एक रिसर्च से पता चला है कि जलीय परिवेश में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स इंसानी स्वाथ्य के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक प्लास्टिक के यह महीन कण न केवल रोगजनकों को अपनी सतह पर पनपने का मौका देते हैं। साथ ही उनके प्रसार में भी मददगार होते हैं।
अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल इको-एनवायरनमेंट एंड हेल्थ में प्रकाशित हुए हैं। चिंता की बात तो यह है कि जलीय परिवेश में मौजूद यह माइक्रोप्लास्टिक कुछ विशिष्ट रोगजनकों रोगजनकों के लिए वाहकों के रूप में काम करते हैं। ऐसे में जब पानी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स इंसानी शरीर में प्रवेश करते हैं, तो उनके साथ यह रोगजनक भी मानव शरीर में अपनी पैठ बना लेते हैं, जो स्वाथ्य के लिए खतरनाक हो सकता है।
1950 के दशक के बाद से देखें तो प्लास्टिक का उत्पादन अधिकांश अन्य मानव निर्मित सामग्रियों से आगे निकल गया है। यदि सिर्फ 2016 के आंकड़ों पर गौर करें तो अनुमान है कि इस साल उत्पन्न प्लास्टिक कचरे का करीब 11 फीसदी हिस्सा जोकि करीब 2.3 करोड़ टन है, वो जलीय वातावरण में प्रवेश कर गया था।
प्लास्टिक के बारे में यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह कोई ऐसी चीज नहीं जो साल दो साल में खत्म हो जाती है। यदि इसका उचित निपटान न किया जाए तो एक बार वातावरण में पहुंचने के बाद यह लम्बे समय तक वहां बनी रह सकती है। इस तरह साल दर साल इसकी मात्रा बढ़ती जाती है।
रिसर्च के मुताबिक यह माइक्रोप्लास्टिक्स विशिष्ट रोगजनकों के विकास और उनकी लंबी दूरी के प्रसार को भी सुविधाजनक बना देते हैं, जिससे मनुष्यों में उनके संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
बता दें कि प्लास्टिक के इन बेहद महीन कणों को माइक्रोप्लास्टिक्स कहा जाता है। इन कणों का आकार पांच मिलीमीटर या उससे भी कम होता है। दुनिया भर में जिस तरह से प्लास्टिक उपयोग बढ़ रहा है और इसके कचरे का उचित प्रबंधन नहीं किया जा रहा, उसके कारण यह कण पूरी दुनिया में फैल चुके हैं। आज दुनिया में शायद ही कोई ऐसी जगह होगी जहां प्लास्टिक के इन महीन कणों की मौजूदगी के निशान न मिले हों।
वातावरण से लेकर इंसानी शरीर में हर जगह मौजूद हैं प्लास्टिक के निशान
बात गहरे समुद्रों से लेकर ऊंचे पहाड़ों की हो या नदियों से लेकर बर्फ से ढंके अंटार्कटिक की, धरती पर हर जगह प्लास्टिक के इन कणों की मौजूदगी की पुष्टि हो चुकी है। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों को न केवल हवा और बादलों में, बल्कि उसके साथ ही इंसानी शरीर में भी माइक्रोप्लास्टिक्स के होने के सबूत मिले हैं।
जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित एक अन्य शोध में तो अजन्मे शिशुओं के प्लेसेंटा यानी गर्भनाल में भी माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का पता चला था। इसी तरह इंसानी रक्त, फेफड़ों, नसों तक में इनके होने के सबूत मिले हैं। जो पूरी तरह स्पष्ट करता है कि वातावरण में बढ़ता प्लास्टिक का यह जहर न केवल हमारे परिवेश बल्कि हमारी नसों और शरीर के अंगों तक में घुल चुका है।
देखा जाए तो अपने आप में ही यह माइक्रोप्लास्टिक्स इंसानी स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा हैं। ऊपर से जलीय परिवेश में रोगजनकों को पनपने और उनके प्रसार में मदद करके यह संक्रमण के खतरे को कहीं ज्यादा बढ़ा सकते हैं, जो इंसानों के साथ-साथ समुद्री जीवों को भी अपनी चपेट में ले सकता है।
ऐसे में शोधकर्ता ने अपने इस अध्ययन में माइक्रोप्लास्टिक्स के छिपे खतरों पर प्रकाश डालते हुए इसके बढ़ते प्रदूषण की तत्काल निगरानी पर जोर दिया है। साथ ही इस बात पर और अधिक शोध करने का आग्रह किया है ताकि इससे जुड़े खतरों को कहीं बेहतर तरीके से समझा जा सके।
इसके साथ ही अध्ययन में सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा और पर्यावरण की अखंडता को बनाए रखने के लिए तत्काल और निर्णायक कार्रवाई की पुरजोर वकालत की गई है।