ध्वनि प्रदूषण से और कितनी होंगी खामोश मौतें!

15 भारतीय शहरों के आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण की जांच में पाया गया कि शोर का स्तर 50 डीबी की सीमा से लगभग 50 प्रतिशत अधिक है
इलेस्ट्रेशन : आईस्टॉक
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ध्वनि प्रदूषण से मौत! यह सुनने, पढ़ने या जानकारी होने के बाद हर जागरूक नागरिक के लिए एक भयावह सच है। और यह सच छत्तीसगढ़ के भिलाई नगर में एक व्यक्ति की ध्वनि प्रदूषण के बाद की गई आत्महत्या से साबित हो गया है। इसलिए कि जिस व्यक्ति की मौत हुई है उसने बकायदा सुसाइड नोट लिखा है कि मेरी मौत के लिए ध्वनि प्रदूषण करने वाला शख्स जिम्मेदार है।

राज्य सहित देश भर की मीडिया रिपोर्ट में इस आत्महत्या की खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई है। कहने के लिए ध्वनि प्रदूषण का जिक्र बहुत कम बार किया जाता है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इस प्रदूषण से हर दिन आम आदमी प्रभावित होता है।

छत्तीसगढ़ में पिछले कई सालों से इस मुद्दे को उठा रहे छत्तीसगढ़ डेली के संपादक सुनील कुमार ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पिछले दो सालों में ध्वनि प्रदूषण से तीन लोगों की मौत हो चुकी है। इसमें एक बच्चा भी शामिल है।

यह मौतें तब और सवाल खड़ा करती हैं कि जब राज्य के हाईकोर्ट ने 27 अप्रैल 2017 से ही इस संबंध में कड़े  प्रतिबंध लगा रखे हों। लेकिन ठीक उसकी नाक के नीचे इस प्रकार की घटनाएं लगातार हो रही हैं। सुनील कुमार कहते हैं कि भिलाई नगर की घटना छत्तीसगढ़ की पहली ध्वनि प्रदूषण से हुई आत्म हत्या है।

कितनी ऊंचा शोर सुनने के बाद, यह प्रदूषण के दायरे में आता है? इसके लिए ध्वनि वैज्ञानिकों ने एक विश्लेषणात्मक आंकड़े दिए हैं। उदाहरण के लिए 80 डीबी वाली ध्वनि कानों पर अपना प्रतिकूल असर शुरू कर देती है। 120 डीबी की ध्वनि कान के पर्दों पर भीषण दर्द उत्पन्न कर देती है और यदि ध्वनि की तीव्रता 150 डीबी अथवा इससे अधिक हो जाए तो कान के पर्दे फट सकते हैं, जिससे व्यक्ति बहरा हो सकता है। 

पर्यावरण क्षेत्र में कार्य करने वाली अर्थ फाइवआर संस्था ने 2023 में भारत में ध्वनि प्रदूषण पर एक व्यापक सर्वेक्षण कराया। इस सर्वेक्षण में 15 भारतीय शहरों को शामिल किया गया था। इस सर्वेक्षण में बताया गया कि आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण की जांच में पाया कि शोर का स्तर 50 डीबी की सीमा से लगभग 50 प्रतिशत अधिक था।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की एक रिपोर्ट के अनुसार जैसे-जैसे शहर बढ़ते हैं, ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण के लिए और खतरा बनता जा रहा है। शहर बढ़ रहे हैं इससे ट्रैफिक शोर और अन्य प्रकार के ध्वनि प्रदूषण बद से बदतर होते जा रहे हैं और ये मानव के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। 

इसी बात को ध्यान में रखते हुए 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगइन ने स्वास्थ्य कारणों से ट्रैफिक शोर को 53 डीबी तक सीमित कर दिया गया था। ध्वनि प्रदूषण मनुष्यों और जानवरों दोनों को नुकसान पहुंचाता है।

विशेषज्ञों के अनुसार ध्वनि प्रदूषण प्रजनन चक्र तक को बाधित करता है और प्रजातियों के विलुप्त होने की अवधि को और तेज करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि हर वर्ष योरोपीय संघ में ध्वनि प्रदूषण के कारण 12 हजार लोगों की असामयिक मौत हो जाती है।

इस समस्या से विशेषकर युवा, बुजुर्ग और हाशिए पर रहने के लिए मजबूर समुदाय अधिक प्रभावित होते हैं, जिन्हें ज्यादातर यातायात वाली सड़कों या औद्योगिक इलाकों में रहना पड़ता है। अल्जीयर्स, बैंकॉक, दमिश्क, ढाका, इस्लामाबाद और न्यूयॉर्क समेत अन्य शहरों में स्वास्थ्य के नजरिए से स्वीकार-योग्य ध्वनि का स्तर पार हो चुका है।

कहने के लिए सरकारी पहल भी देशभर में समय-समय पर दिखती हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं हैं। 2008 में मुंबई पुलिस और आवाज फाउंडेशन ने शोर कम करने के लिए मुंबई में पहला “नो हॉन्किंग डे” मनाया।

वहीं देश की राजधानी दिल्ली ने 2022 में प्रेशर हॉर्न, संशोधित साइलेंसर और अत्यधिक तेज हॉर्न बजाने पर प्रतिबंध लगा दिया। जबकि बेंगलुरु पुलिस ने 2022 में 301 मस्जिदों, मंदिरों, चर्चों और अन्य संस्थानों को निश्चत डेसिबल स्तरों के भीतर लाउडस्पीकर का उपयोग करने के लिए अधिसूचनाएं जारी कीं।

अ उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के आदेशों के बावजूद एक जांच से पता चला है कि राज्य के कानून का पालन करवाने वाले के कई सदस्यों के पास व्यवस्थित स्तर पर ध्वनि प्रदूषण की निगरानी और समाधान करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण या संसाधन उपलब्ध नहीं है। यहां धार्मिक स्थलों से 37,000 से अधिक लाउडस्पीकर हटाए गए। इसके अलावा 55,000 लाउड स्पीकरों की आवाज भी कम की गई।

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