सांगली में चीनी मिलें कृष्णा नदी को मैला कर रही हैं। इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), 24 अगस्त को दिए अपने आदेश में एक संयुक्त समिति के गठन के निर्देश दिए हैं जो नदी में बढ़ते प्रदूषण की जांच करेगी और अगले चार सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगी।
गौरतलब है कि इस मामले में स्वतंत्र भारत पक्ष के सांगली जिला प्रमुख सुनील फाराटे ने 24 जुलाई, 2022 को एनजीटी में एक आवेदन दाखिल किया था। इस आवेदन में उन्होंने सांगली के आसपास स्थित कई उद्योगों द्वारा कृष्णा नदी में दूषित पानी छोड़े जाने का मुद्दा उठाया था। इस सम्बन्ध में आवेदक ने अधिकारियों से भी शिकायत की थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
उन्होंने कृष्णा नदी में छोड़े जा रहे दूषित अपशिष्ट के कारण मछलियों की मौत और जैव विविधता को हो रहे नुकसान का भी हवाला दिया है। आवेदक का कहना है कि कृष्णा नदी पर महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) द्वारा किए गए निरीक्षण से पता चला है कि मछलियों की मौत की वजह चीनी मिलों और आसपास के क्षेत्रों में उद्योगों द्वारा छोड़ा गया अपशिष्ट था।
जानकारी दी गई है कि उद्योग शीरे का स्टॉक करते हैं और जब मानसून में पानी मैला हो जाता है तो शीरे को उसमें छोड़ देते हैं क्योंकि उस वक्त इसपर ध्यान नहीं दिया जाता।
रेत खनन दिशानिर्देशों को सख्ती से किया जाए लागू, एनजीटी ने मध्य प्रदेश सरकार को दिए निर्देश
एनजीटी ने मध्य प्रदेश सरकार को निर्देश दिए हैं कि राज्य में रेत खनन दिशानिर्देशों को सख्ती से किया जाए। कोर्ट ने राज्य को सतत रेत खनन दिशानिर्देश 2016 (एसएसएमजी-2016) के साथ-साथ रेत खनन, 2020 (ईएमजीएसएम-2020) के प्रवर्तन और निगरानी दिशानिर्देशों का भी पालन करना होगा।
साथ ही कोर्ट ने अधिकारियों को जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने के साथ पर्यावरण प्रबंधन योजना, बहाली से जुड़ा अध्ययन, खदान बंद करने की योजना, पर्यावरण मंजूरी, मुआवजे का आकलन और वसूली, अवैध खनन में शामिल वाहनों की जब्ती और रिहाई और अन्य सुरक्षा उपायों के लिए तंत्र भी तैयार करना चाहिए।
न्यायमूर्ति श्यो कुमार सिंह द्वारा 23 अगस्त, 2022 को दिए आदेश में कहा है कि इसके लिए अधिकारियों की जवाबदेही और समय-समय पर राज्य में उच्च स्तरीय समीक्षा की जानी चाहिए।
साथ ही कोर्ट का कहना है कि राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय समिति द्वारा समय समय पर निरीक्षण के लिए एक तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। इस समिति में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और विषय से संबंधित राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (एसईएसी) के दो सदस्य शामिल होंगें।
सीहोर के चिपानेर एवं चौरासखेड़ी में रात के समय ट्रैक्टर, डम्पर एवं ट्रॉलियों की मदद से नर्मदा के किनारे हो रहे अवैध बालू खनन के मामले में दायर आवेदन के जवाब में कोर्ट ने यह आदेश दिया है। पता चला है कि पनडुब्बियों की मदद से किया जा रहा अवैध खनन वहां पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है।
यह भी जानकारी मिली है कि इस मामले में सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट ने एक अभियान चलाया था और उसमें 13 से अधिक वाहनों को जब्त किया था जो अवैध रेत खनन में लगे हुए थे। यह भी पता चला है कि ठेकेदार - मेसर्स पावर मेच ने ग्राम चिपानेर में 4 अलग-अलग घाट स्थापित किए हैं और वो लगातार रेत खनन कर रहा है, जिसकी न तो उसने कोई जानकारी दी है न ही उसकी सीमा निर्धारित की है। खनन का यह पूरा खेल अवैध रूप से चल रहा है।
उत्तर प्रदेश में गाय और बछड़ों के परिवहन के लिए किसी परमिट की जरुरत नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने 25 अगस्त, 2022 को दिए आदेश में कहा है कि उत्तर प्रदेश के भीतर एक गाय और उसके बछड़े के लिए किसी परमिट की जरूरत नहीं है। इस बारे में न्यायमूर्ति मोहम्मद असलम की खंडपीठ का कहना है कि न ही इनका परिवहन गोहत्या अधिनियम के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन है।
गौरतलब है कि उच्च न्यायालय ने 18 अगस्त, 2021 को वाराणसी जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित जब्ती के आदेश को आधार पर रद्द कर दिया है कि वो बिना वैध अनुमति के गोहत्या के उद्देश्य से जानवरों को ले जा रहा था। गौरतलब है कि वाहन को जिला चंदौली के थाना सईदराजा की पुलिस ने 16 बैलों के साथ पकड़ा था।
हिमालय पत्थर उद्योग को ध्वनि मानकों के अनुरूप होना चाहिए: सर्वोच्च न्यायलय
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया है कि हिमालय पत्थर उद्योग को ध्वनि मानकों के अनुरूप होना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नियमों को सख्ती से लागू करने के लिए कहा है।
इस मामले में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने शीर्ष अदालत को सूचित किया है कि आदेश के अनुसार इस उद्योग का समय-समय पर निरीक्षण किया गया है और वहां ध्वनि प्रदूषण का स्तर 75 डीबी (ए) की सीमा के भीतर था।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को एक सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है जिसमें इस बात की जानकारी होने चाहिए कि अपीलकर्ता जिस क्षेत्र में काम कर रहे हैं, उसे ध्वनि प्रदूषण के उद्देश्य से किस तरह से वर्गीकृत किया गया है।