गंगा नदी के पानी पर प्रदूषण और मौसम का किस तरह पड़ता है असर

गंगा नदी के पानी पर प्रदूषण और मौसम का किस तरह पड़ता है असर

मॉनसून के मौसम से पहले नदी के पांच जगहों में घुलित ऑक्सीजन और जैव रासायनिक ऑक्सीजन की मांग, साथ ही साथ नाइट्रेट नाइट्रोजन और क्लोराइड का स्तर काफी अधिक पाया गया।
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भारत में बहने वाली गंगा सबसे पवित्र नदियों में से एक है। नदी आशा, विश्वास का प्रतीक है और इसकी पवित्रता के कारण इसकी पूजा की जाती है। हालांकि मानवजनित गतिविधि के कारण नदी का पानी लगातार प्रदूषित हो रहा है। नदियों के आस-पास के शहरों का अपशिष्ट जल नदी को गंभीर रूप से प्रदूषित कर रहा है। गंगा हिंद महासागर के बंगाल की खाड़ी में गिरती है और इसलिए ज्वार से प्रभावित होती है। मौसम और मॉनसून भी नदी को प्रभावित करते हैं।

अब भारत के पश्चिम बंगाल में गंगा नदी को लेकर एक नया विश्लेषण किया गया है। विश्लेषण इस बात पर प्रकाश डालता है कि नदी में बहने वाला अपशिष्ट जल नदी के पानी की गुणवत्ता को कैसे प्रभावित करता है। यह मौसम के बदलने के साथ किस तरह बदलता है खासकर तब जब ज्वार आता है। यह अध्ययन कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय की सयंती कर और आशुतोष कॉलेज और उनके सहयोगियों ने मिलकर किया है।

गंगा नदी पर ज्वार और मौसम के प्रभाव को बेहतर ढंग से समझने के लिए, सयंती कर और उनके सहयोगियों ने 2014 और 2018 के बीच एक व्यापक जल गुणवत्ता विश्लेषण किया। उन्होंने विशेष रूप से हावड़ा स्टेशन के बीच स्थित पश्चिम बंगाल, भारत में नदी के एक हिस्से पर ध्यान केंद्रित किया जिसमें प्रमुख कोलकाता के पास रेलवे स्टेशन और शहर खरदाह शामिल है। 

एक व्यापक सर्वेक्षण के बाद, शोधकर्ताओं ने पांच प्रमुख मुहानों का चयन किया जहां शहर का अपशिष्ट जल गंगा में बहता है। इन पांच आउटफॉल या मुहानों में हावड़ा के घुसुरी बागबाजार में सर्कुलर नहर, 24 परगना (उत्तर) में दक्षिणेश्वर नहर, हावड़ा में बल्लीखल, और 24 परगना (उत्तर) में खरदाह खल (जिसे टीटागढ़ खल भी कहा जाता है) शामिल है।

प्रत्येक आउटफॉल या मुहाने पर, चार वर्षों के लिए, उन्होंने कई अलग-अलग मापदंडों के अनुसार नदी के पानी की गुणवत्ता की निगरानी की। जिसमें घुलित ऑक्सीजन और जैव रासायनिक ऑक्सीजन की मांग के साथ-साथ विभिन्न भारी धातुओं की सांद्रता और फेकल कोलीफॉर्म स्तर, मानव मल द्वारा होने वाला प्रदूषण भी शामिल हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि विश्लेषण में जीआईएस मैपिंग को भी शामिल किया गया था। जिसकी मदद से घुलित ऑक्सीजन और जैव रासायनिक ऑक्सीजन की मांग, साथ ही साथ नाइट्रेट नाइट्रोजन और क्लोराइड के स्तर, मॉनसून के मौसम से पहले पांच जगहों में से प्रत्येक में काफी अधिक पाया गया।

इसके अतिरिक्त भारी धातु और फेकल कोलीफॉर्म स्तर एक दूसरे के साथ जुड़े होते हैं। एक के माप का उपयोग दूसरे के बारे में अनुमान लगाने के लिए किया जा सकता था। पांच जगहों पर विभिन्न जल गुणवत्ता मानकों पर ज्वार के प्रभाव को गणितीय रूप से मॉडल करने के लिए शोधकर्ताओं ने अपने आंकड़ों का उपयोग भी किया।

कुल मिलाकर विश्लेषण नई जानकारी प्रदान करता है कि मौसमी और ज्वार की स्थितियों के आधार पर, गंगा के इस भाग में अपशिष्ट जल से गंगा के पानी की गुणवत्ता पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है, इसके बारे में पता चलता है। यह जानकारी लोगों को नदी के पानी के सुरक्षित उपयोग के लिए नए दिशानिर्देशों देने में मदद कर सकती है।

अध्ययनकर्ता कहते हैं कि गंगा नदी न केवल लाखों लोगों के लिए विश्वास और आशा का प्रतीक है बल्कि रोज लोगों के उपयोग और पशुधन प्रबंधन के लिए भी अहम है। कोलकाता के आशुतोष कॉलेज, जादवपुर विश्वविद्यालय और नवाजो तकनीकी विश्वविद्यालय के सहयोग से नदी के प्रभाव की जांच की गई। अध्ययन में नदी के पानी के उपयोग के दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए चयनित नदी के हिस्सों में पानी के बाहर निकलने वाले जगहों से नदी में प्रवेश करने वाले प्रदूषकों के प्रवाह पर ज्वार की गतिशीलता और मौसम में बदलाव को शामिल किया गया। यह अध्ययन ओपन-एक्सेस जर्नल पीएलओएस वाटर में प्रकाशित किया गया है।

क्या है वर्तमान में गंगा प्रदूषण की स्थिति

जल शक्ति मंत्रालय के मुताबिक गंगा बेसिन जलग्रहण क्षेत्र की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा नदी बेसिन है, जो देश के कुल भूमि के (8,61,404 वर्ग किमी) का 26 फीसदी है। बेसिन उत्तरी अक्षांशों के बीच स्थित है, जो भारत, नेपाल और बांग्लादेश में फैले 1,086, 000 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करता है। गंगा बेसिन का लगभग 79 फीसदी क्षेत्र भारत में है। बेसिन में 11 राज्य शामिल हैं, जैसे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली। पश्चिम बंगाल में 71,485 किमी जल निकासी क्षेत्र है।  

गंगा बेसिन में लगभग 12,000 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) सीवेज उत्पन्न होता है, जिसके लिए वर्तमान में केवल 4,000 एमएलडी की उपचार की क्षमता है। लगभग 3000 एमएलडी सीवेज गंगा नदी के किनारे स्थित प्रथम और द्वितीय श्रेणी के शहरों से छोड़ा जाता है, जिसके विरुद्ध अब तक लगभग 1000 एमएलडी की उपचार क्षमता का निर्माण किया जा चुका है।

मात्रा के हिसाब से औद्योगिक प्रदूषण का योगदान लगभग 20 प्रतिशत है। लेकिन इसकी विषाक्त और नष्ट न होने वाले कचरे के कारण, इसका बहुत अधिक प्रभाव है। रामगंगा और काली नदियों के जलग्रहण क्षेत्र और कानपुर शहर में औद्योगिक क्षेत्र औद्योगिक प्रदूषण के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। कानपुर में चर्म शोधन कारखाने, आसवनी, पेपर मिल और कोसी, रामगंगा और काली नदी के जलग्रहण क्षेत्र में चीनी मिलें प्रमुख रूप से जिम्मेवार हैं।

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