पर्यावरण मुकदमों की डायरी: अवैध खनन रोकने के लिए एनजीटी ने जारी किए दिशा-निर्देश
एनजीटी की जस्टिस श्यो कुमार सिंह और विशेषज्ञ सदस्य सत्यवान सिंह गर्ब्याल की पीठ ने निर्देश दिया है कि मध्य प्रदेश में अवैध और जरुरत से ज्यादा हो रहे खनन को रोकने के लिए एक संस्थागत ढांचा और तंत्र होना चाहिए। साथ ही राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खनन के कारण पर्यावरण पर बुरा असर ने पड़े।
एनजीटी ने कहा है कि रेत खनन के लिए जारी पर्यावरण मंजूरी में कुछ अनिवार्य शर्तें होनी चाहिए जैसे:
- माइनिंग करने वाले को कम से कम संख्या में पोकलेन का उपयोग करना चाहिए और यह एक परियोजना स्थल में दो से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- जिला प्रशासन को पहले वर्ष के अंत में माइनिंग पर जाकर उसके पर्यावरण पर पड़ रहे असर का आंकलन करना चाहिए। जिसके आधार पर काम जारी रखना है या नहीं उसकी अनुमति देनी चाहिए।
- खनन क्षेत्र को ठीक से भर दिया गया है इस पर अधिकृत एजेंसी द्वारा हर साल रिपोर्ट तैयार करके निर्धारित प्राधिकारी को दी जानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो उसके अनुसार खनन के काम को रोका या कम किया जा सकता है।
- वर्तमान प्राकृतिक नदी तल स्तर से अंतिम कार्य की गहराई कम से कम 1 मीटर होनी चाहिए और जिस जगह रेत खनन करना है वहां रेत की मोटाई 3 मीटर से अधिक होनी चाहिए।
- किसी भी हालत में ग्राउंडवाटर लेबल से नीचे रेत खनन नहीं किया जाना चाहिए। यदि भूजल का स्तर 1 मीटर के अंदर है तो खनन को तुरंत रोका जाना चाहिए
- रेत खनन से किसी भी तरह नदी के पानी की गुणवत्ता में गिरावट और वेग पर असर नहीं होना चाहिए। साथ ही इससे नदी के प्रवाह और उसके पैटर्न पर भी असर नहीं पड़ना चाहिए।
- महीने में एक बार तालुक स्तर के अधिकारियों द्वारा खनन कार्य की स्वयं जाकर जांच की जानी चाहिए।
- खनन बंद करने के बाद जिसे माइनिंग का लाइसेंस दिया गया है उसके द्वारा खदान पर डाले गए सभी शेड को तुरंत हटा देना चाहिए। साथ ही खनन के संचालन के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी उपकरणों, सड़कों और रास्तों को समतल किया जाना चाहिए ताकि नदी बिना किसी कृत्रिम अवरोध के अपने सामान्य मार्ग पर फिर से बह सके सके।
- जहां खनन किया गया है वहां बने गड्ढों को तुरंत भर देना चाहिए। साथ ही उस जगह को जितना हो सके पुरानी स्थिति में लाना चाहिए, जिससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान को सीमित किया जा सके।
एनजीटी का यह आदेश 19 अक्टूबर, 2020 को जारी किया गया है। जिसे मध्य प्रदेश के सागर में लिधोराहाट घाट बडुआ में हो रहे अवैध खनन पर दायर एक आवेदन के संबंध में पारित किया गया है।
सुस रोड बैनर विकास मंच ने वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट के खिलाफ कोर्ट में दायर की याचिका
सुस रोड बैनर विकास मंच ने नोबल एक्सचेंज एनवायरनमेंट सॉल्यूशन (नेक्स), पुणे द्वारा संचालित वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट के खिलाफ अर्जी कोर्ट में जमा कर दी है। मामला सर्वे नंबर 48, बनेर, पुणे का है।
अर्जी के अनुसार भूमि का वह टुकड़ा जिस पर संयंत्र स्थापित किया गया है, एक पहाड़ी पर स्थित है। जिसपर नेक्स द्वारा मशीनरी को उक्त पहाड़ी की ढलान पर स्थापित किया गया है। मशीनरी को ऐसी दिशा में रखा गया है जिससे हवा के साथ प्लांट से निकली बदबू पूरे क्षेत्र में फैल जाती है।
इस भूमि को शुरू में स्वीकृत विकास योजना के अंतर्गत बायो डाइवर्सिटी पार्क के लिए आरक्षित किया गया था। जिसे अधिकारियों ने बिना किसी सार्वजनिक सुनवाई और निवासियों की सहमति के इस पर मशीनरी स्थापित कर दी।
इस संयंत्र को संचालित करने के लिए सहमति नहीं मिली है और यह महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्राप्त प्राधिकरण के बाद काम कर रहा है। इसके 200 मीटर के दायरे में 11 बिल्डिंग हैं। साथ ही इसके आसपास और भी इमारतें बन रही हैं। साथ ही यह संयंत्र पुणे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके साथ ही नेक्स ने इस प्लांट को शुरू करने से पहले एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया से भी एनओसी नहीं ली है जोकि म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट रूल्स 2016 का उल्लंघन है।
हरदा में हो रहे अवैध रेत खनन की जांच के लिए एनजीटी ने दिया संयुक्त समिति के गठन का निर्देश
20 अक्टूबर 2020 को एनजीटी ने मध्य प्रदेश में हो रहे अवैध रेत खनन की जांच के लिए एक संयुक्त समिति गठित करने का निर्देश दिया है। मामला मध्य प्रदेश के हरदा जिले का है।
जिला खनन अधिकारी और मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की एक समिति को जगह का दौरा करने और छह सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है। जिसमें क्या कार्रवाई की गई है उसकी जानकारी देनी है। इस मामले में समन्वय और रसद सम्बन्धी सहायता की जिम्मेवारी मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की होगी।