सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को एक आदेश जारी किया है जिसमें उसने कहा है कि वकीलों को राहत देने के लिए कोविड-19 फण्ड पर विचार किया जा रहा है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि चूंकि वकील नियमों से बंधे हैं जिसके अनुसार वह अपनी आय के लिए केवल अपने पेशे तक ही सीमित हैं। नियमों में उन्हें किसी और माध्यम से आजीविका कमाने की अनुमति नहीं है। ऐसे में अदालतों के बंद होने के कारण उन्हें अपनी आय के एक बड़े हिस्से से वंचित होना पड़ा है| इस वजह से उनका जीवन मुश्किल हो गया है। ऐसे में उनके लिए यह फण्ड मददगार होगा।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट के मान्यता प्राप्त बार एसोसिएशनों को कारण बताओ नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है जिससे यह स्पष्ट किया जा सके की जरूरतमंद और योग्य वकीलों को राहत देने के लिए फण्ड स्थापित क्यों नहीं किया जाए। इसके साथ ही स्वयं के सदस्यों या किसी अन्य वैध स्रोत से भी दान लेने के लिए विचार किया जा रहा है।
अदालत ने यह भी कहा है कि बार एसोसिएशनों द्वारा इस तरह की वित्तीय सहायता के लिए पात्रता के मानदंडों को निर्धारित करना भी जरूरी होगा। कोर्ट के अनुसार इस मामले में केंद्र सरकार, राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों, बार काउंसिल ऑफ इंडिया और सभी राज्य के बार काउंसिलों को भी नोटिस जारी किया गया है। इसके साथ ही सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को भी नोटिस जारी किया जाएगा।
दिल्ली में स्मॉग टावर्स लगाने में देरी क्यों हो रही है? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताते हुए 21 जुलाई को एक आदेश जारी किया है, जिसमें इस मामले पर रिपोर्ट सबमिट करने के लिए कहा गया है। गौरतलब है कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 13 जनवरी को एक आदेश जारी किया था जिसमें तीन महीने के भीतर स्मॉग टावर लगाने का निर्देश दिया गया था।
इस उद्देश्य के लिए एक समझौता किया जाना था। इस पर केंद्र और दिल्ली सरकार ने एक हलफनामे द्वारा यह सूचित किया था कि इन टावर्स को लगाने के लिए स्थानों का चुनाव हो चुका है। लेकिन तीन महीनों के बाद भी न तो समझौते किया गया और न ही इसकी जरुरी ड्राइंग प्राप्त की गई थी।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) और दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि यदि ड्राइंग अब तक एकत्र नहीं की गई हैं तो उन्हें जल्द से जल्द कलेक्ट किया जाए। साथ ही सात दिनों के अंदर समझौते पर हस्ताक्षर किये जाए। इसपर हो रही कार्यवाही पर एक रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत की जाए।
सीपीसीबी के अनुसार देश में करीब 1.6 लाख हेल्थ केयर सेंटर बिना परमिशन के चल रहे हैं। इन सेंटर्स को बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 के अंतर्गत अनुमति नहीं मिली है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 20 जुलाई, 2020 को दिए अपने आदेश में साफ कर दिया है कि कोविड-19 के कारण उत्पन्न हो रहे बायो-मेडिकल वेस्ट का वैज्ञानिक तरीके से निपटान करना जरूरी है| इसके साथ ही इसे आम कचरे से भी अलग करना जरूरी है। एनजीटी के अनुसार यह ने केवल बायो मेडिकल वेस्ट के उपचार और निपटान सुविधा (सीबीडब्ल्यूएफएफ) पर पड़ रहे दबाव को कम करने के लिए अहम है बल्कि इसके साथ ही संक्रमण को फैलने से रोकने और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को रोकने के लिए भी जरूरी है|
गौरतलब है कि इससे पहले 17 जून 2020 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अपनी रिपोर्ट एनजीटी में सबमिट की थी जिसमें कोविड-19 से जुड़े कचरे की जमीनी हकीकत बताई गई थी। सीपीसीबी द्वारा एनजीटी को दी गई जानकारी के अनुसार देश में करीब 1.6 लाख हेल्थ केयर सेंटर (एचसीएफ) बिना परमिशन के चल रहे हैं। इन सेंटर्स को बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 के अंतर्गत अनुमति नहीं मिली है| जबकि रिपोर्ट के अनुसार केवल 1.1 लाख एचसीएफ को ही अनुमति दी गई है। ऐसे में इन सेंटर्स के द्वारा उत्पन्न हो रहा बायोमेडिकल वेस्ट अपने आप में ही एक बड़ी चुनौती है। एनजीटी के अनुसार ऐसे में राज्य के पीसीबी और पीसीसी को बायोमेडिकल वेस्ट का सही तरीके से निपटान करने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे।
रिपोर्ट के अनुसार जिन हॉस्पिटल्स, क्वारंटाइन सेंटर और घरों में कोरोना से संक्रमित मरीज हैं वहां उत्पन्न होने वाले कचरे को ठीक तरीके से अलग नहीं किया जा रहा है जबकि बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016 और सीपीसीबी द्वारा कोविड-19 के लिए जारी दिशानिर्देशों के अनुसार इस तरह के कचरे का सही तरीके से प्रबंधन करने के लिए इसको सामान्य कचरे से अलग करना जरूरी है|
गौरतलब है कि इससे पहले 24 अप्रैल 2020 को भी एनजीटी ने केंद्र और सीपीसीबी को सही तरीके से कोविड-19 के वेस्ट की निगरानी और निपटान करने के निर्देश दिए थे। सीपीसीबी ने पहले ही कोविड-19 के इलाज के दौरान उत्पन्न होने वाले सभी प्रकार के बायोमेडिकल वेस्ट पर ‘कोविड-19 कचरा’ होने का लेबल लगाना अनिवार्य कर दिया था। यह दिशानिर्देश बायो-मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के तहत जारी किए गए थे।
सामान्य कचरे को बायोमेडिकल वेस्ट में मिलाने से सीबीडब्ल्यूएफएफ पर अतिरिक्त दबाव पड़ने लगता है क्योंकि उन्हें घरेलू कचरे के निपटान के लिए नहीं बनाया गया है। सीपीसीबी रिपोर्ट के अनुसार कचरे को अलग नहीं करने से दूषित प्लास्टिक के फिर से उपयोग में आने का खतरा बना रहता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई, 2020 को दिल्ली में फैल रहे बायोमेडिकल कचरे पर एक आदेश जारी किया जिसमें निर्देश दिया गया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के विभिन्न अस्पताल कोरोना और अन्य बायोमेडिकल वेस्ट का किस तरह प्रबंधन कर रहे हैं, उस पर चर्चा के लिए एक बैठक आयोजित की जाए। बैठक में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) और पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण, दिल्ली नगर निगम और केंद्र एवं दिल्ली सरकार के संबंधित विभागों के अधिकारी और प्रतिनिधि शामिल होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने अस्पतालों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया जिसमें उनसे यह सुनिश्चित करने के लिए कहा जाए कि बायो मेडिकल वेस्ट को खुले में न डंप किया जाए।
सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश दिल्ली में खुले में फेंके जा रहे बायोमेडिकल वेस्ट की शिकायत के बाद आया है। इसमें आरोप लगाया गया था कि कोरोना रोगियों के कारण उत्पन्न हो रहे वेस्ट को भी अन्य वेस्ट के साथ खुले में फेंक दिया गया था जिसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। इस तरह के कचरे को पूरी तरह जलाकर नष्ट करने के बाद ठीक से निपटान करना जरूरी है|
बायोमेडिकल वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रूल्स, 2016 के तहत, वेस्ट के मामले में कोई भी अस्पताल केवल राज्य प्रदूषण बोर्ड द्वारा स्वीकृत सामान्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा प्रदान कर रहे ठेकेदार के साथ कॉन्ट्रेक्ट कर सकता है। यह ठेकेदार अस्पतालों से कचरे को इकट्ठा करेगा और उसके निपटान का प्रबंधन करेगा।
ऐसे में कोर्ट ने आदेश दिया है कि 2016 के नियमों के अनुसार बायोमेडिकल वेस्ट के मामले में बार-कोड प्रणाली का पूरी तरह इस्तेमाल किया जाना चाहिए जो नियमों में तो है पर उसे पूरी तरह लागू नहीं किया गया है। इसकी मदद से कचरे को उत्पन्न होने से लेकर, एकत्र, संसाधित और रीसायकल करने तक ट्रैक किया जा सकता है।