26 मई 2020 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला कलेक्टर, झारसुगुड़ा को मैसर्स जय हनुमान उद्योग लिमिटेड पर पर्यावरण सम्बन्धी नियमों की अनदेखी करने पर जांच का निर्देश दिया है। साथ ही रिपोर्ट दर्ज करने का भी आदेश दिया है| यह मामला इंडस्ट्री द्वारा तालाब में कोयले की राख के निपटान से जुड़ा है| मैसर्स जय हनुमान जोकि पिग आयरन, स्पंज आयरन, और स्टील और लोहे के निर्माण में लगा हुआ था| जिसके लिए उद्योग में कोयले को ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता था|
शिकायतकर्ता, बिजय मिश्रा ने कोर्ट को बताया कि हालांकि जिस तालाब में उद्योग द्वारा कोल् ऐश का निपटान किया जाता है वो उद्योग की जमीन पर है| लेकिन वो तालाब गांव से लगभग 300-400 मीटर की दूरी पर है| इसके साथ ही उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि इस ऐश युक्त तालाब के चलते इस इलाके का भूजल प्रदूषित हो रहा है| इसके कारण मिटटी और भूजल में आर्सेनिक पाया गया है| जिसकी मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है| इसके साथ ही इस यूनिट से निकलने वाली राख और उसकी धूल हवा को भी प्रदूषित कर रही है| जिसके कारण इस क्षेत्र में पेड़ पौधों और वनस्पति को नुकसान पहुंच रहा है|
इसके साथ ही उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि इस उद्योग से निकलने वाली सफेद राख आस-पास की हर चीज पर जमा हो जाती है| वो राख गांव वालों के घरों, कपड़ों, पेड़ पौधों, फलों, सब्जियों, पानी और यहां तक की उनके खाने में भी पहुंच जाती है| जिसके चलते लोग सांस की बीमारी और अन्य रोगों का शिकार बनते जा रहे हैं|
इसके साथ ही उन्होंने ट्रिब्यूनल को बताया कि उद्योग ने वायु प्रदूषण को रोकने के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाये हैं| इंडस्ट्री अब तक उत्सर्जित हो रहे प्रदूषकों को रोकने के लिए किसी प्रकार की उन्नत फिल्ट्रेशन तकनीक का उपयोग नहीं कर रही है| और न ही उसने धूल को रोकने के लिए किसी प्रकार के उपाय किये हैं| जिस कारण वहां का वातावरण दिन-प्रतिदिन दूषित होता जा रहा है|