ओलंपिक की मेजबानी करना अब तक का आर्थिक रूप से हानिकारक सौदा रहा है। इस मामले में केवल अमेरिकी शहर लॉस एंजिल्स ही अपवाद है, जिसने 1984 के ओलंपिक मेजबानी से लाभ कमाया था। अन्यथा कई मेजबान देश तो इसके आयोजन के बाद कर्ज में अब तक डूब हुए हैं। ओलंपिक की मेजबानी करना कितना महंगा है?
हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक शोध संस्थानों के शोध में पाया गया है कि ओलंपिक की मेजबानी आर्थिक रूप से हानिकारक है। हालांकि यह बात संभावित मेजबानों के लिए यह परेशान करने वाली बात हो सकती है। इस मामले में भारत भी एक संभावित मेजबान देश के रूप् में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी की सूची में शामिल है।
बाडे और मैथेसन के शोध पत्र गोइंग फॉर द गोल्ड : द इकोनॉमिक्स ऑफ द ओलंपिक के अनुसार ओलंपिक मेजबानी हासिल करने के लिए ओलंपिक कमेटी को प्रस्ताव देना पैसा खोने जैसी बात है। मेजबान केवल बहुत विशिष्ट और असामान्य परिस्थितियों में ही शुद्ध लाभ कमा सकते हैं। इस शोध के अनुसार विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों के शहरों के लिए इस प्रकार के आयोजन उन्हें बदतर स्थिति में पहुंचा देते हैं।
शोध में कहा गया है कि इस मामले में सबसे अच्छा उदाहरण ग्रीस का है। जिसने 2004 में ओलंपिक की मेजबानी पर 11 अरब डॉलर खर्च कर दिए। ऐसे में उसके द्वारा ओलंपिक पर जरूरत से ज्यादा खर्च किए जाने का नतीजा यह हुआ कि 2000 के दशक के अंत में ग्रीस में आर्थिक मंदी का शिकार हो गया। ऐसे ढेरों उदाहरण हैं। विश्व के सबसे विकसित देश कनाडा के शहर मॉन्ट्रियल की भी ऐसी ही कहनी है। इस शहर ने 1976 ओलंपिक की मेजबानी के चलते अगले तीन दशक तक कर्ज में डूबा रहा।
यही हाल ब्राजील का भी हुआ, जहां 2016 में रियो डी जनेरियो शहर को ओलंपिक की लागत को कवर करने के लिए संघीय सरकार से 900 मिलियन डॉलर के बेलआउट की आवश्यकता पड़ गई। ऐसे हालत में वह अपने सभी सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को भुगतान करने तक में असमर्थ हो गया था। इसके अलााव एक और यूरोपीय देश इसी प्रकार ओलंपिक की मेजबानी में बुरी तरह से कर्ज में डूब गया था। ध्यान रहे कि 1992 के ओलंपिक खेल के आयोजन ने केंद्रीय स्पेनिश सरकार को 4 बिलियन डॉलर का कर्जदार बना दिया था।
इस मामले में अब तक लॉस एंजिल्स एकमात्र मेजबान शहर है जिसने ओलंपिक की मेजबानी से लाभ कमाया है। ऑक्सफोर्ड ओलंपिक अध्ययन 2024 के अनुसार अब तक के सबसे महंगे ग्रीष्मकालीन खेल रियो 2016 में 23.6 बिलियन अमरीकी डॉलर और लंदन 2012 में 16.8 बिलियन अमरीकी डॉलर में खर्च हुए थे। आधिकारिक खेल रिपोर्ट में बताया गया है कि टोक्यो 2020 ओलंपिक की लागत 13.7 बिलियन अमरीकी डॉलर बताई गई है।
2016 के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार ग्रीष्मकालीन ओलंपिक से कुल राजस्व अब औसतन लगभग 10 बिलियन डॉलर प्राप्त होता है। लेकिन इस राजस्व का अधिकांश हिस्सा मेजबान को नहीं जाता है। आईओसी टेलीविजन राजस्व का आधे से अधिक हिस्सा रखता है, जो आम तौर पर लाभ का सबसे बड़ा हिस्सा होता है। अध्ययन में बताया गया है कि सभी प्रकार के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद यह बात निकल कर आई है कि ओलंपिक की मेजबानी करना आर्थिक रूप से कमजोर हो जाना है।
भविष्य में ओलंपिक की मेजबानी हासिल करने के मामले में भारत भी अपने को लाइन में खड़ा पा रहा है। इसके लिए हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा पेरिस ओलंपियन से बातचीत के दौरान उन्होंने खिलाड़ियों से वायदा किया कि हम 2036 के ओलंपिक की मेजबानी हासिल करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने सार्वजनिक रूप् से भी खेलो इंडिया के उद्घाटन के अवसर पर कहा था कि हम देश में 2029 युवा ओलंपिक और 2036 ओलंपिक आयोजित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने तो यहां तक कहा दिया है कि खेल मैदान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह अपने आप में एक अर्थव्यवस्था है। इसके अलावा 2036 में ओलंपिक की मेजबानी करने का इरादा इस साल लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा के चुनाव घोषणापत्र का भी हिस्सा था।
अमेरिकी थिंक टैंक काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के एक अध्ययन के अनुसार ओलंपिक के योग्य बुनियादी ढांचे को बनाने की अनुमानित लागत 5 बिलियन डॉलर से 50 बिलियन डॉल तक हो सकती है। सीएफआर अध्ययन के अनुसार रूस के 2014 शीतकालीन ओलंपिक के 50 अरब डॉलर के खेल बजट का लगभग 85 प्रतिशत गैर-खेल बुनियादी ढांचे को बनाने पर खर्च किया गया था। अध्ययन में कहा गया है कि बीजिंग 2008 खेलों के बजट का आधे से अधिक हिस्सा रेल, सड़कों और हवाई अड्डों पर खर्च किया गया, जबकि लगभग एक चौथाई पर्यावरण सफाई प्रयासों पर किया गया। ध्यान रहे कि 2004 में उधार के पैसे से बनाई गई ओलंपिक खेल सुविधाओं ने ग्रीस के ऋण संकट में भारी योगदान दिया। क्योंकि स्टेडियम की सुविधाएं सफेद हाथी बन कर रह गईं।
हालांकि ओलंपिक की मेजबानी से मेजबान देश कर्ज में तो डूबता है लेकिन कुछ मात्रा में उसे अपनी वैश्विक स्तर पर छवि चकमाने का मौका भी मिल जाता है। इस मामले में टोक्यो का उदाहरण दिया जा सकता है। क्योंकि विश्व युद्ध के दौरान बरबाद हुए जापान को अभी बीस साल भी नहीं हुए थे और उसे ओलंपिक की मेजबानी हासिल हो गई थी। जापान तब पुनर्निर्माण के दौर से गुजर रहा था। युद्ध में उसकी भूमिका के बाद उसे वैश्विक स्तर पर अपनी स्वीकृति के मामले में अपनी स्थिति को मजबूत करना था।
देश ने बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण और पुनर्निर्माण के लिए एक समय सीमा के भीतर 1964 के खेलों की मेजबानी की। और इसके बाद विश्व ने उसकी प्रसिद्ध बुलेट ट्रेन के अवतार को सराहा। इसी प्रकार से भले ही स्पेन मेजबानी करने के चक्कर में कर्ज में डूबा लेकिन ध्यान रहे कि 1992 के ओलंपिक को बार्सिलोना के लिए पर्यटन की सफलता की कहानी के रूप में जाना जाता है। 1992 में सबसे अधिक देखे जाने वाले यूरोपीय शहरों में 11वें से 5वें स्थान पर यह शहर पहुंच गया था। बाद के वर्षों में यह प्रतिष्ठा और बढ़ी। जहां ओलंपिक के आयोजनों से मेजबान को अल्पकालिक लाभ होता है तो कई बार उसे इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। जब मेजबान को आयोजन के कारण अपनी कमजोरियां भी उजागर हो जाती हैं।
उदाहरण के लिए, 2008 के ओलंपिक के लिए बीजिंग की खराब वायु गुणवत्ता अचानक वैश्विक चिंता का विषय बन गई। चीन ने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति को खुश करने के लिए वायु प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिए 19 बिलियन डॉलर खर्च किए। जब बात ओलंपिक की मेजबानी करने की आती है तो भारत की महत्वाकांक्षा सामने आती है। ऐसे में 2008 में चीन का पर्यावरण बिल एक खतरनाक उदाहरण है। प्रमुख भारतीय शहरों में हवा की गुणवत्ता मौजूदा समय में बीजिंग से भी ज्यादा खराब है।
ऐसे में कल्पना की जा सकती है कि भारत को प्रदूषित हवा को साफ करने के लिए कितना खर्च करना पड़ेगा। यूके स्थित कंसल्टेंसी सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च ने अपनी दिसंबर 2023 की रिपोर्ट में कहा कि यदि भारत सरकार की बात सही है कि उनका देश तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए तैयार है और 2035 तक 10 ट्रिलियन डॉलर के आंकड़े को छू लेगा। खेलों में सफलता की महत्वाकांक्षाओं को एक तरफ रख दें तो आर्थिक पूर्वानुमान बताते हैं कि भारत 2036 के खेलों की मेजबानी के लिए बिल्कुल सही उम्मीदवार हो सकता है, जो किसी दक्षिण एशियाई देश के लिए पहली बार होगा। कम से कम, यह उन कुछ देशों में से एक है जो इतना बड़ा पर्यावरण बिल चुकाने की स्थिति में होगा यदि वह तीसरी आर्थिक महाशक्ति बन पाया।