जांच कर रही है। पिछले माह 80 एमएलडी क्षमता वाले दीनापुर एसटीपी की जांच की और यहां से निकलने वाले जल का परीक्षण किया। पूरी रिपोर्ट मुख्यालय भेज दी गई है।

गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई उत्तर प्रदेश जल निगम वाराणसी के महाप्रबंधक एसके राय बताते हैं कि, 'वाराणसी में रोजाना 300 एमएलडी सीवेज पैदा होता है। इस समय दीनापुर, भगवानपुर, दीपापुर, डीजल लोकोमोटिव वर्क (डीएलडब्लू) और गोईठहां में मौजूदा एसटीपी की मौजूदा क्षमता के साथ केवल 200 एमएलडी सीवेज का निराकरण किया जा रहा है। बाकी सीवर सीधे गंगा में गिर रहा है। हालांकि महाप्रबंधक एसके राय ने ये कहा कि मार्च 2020 तक बचे हुए 100 एमएलडी (जो गंगा में गिर रहा है) भी ट्रीट होने लगेगा।

गंगा में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ा

वाराणसी के तुलसीघाट स्थित एक गैर सरकारी संस्था संकट मोचन फाउंडेशन (एसएमएफ) की रिपोर्ट के अनुसार, गंगा के पानी में कॉलीफॉर्म और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड में लगातार बढ़ोतरी हुई है, इससे मालूम चलता है कि गंगा में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है।

फाउंडेशन के अध्यक्ष विशंभर नाथ मिश्रा बताते हैं कि, 'शहर के कई क्षेत्र में गंगा का पानी पीने के लिए सप्लाई किया जाता है। उन्होंने कहा कि पीने योग्य पानी में कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया 50 एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर- सर्वाधिक संभावित संख्या)/100 मिलीलीटर और नहाने के पानी में 500 एमपीएन/100 मिलीलीटर होना चाहिए जबकि एक लीटर पानी में बीओडी की मात्रा 3 मिलीग्राम से कम होनी चाहिए लेकिन हमारी रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में फेकल कॉलीफॉर्म (प्रदूषक) की संख्या 4.5 लाख थी जो बाद में बढ़कर फरवरी 2019 में 3.8 करोड़ हो गई। यानी यह पानी अगर शहरवासी पी रहे हैं तो वो सेहत के लिए नुकसान देह है।

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