खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन और साधनों से वंचित है दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी

यदि जलवायु और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को देखें तो हर साल इसके चलते अर्थव्यवस्था पर 1,77,20,112 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है
खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन और साधनों से वंचित है दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी
Published on

हाल ही में विश्व बैंक द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया भर में करीब 400 करोड़ लोग आज भी खाना पकाने के लिए लकड़ी, कोयला, केरोसिन और गोबर जैसे ईंधन पर निर्भर हैं| यह ईंधन बड़ी मात्रा में प्रदूषण फैलाते हैं, जिसका असर ने केवल पर्यावरण बल्कि साथ ही खाना पकाने वाले के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है| इससे पहले अनुमान था कि करीब 300 करोड़ लोग दूषित ईंधन का प्रयोग कर रहे हैं लेकिन विश्वबैंक के शोधकर्ताओं के अनुसार जिन परिवारों के पास एलपीजी की पहुंच है वो भी खाना पकाने के लिए, लकड़ी, कोयला और चारकोल जैसे पारम्परिक ईंधनों का प्रयोग कर रहे हैं| यही वजह है कि यह संख्या पिछले अनुमान से कहीं ज्यादा है| 

रिपोर्ट के अनुसार यदि अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले इसके असर को देखें तो यह हर साल करीब 1,77,20,112 करोड़ रुपए (240,000 करोड़ डॉलर) का अतिरिक्त बोझ डालता है| यह भार जलवायु और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के रूप में पड़ रहा है| यदि अकेले स्वास्थ्य की बात करें तो इसके चलते 1,03,36,732 करोड़ रुपए (140,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान हो रहा है| जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है, यदि उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा और उत्पादकता पर पड़ रहे असर का आंकलन करें तो वो करीब 59,06,704 करोड़ रुपए (80,000 करोड़ डॉलर) के बराबर है| जबकि जलवायु और पर्यावरण पर इसके पड़ रहे असर को देखें तो वो करीब 14,76,676 करोड़ रुपए (20,000 करोड़ डॉलर) के बराबर है|

रिपोर्ट के अनुसार हालांकि 2030 तक सभी के लिए स्वच्छ ईंधन की उपलब्धता का लक्ष्य रखा गया है| इसके बावजूद सरकारों की अनदेखी के चलते आज भी प्रदूषण उत्पन्न करने वाले ईंधन का उपयोग किया जा रहा है| जिसका खामियाजा उन महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है जिन पर भोजन तैयार करने की जिम्मेदारी होती है| 

जिस तरह से कोविड-19 महामारी फैली है उसके चलते महिलाओं के स्वास्थ्य पर बोझ बढ़ता जा रहा है| जो महिलाएं आज भी खाना पकाने के लिए दूषित ईंधन का उपयोग कर रही हैं, उनपर इस महामारी का ज्यादा असर पड़ने की सम्भावना है, क्योंकि गंदे ईंधन और स्टोव से उत्पन्न होने वाला घरेलू वायु प्रदूषण उन्हें कोविद -19 और अन्य श्वसन रोगों के लिए अतिसंवेदनशील बना सकता है। आंकड़ों के अनुसार हर साल करीब 40 लाख असमय मौतों के लिए इंडोर एयर पोलूशन जिम्मेवार होता है, जिसमें से ज्यादातर महिलाएं और बच्चे उसका शिकार बनती हैं| 

अफ्रीका की 10 फीसदी आबादी ही खाना पकाने के लिए कर रही है साफ-सुथरे ईंधन का उपयोग 

रिपोर्ट के अनुसार यदि अफ्रीका की बात करें तो वहां की केवल 10 फीसदी आबादी ही खाना पकाने के लिए ऊर्जा के आधुनिक स्रोतों का उपयोग कर रही है| जबकि दक्षिण पूर्व एशिया में 21 फीसदी और दक्षिण एशिया की 27 फीसदी आबादी आज भी साफ़-सुथरे ईंधन से वंचित है| 

यदि रिपोर्ट में दिए आंकड़ों को देखें तो भारत में करीब 16 करोड़ परिवार खाना पकाने के लिए पारंपरिक बायोमास कुकस्टोव पर निर्भर थे| जिसके कारण  घर के सदस्यों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा था| इसी को ध्यान में रखते हुए दिसंबर 2009 में नेशनल बायोमास कुकस्टोव्स इनिशिएटिव को लांच किया गया था| इसी कड़ी में जून 2014 में उन्नत चूल्ह अभियान प्रोग्राम जारी किया गया था|

इसके पश्चात गरीब परिवारों तक एलपीजी की पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए 1 मई, 2016 को उज्ज्वला योजना की शुरुवात की गई थी| जिसका लक्ष्य देश के गरीब तबके तक साफ-सुथरा ईंधन पहुंचाना था| सरकारी आंकड़ों के अनुसार इसके अंतर्गत 8,03,39,993 कनेक्शन बांटे जा चुके हैं| 

 हालांकि दुनिया भर में भारत, चीन जैसे कई देश पारम्परिक ईंधन से साफ-सुथरे ईंधन को अपनाने पर जोर दे रहे हैं इसके बावजूद आज भी एक बड़ी आबादी ऊर्जा के पारम्परिक स्रोतों पर ही निर्भर है| जिससे निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की जरुरत है|

 1 डॉलर = 73.83 भारतीय रुपए

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in