हाल ही में इसको लेकर वियना विश्वविद्यालय के शोधकर्ता थिलो हॉफमैन के नेतृत्व में अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम ने एक नया अध्ययन किया है, जिसमें कृषि क्षेत्र में उपयोग होते प्लास्टिक के फायदे और नुकसान पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही इस अध्ययन में ऐसे तरीकों के बारे में जानकारी दी गई है, जिनकी मदद से कृषि में प्लास्टिक का कहीं बेहतर, शाश्वत तरीके से उपयोग किया जा सकता है।
कभी प्लास्टिक को नए बदलावों का प्रतीक माना जाता था, लेकिन आज यह हमारे लिए वरदान और अभिशाप दोनों बन चुका है। आज हर जगह जहां भी दृष्टि जाए प्लास्टिक नजर आती है, कृषि भी उससे अलग नहीं है। आंकड़ों की माने तो कृषि दुनिया भर में होने वाले एक तिहाई उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है। साथ ही यह संसाधनों पर बढ़ते दबाव के लिए भी जिम्मेवार है। ऐसे में कृषि में शाश्वत बदलावों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।
यदि कृषि में प्लास्टिक उपयोग के फायदों की बात करें तो प्लास्टिक के बने औजार, उपकरण और सिंचाई के साधन कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में कामयाब रहे हैं। वहीं मौसम की मार, कीटों और खरपतवार से बचने के लिए किसान बड़े पैमाने पर प्लास्टिक शीटस का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे उनकी फसलें सुरक्षित रहे और पैदावार में बढ़ोतरी हो सके। आंकड़ों की मानें तो कृषि में उपयोग होते प्लास्टिक का करीब 50 फीसदी हिस्सा इसी के लिए उपयोग हो रहा है।
जहां फायदे हैं वहां नुकसान भी, दोनों पर विचार जरूरी
गौरतलब है कि खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कृषि में उपयोग होते प्लास्टिक पर चिंता जताते हुए जानकारी दी थी कि वैश्विक स्तर पर कृषि से जुड़ी सप्लाई चेन में हर साल करीब एक करोड़ 25 लाख टन प्लास्टिक इस्तेमाल किया जाता है। इतना ही नहीं करीब 3.73 करोड़ टन प्लास्टिक का उपयोग हर साल खाद्य उत्पादों के भण्डारण और पैकेजिंग के लिए किया जाता है।
इसी तरह दुनिया में मछली पालन और एक्वाकल्चर में भी हर साल 21 लाख टन प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है। एफएओ के मुताबिक यह प्लास्टिक खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रहा है।
जहां इसके फायदे हैं वहां नुकसान भी कम नहीं। रिसर्च के अनुसार एक तरफ जहां यह मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुंचा रहा है, वहीं फसलों की पैदावार में गिरावट की वजह भी बन रहा है। हमारी खाद्य श्रृंखला में मिलते इसके हानिकारक घटक स्वास्थ्य को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर रहे हैं। देखा जाए तो पारंपरिक प्लास्टिक लम्बे समय तक पर्यावरण में बना रहता है और हमारी मिट्टी में अपने अंश छोड़ जाता है। इतना ही नहीं इसके महीन कण जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक के नाम से जाना जाता है वो भी बड़ी तेजी से हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर सकते हैं।
समझदारी से करना होगा प्लास्टिक का उपयोग
कृषि में प्लास्टिक से जुड़ी इन चुनौतियों से निपटने के लिए अध्ययन ऐसी रणनीति पर जोर देता है जो प्लास्टिक के तर्कसंगत उपयोग, और उपयग के बाद कुशल संग्रह और उन्नत रीसाइक्लिंग तकनीकों के विकास को बढ़ावा देता है। शोधकर्ता थिलो हॉफमैन का कहना है कि, "जब प्लास्टिक को पर्यावरण में छोड़ दिया जाता है, तो उन्हें पूरी तरह से बायोडिग्रेड करने के लिए डिजाइन किया जाना चाहिए। इसके साथ ही जहरीले प्लास्टिक एडिटिव्स को सुरक्षित विकल्पों के साथ बदला जाना चाहिए।
शोध के अनुसार हालांकि जैव-आधारित सामग्रियां प्लास्टिक का एक आकर्षक विकल्प लग सकती हैं, लेकिन उनमें भी कुछ कमियों हैं। ऐसे में इन सामग्रियों के पूर्ण जीवन चक्र पर सावधानीपूर्वक विचार किए बिना, जल्दबाजी में किया बदलाव, अनजाने में ही सही लेकिन हमारे पारिस्थितिक तंत्र और खाद्य जाल पर और भी अधिक प्रभाव डाल सकता है।
इस रिसर्च में शोधकर्ताओं ने जो सुझाव दिए हैं, वो संयुक्त राष्ट्र प्लास्टिक संधि (यूएनईए 5.2) जैसी वैश्विक पहलों के अनुरूप हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन उपायों को अपनाने से कृषि में प्लास्टिक का उपयोग कहीं ज्यादा पर्यावरण अनुकूल हो जाएगा।
हालांकि प्लास्टिक को पूरी तरह से बदलना अभी संभव नहीं है, लेकिन पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों का बुद्धिमानी से किया उपयोग एक आशावादी दृष्टिकोण प्रतीत होता है। इसकी अनिवार्य निगरानी, प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के साथ-साथ लोगों को जागरूक करके, हम प्लास्टिक और उसके हानिकारक प्रभावों पर अपनी निर्भरता कम कर सकते हैं।
इस अध्ययन के नतीजे 25 सितम्बर 2023 को जर्नल नेचर कम्युनिकेशन अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं।