ग्राउंड रिपोर्ट: किस हाल में हैं लखनऊ के ध्वनि प्रदूषण पर निगरानी वाले संयंत्र

डाउन टू अर्थ ने पांच मॉनीटिरिंग स्टेशन पर जाकर देखा कि वे किस स्थिति में हैं
लखनऊ के तालकटोरा, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्यालय, चिन्हाट, आईटी कॉलेज, एसपीजीआई में लगे निरीक्षण उपकरण । फोटो : रोहन सिंह
लखनऊ के तालकटोरा, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्यालय, चिन्हाट, आईटी कॉलेज, एसपीजीआई में लगे निरीक्षण उपकरण । फोटो : रोहन सिंह
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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ध्वनि प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए लखनऊ में कुल 10 रियल टाइम एंबिएंट नाइस मॉनिटरिंग स्टेशन बनाए गए हैं।

डाउन टू अर्थ ने इनमें से पांच रियल टाइम नॉइस मॉनिटरिंग स्टेशनों के स्थानों का दौरा किया, जिनमें 3 मौन क्षेत्र और 2 औद्योगिक क्षेत्र शामिल थे। लेकिन पांच अन्य मॉनीटिरंग स्टेशन कहां हैं, यह जानने के लिए अधिकारियों से कई बार संपर्क किया, बावजूद इसके उन जगहों के बारे में पता नहीं चल पाया।

डाउन टू अर्थ ने जिन पांच स्टेशनों का दौरा किया, उनमें से तालकटोरा (औद्योगिक क्षेत्र), आईटी कॉलेज (मौन क्षेत्र), और एसजीपीजीआई (मौन क्षेत्र) में स्थित मॉनिटरिंग नेटवर्क पेड़-पौधों की पत्तियों से ढक गए थे। इस संबंध में जब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ओएंडएम पार्टनर कंपनी एसजीएस वेदर की तकनीकी टीम से बात की गई तो उन्होंने बार-बार इस मुद्दे से बचने की कोशिश की और कहा कि कैलीबरेशन और डिसेमिनेशन की जिम्मेदारी सीपीसीबी और उसके बोर्ड की है।

उन्होंने आगे कहा कि उनका काम सिर्फ नेटवर्क स्थापित करना था और इसके बाद की जानकारी उनके पास नहीं है।

राजधानी लखनऊ के एसजीपीजीआई (मौन क्षेत्र), जो 550 एकड़ में फैला हुआ है, को 6 अगस्त को लगभग एक घंटे की खोजबीन के बाद भोजनालय के करीब 15 फीट ऊंचाई पर पत्तों से घिरा हुआ एक नॉइस मॉनिटरिंग नेटवर्क और लगभग आधा ढका हुआ माइक्रोफोन का सेंसर पाया गया।

अगस्त 7 को आईटी कॉलेज (मौन क्षेत्र) का दौरा किया गया। यहां भी जमीन पर चारों ओर से पत्तों से घिरा पूरा नेटवर्क और 3 ओर से नॉइस के माइक्रोफोन का सेंसर छिपा हुआ था।

साथ ही, एक और बात नोट की गई कि 10 में से 1 नॉइस मॉनिटरिंग सिस्टम की एम्बेडेड एलईडी डिस्प्ले, जिसे एसजीएस वेदर ने लगाया था, पिछले 2-3 महीनों से नेटवर्क की समस्या के कारण बंद पड़ी थी।

अगस्त 4 को तालकटोरा, जो एक औद्योगिक क्षेत्र है, के एक पार्क के कोने में जमीन पर पेड़ों के पत्तों से घिरा हुआ एक नॉइस मॉनिटरिंग स्टेशन देखा गया।

उक्त स्थलों पर लगे 5 नेटवर्कों पर तैनात गार्ड से पूछताछ करने पर उन्होंने बताया, "यदि देखरेख के लिए कोई आता, तो ये मशीनें पत्तों से ढकी हुई नहीं होतीं, बल्कि साफ और ठीक रहतीं।" हालांकि, आईटी कॉलेज, जो मौन क्षेत्र है, में 1 नॉइस मॉनिटरिंग स्टेशन का डिस्प्ले भी लगा है, जो 2–3 महीनों से बंद पड़ा हुआ है।

इस पूरे मामले की पड़ताल कर लेने के बाद 12 अगस्त को डाउन टू अर्थ ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, लखनऊ के क्षेत्रीय निदेशक कमल कुमार से मुलाकात की। लेकिन उन्होंने खुद को मीडिया से बातचीत के लिए अधिकृत ना होने के कारण दिल्ली मुख्यालय से बात करने को कहा।

एसजीएस वेदर की वेबसाइट में कहा गया है, "हमने मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलोर, लखनऊ, और हैदराबाद में ’75’ रियल टाइम ध्वनि प्रदूषण निगरानी स्टेशन" स्थापित किए हैं।"

दिल्ली स्थित एनजीटी की प्रधान पीठ की वकील मधुमिता सिंह इस मुद्दे पर कहती हैं कि पर्यावरण मंत्रालय के सहयोगी सीपीसीबी और उसके बोर्डों ने वायु और ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम के लिए और व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के नाम पर सिर्फ कागजों और मोनिटरिंग स्टेशंस को लगाकर पैसा बहाया है। लेकिन जमीनी स्थिति अब भी चिंताजनक बनी हुई है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट या राष्ट्रीय हरित अधिकरण, ये सभी अपने कार्य को बारीकी से अंजाम देते आए हैं, लेकिन आदेशों के बाद भी सीपीसीबी में बैठे कई अधिकारियों के कानों में जूं तक नहीं रेंगती।

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