चुनावी साल 2019 में 17 राज्यों के 365 जिले सूखाग्रस्त हैं, आधे से ज्यादा भूजल भंडार खाली हो चुके हैं, 90 प्रतिशत छोटी नदियां सूख गईं हैं या उनमें बरसात के समय ही प्रवाह रहता है। ऐसी गंभीर परिस्थितियों के बावजूद राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में पर्यावरण के मुद्दों को कोई जगह नहीं है। यह कहना है तरुण भारत संघ के अध्यक्ष जल पुरुष राजेंद्र सिंह का। वह 4 अप्रैल को दिल्ली के महिला प्रेस क्लब में पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान राजेंद्र सिंह ने जल जन जोड़ो अभियान और जल बिरादरी द्वारा तैयार “भारत की जनता का चुनाव घोषणापत्र” जारी किया जो पर्यावरण के मुद्दों पर केंद्रित है। उन्होंने ऐसे उम्मीदवारों को मतदान करने की अपील की जो झूठे वादे और लोगों को गुमराह न करके लोगों के असली मुद्दों को उठाएं।
राजेंद्र सिंह ने कहा है कि देश में नदियों की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। करोड़ों लोगों की आस्था की प्रतीक गंगा पहले से और प्रदूषित हो गई है। नमामि गंगे परियोजनाओं में सिर्फ घाट बनाकर सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। अविरलता जैसे महत्वपूर्ण विषय को अनदेखा गया किया है। आज नदियों को विकास के नाम पर बर्बाद किया जा रहा है। राजेंद्र सिंह कहते हैं कि गंगा माई अब कमाई का जरिया बन गई है।
वह बताते हैं, “पहले शहरों में स्वैच्छिक पलायन होता था। लोग शहरों में काम करके वापस अपने घर लौट आते थे लेकिन अब पलायन कर शहर में पहुंचने वाले व्यक्ति वापस जाने की नहीं सोचता। स्वैच्छिक पलायन अब दबाव का पलायन बन गया है। इतने महत्वपूर्ण मुद्दे को राजनीतिक दलों ने अपने घोषणापत्र में जगह नहीं दी है।”
झूठे वादे और डर का माहौल
जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने इस दौरान कहा कि पहले चुनाव के दौरान बूथ लूटे जाते थे लेकिन अब झूठे वादे और डर का माहौल पैदा कर चुनाव लूटा जा रहा है। राजनीतिक दलों का घोषणापत्र अनुभवी लोगों की एक बड़ी समिति तैयार करती है लेकिन वह केवल मुद्दों को छूती भर है। वास्तविक मुद्दे गायब ही रहते हैं। संजय सिंह के अनुसार, एडीआर के सर्वेक्षण में पेयजल को तीसरा सबसे बड़ी समस्या माना गया है। 2030 तक पीने का पानी खत्म होने का अनुमान, लेकिन फिर राजनीतिक दलों के लिए पानी मुद्दा नहीं है। अभी जो मुद्दा वोट दिला सकता है, उसे ही उछालने की कोशिश हो रही है।
महाराष्ट्र में आजादी के बाद सिंचाई के लिए सबसे अधिक बांधों का निर्माण किया गया लेकिन राज्य के 36 जिलों में 26 जिले की 151 तालुकाओं को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है। केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश उत्तराखंड समेत अन्य प्रदेशों के जिले भी सूखे से प्रभावित हैं। जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार, आने वाले समय में लगभग 15 राज्य सूखाग्रस्त होंगे।
घोषणापत्र के अनुसार, भारत में तालाबों की संस्कृति खत्म हो रही है। हजारों साल पुराने तालाब देखरेख के अभाव में नष्ट हो रहे हैं। जल संचयन का समुचित प्रबंध न होने के कारण वर्षा का जल बेकार बहकर समुद्र में जा रहा है। सतही जल रोकने के लिए परंपरागत एवं देशज ज्ञान का उपयोग नहीं किया जा रहा है।
संजय सिंह का कहना है कि राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा करना अभी कानूनी रूप से बाध्य नहीं है। हमने चुनाव आयोग से मांग की है कि घोषणापत्र को कानूनी वैद्यता प्रदान की जाए ताकि घोषणापत्र के वादों को पूरा किया जा सके।
लालची सपनों का भारत
घोषणापत्र में कहा गया है कि राजनीतिक दल लालची सपनों का भारत बनाने में जुटे हैं। इस कारण प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। हमारे शहर की सभी राजधानियां और बड़े शहर आधुनिक विकास के मॉडल के कारण विनाश का शिकार बन रहे हैं। वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनाने की जरूरत है जिसमें ऐसे लोगों को प्रोत्साहित किया जाए जो ऑक्सीजन का उत्पादन अथवा वृक्षरोपण को बढ़ावा देते हैं। इसके अलावा ऐसे लोगों को दंडित किया जाए जो कार्बन बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं।