प्लास्टिक प्रदूषण को लेकर ऐतिहासिक संधि (आईएनसी-4) पर चर्चा के लिए दुनिया भर के नेता कनाडा की राजधानी ओटावा में एकजुट हो चुके हैं। इस संधि का उद्देश्य दुनिया भर में बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना है। संधि को साल के अंत तक अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है। इस बैठक की अध्यक्षता कर रहे लुइस वायस वाल्दिविसो ने भरोसा जताया है कि देश इस मुद्दे पर समझौते के लिए एकजुट होंगें।
सम्भावना जताई जा रही है कि यह संधि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 2015 में किए पेरिस समझौते जितनी ही प्रभावशाली साबित हो सकती है। गौरतलब है कि बर्कले नेशनल लेबोरेटरी ने प्लास्टिक के कारण बढ़ते उत्सर्जन पर प्रकाश डालते हुए पिछले सप्ताह एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक प्लास्टिक उत्पादन की वजह से 2019 में 2.24 गीगाटन के बराबर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन हुआ था, जोकि 2019 में हुए कुल वैश्विक उत्सर्जन के 5.3 फीसदी के बराबर है। रिपोर्ट में यह भी आशंका जताई गई है कि यदि इस समस्या पर ध्यान न दिया गया तो यह बढ़ता उत्सर्जन 2050 तक तीन गुणा बढ़कर 6.78 गीगाटन तक पहुंच सकता है।
बता दें कि जब 2022 में देश, इस साल के अंत तक कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि पर बातचीत करने के लिए सहमत हुए थे, तो उन्होंने प्लास्टिक के पूर्ण जीवनचक्र - उत्पादन और उपयोग से लेकर अपशिष्ट तक - को संबोधित करने का आह्वान किया था। हालांकि अब इसको लेकर पक्षों के बीच मतभेद देखा जा रहा है। यदि 2021 के आंकड़ों पर गौर करें तो करीब 98 फीसदी सिंगल यूज प्लास्टिक जीवाश्म ईंधन से बनी होती है और प्लास्टिक उत्पादन में लगी शीर्ष सात कंपनियां जीवाश्म ईंधन के कारोबार से जुड़ी है।
प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए दो दिसंबर, 2022 को उरुग्वे के पुंटा डेल एस्टे में बैठक आयोजित हुई थी। जो इस मसले पर वैश्विक संधि तैयार करने के लिए जिम्मेदार वार्ताकारों के बीच यह इस प्रकार की पहली बैठक थी।
28 नवंबर से दो दिसंबर 2022 के बीच वार्ता के इस पहले सत्र को (आईएनसी-1) के रूप में जाना जाता है। इसके बाद वार्ता का दूसरा सत्र 29 मई से दो जून 2023 के बीच पेरिस में जबकि तीसरा सत्र (आईएनसी-3) 13 से 19 नवंबर 2023 के बीच नैरोबी में आयोजित किया गया था। वो वार्ता भी तेल उत्पादक देशों के रुख के चलते अधर में अटक गई थी, क्योंकि इन देशों ने प्लास्टिक उत्पादन को कम करने के बजाय अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने का प्रस्ताव रखा था।
हालांकि इस बैठक में एक संशोधित जीरो ड्राफ्ट तैयार हुआ, जो मुद्दे पर अधिक चर्चा के लिए केवल शुरूआती बिंदु के रूप में कार्य करता है। वर्तमान में कनाडा की राजधानी ओटावा में इस वार्ता का चौथा सत्र (आईएनसी-4)आयोजित किया गया है। इस सत्र में 23 से 29 अप्रैल तक प्लास्टिक से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर वार्ता होगी। इसमें समुद्री पर्यावरण सहित बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर कानूनी तौर पर बाध्यकारी उपकरण विकसित करने को लेकर भी चर्चा की जाएगी। वहीं 2024 के अंत तक वार्ता पूरी करने की महत्वाकांक्षा को ध्यान में रखते हुए इसका अंतिम सत्र 25 नवंबर से एक दिसंबर 2024 के बीच बुसान में आयोजित किया जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है कि प्लास्टिक एक वास्तविकता है, जिसका सामना हमें तब तक करना पड़ेगा, जब तक हम कार्रवाई नहीं करते। उन्होंने इस वार्ता को प्लास्टिक के साथ अपने संबंधों में व्यापक बदलाव का जीवन में एक बार मिलने वाला अवसर बताया है, जिसे गंवाया नहीं जा सकता।
वरदान से अभिशाप बनता प्लास्टिक
वैश्विक स्तर पर देखें तो कभी वरदान समझा जाने वाला प्लास्टिक आज एक बड़ी समस्या बन चुका है। आंकड़ों की मानें तो 2022 में वैश्विक स्तर पर सालाना होता प्लास्टिक उत्पादन बढ़कर 40 करोड़ टन को पार कर गया था, जो पिछले वर्ष की तुलना में करीब 1.6 फीसदी अधिक है। समस्या यह है कि इसमें से करीब 35 करोड़ टन प्लास्टिक, कचरे के रूप में वापस आ रहा है।
वहीं संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक आज सालाना करीब 40 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक हम 2,600 करोड़ टन नए प्लास्टिक का उत्पादन कर लेंगें। हालांकि साथ ही इसमें से आधा कचरे का रूप ले लेगा।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक आज दुनिया भर में हर मिनट 10 लाख प्लास्टिक बोतलें खरीदी जाती हैं। वहीं हर साल 500,000 करोड़ प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल किया जाता है। कुल मिलकर देखें तो हर साल जितने प्लास्टिक का निर्माण किया जाता है उसमें से आधे हिस्सा एक बार उपयोग करने के उद्देश्य से तैयार और डिजाईन किया जाता है।
प्लास्टिक उत्पादन से जुड़े चिंताजनक रुझान दिखाते हैं कि 1970 के बाद से, प्लास्टिक उत्पादन की दर धरती पर किसी भी अन्य सामग्री की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ी है। यदि यह रुझान भविष्य में भी जारी रहते हैं तो 2050 तक प्लास्टिक का सालाना वैश्विक उत्पादन बढ़कर 110 करोड़ टन तक पहुंच सकता है।
आज दुनिया में जितना भी प्लास्टिक निर्माण हो रहा है उसका करीब 36 फीसदी पैकेजिंग के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें खाद्य और पेय पदार्थों के लिए उपयोग की जाने वाले सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पाद शामिल हैं। इनमें से करीब 85 फीसदी उत्पादों को एक बार प्रयोग के बाद या तो लैंडफिल या यहां वहां फेंका जा रहा है।
इस बारे में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने अपनी हाल ही में जारी रिपोर्ट “ग्लोबल प्लास्टिक आउटलुक: पालिसी सिनेरियोज टू 2060” में खुलासा किया है कि 2060 तक हर साल पैदा होने वाला यह प्लास्टिक कचरा अब से करीब तीन गुणा बढ़ जाएगा। वहीं एक रिसर्च से पता चला है कि सालाना 192 देशों से निकला करीब 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्रों में समा रहा है। एक अन्य अनुमान के मुताबिक अब तक 110,00,000 टन प्लास्टिक महासागरों की अथाह गहराइयों में जमा हो चुका है। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि इस बढ़ते खतरे से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र भी सुरक्षित नहीं है।
बेहतर कल के लिए वैश्विक एकजुटता महत्वपूर्ण
समस्या सिर्फ यह प्लास्टिक और उससे पैदा होने वाला कचरा ही नहीं है। इससे पैदा हुआ माइक्रोप्लास्टिक भी परेशानी का सबब बन चुका है। देखा जाए तो धरती पर आज कोई भी स्थान ऐसा नहीं जो प्लास्टिक के इन महीन कणों की पहुंच से बाहर हो, चाहे समुद्र की अथाह गहराइयों को देखे या हिमालय के ऊंचे पहाड़ों का या अंटार्कटिका के निर्जन स्थानों पर हर जगह वैज्ञानिकों को इनकी मौजूदगी के निशान मिले हैं।
यहां तक की मानव शरीर भी माइक्रोप्लास्टिक की पनाहगाह बनता जा रहा है। यह माइक्रोप्लास्टिक पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर चुनौती बन चुका है। लेकिन अब समय आ गया है जब हमें अपने प्लास्टिक उत्पादन, उपभोग और निपटान के तौर तरीकों में बदलाव करने की जरूरत है।
ऐसे में सबकी निगाहें इस वार्ता और उसके सुखद परिणामों पर टिकी हैं, उम्मीद है कि इससे जुड़े सभी पक्ष अपने व्यक्तिगत हितों और मतभेदों से आगे बढ़कर एक ऐसी दुनिया के सपने को सच करने में मददगार होंगें, जिसमें सभी को स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण में जीवन व्यतीत करने का अवसर मिल सके।