उत्तराखंड सिंचाई विभाग की विफलता के कारण मैली हो रही है गंगा?

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
उत्तराखंड सिंचाई विभाग की विफलता के कारण मैली हो रही है गंगा?
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उत्तराखंड उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक जनहित याचिका में कहा है कि उत्तराखंड सिंचाई विभाग द्वारा परियोजनाओं को पूरा नहीं करने के कारण हरिद्वार में दूषित सीवेज गंगा नदी में डाला जा रहा है। इस मामले में याचिकाकर्ता (रतनमणि डोभाल) ने सिंचाई विभाग, उत्तराखंड द्वारा शुरू की गई तीन परियोजनाओं पर प्रकाश डाला है।

इसमें पहली परियोजना 2,365.39 लाख रुपए की लागत से बन रही सिंचाई नहर है। जिसे नाबार्ड के अंतर्गत हरिद्वार जिले के जगजीतपुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से निकले ट्रीटेड पानी को पुन: उपयोग के लिए ले जाने के लिए तैयार किया गया है।

दूसरी केंद्रीय प्रायोजित (जीएफसीसी) योजना के अंतर्गत हरिद्वार के लक्सर ब्लॉक में सोलानी नदी (यूके-13) के बाएं किनारे पर बाढ़ के खतरों से बचने के लिए निर्माण सम्बन्धी है। इसकी लागत 2,260.57 लाख रुपए है। वहीं तीसरी परियोजना हरिद्वार में है, जिसकी लागत 695.98 लाख रुपए है। इसमें एआईबीपी के तहत सुभाष गढ़ सिंचाई नहर का निर्माण है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि बड़ी मात्रा में धन खर्च करने के बावजूद अब तक इन परियोजनाओं को पूरा नहीं किया गया है। उनके अनुसार यह परियोजनाएं विफल रही हैं। याचिकाकर्ता ने पहली दो परियोजनाओं के संबंध में संबंधित अधिकारियों द्वारा की गई जांच रिपोर्ट को भी कोर्ट के सामने रखा है।

इस रिपोर्ट में परियोजनाओं को शुरू करने के तरीके में घोर अनियमितताओं की बात कही है। उनके अनुसार उपरोक्त परियोजनाओं में से पहली हरिद्वार जिले के जगजीतपुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से जुड़ी है, जिसकी मदद से इस प्लांट से निकले ट्रीटेड पानी को डायवर्ट करना था। लेकिन इस परियोजना की विफलता के चलते दूषित सीवेज गंगा नदी में डाला जा रहा है।

इस मामले में कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को विशेष रूप से याचिकाकर्ता द्वारा उल्लेखित जांच रिपोर्ट पर जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने यह भी जवाब मांगा है कि इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। कोर्ट का कहना है कि गंगा नदी में सीवेज का पानी छोड़ना एक गंभीर चिंता का विषय है, और इसे तुरंत बंद करना चाहिए।

साथ ही जब तक पहली परियोजना पूरी नहीं होती, तब तक उसके लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था करने का निर्देश दिया है। कोर्ट का कहना है कि कोर्ट के सामने जो जवाबी हलफनामे दायर करना है उसमें यह खुलासा होना चाहिए कि प्रतिवादी संख्या 5 और 6 के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है और अन्य सभी, जो उपरोक्त तीन परियोजनाओं की विफलता के लिए जिम्मेदार हैं उनपर क्या एक्शन लिया गया है।

पहाड़ों पर पर्यटन की इजाजत देने से पहले एनवायरनमेंट ऑडिट रिपोर्ट लेना जरुरी: उत्तराखंड उच्च न्यायालय 

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा है 30 नई चोटियों और 10 पगडंडियों पर पर्यटन की इजाजत देने से पहले उत्तराखंड सरकार को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) से एनवायरनमेंट ऑडिट रिपोर्ट लेना जरुरी है। न्यायालय का यह आदेश उत्तराखंड सरकार द्वारा पर्यटकों और पर्वतारोहियों के लिए लिए 30 नई चोटियों और 10 पगडंडियों को खोले जाने की खबर की प्रतिक्रिया में था।

इस मामले में उच्च न्यायालय ने राज्य में सॉलिड वेस्ट और गैर-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक कचरे की सफाई के मुद्दे पर भी निर्णय दिया है। गौरतलब है कि इस मामले में उच्च न्यायालय ने 7 जुलाई, 2022 को राज्य के सभी जिलाधिकारियों को ठोस अपशिष्ट और गैर-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक कचरे को साफ करने के लिए उठाए गए कदमों पर स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

वहीं उच्च न्यायालय ने 3 अगस्त, 2022 को इस पर एक नोट जारी किया था कि किसी भी जिला मजिस्ट्रेट ने इसपर स्थिति रिपोर्ट सबमिट नहीं की है। ऐसे में 23 अगस्त, 2022 को होने वाली अगली सुनवाई तक जिला मजिस्ट्रेटों को स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।

इस मामले में याचिकाकर्ता जितेंद्र यादव ने एक पूरक हलफनामे में वन प्रशिक्षण संस्थान के पास 2 अगस्त, 2022 को ली गई तस्वीरों को भी कोर्ट में सबमिट किया है। यह तस्वीरें हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज की स्टाफ कॉलोनी के साथ-साथ मंडी बाईपास रोड से सटे क्षेत्र में भारी मात्रा में प्लास्टिक कचरे और सड़कों के किनारे एकत्र अन्य कचरे को दर्शाती हैं।

इस बारे में मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आर.सी. खुल्बे की पीठ का कहना है कि जब भी लोगों की भारी भीड़ जमा होती है तो यह आवश्यक है कि उत्तराखंड उन स्थितियों से निपटने के लिए पर्याप्त व्यवस्था करें, जो स्वच्छता के बुनियादी ढांचे के साथ-साथ कचरा संग्रहण और निपटान के बुनियादी ढांचे को भी चुनौती देती हैं।

अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि वो हरिद्वार जिले का सर्वेक्षण करे और जिले में कांवड़ यात्रा के चलते पैदा हो रहे कचरे के संबंध में अपने निष्कर्ष अदालत के सामने रखे।

पौड़ी गढ़वाल के किस क्षेत्र में है स्टोन क्रेशर? उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पूछा सवाल

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड औद्योगिक विकास (खनन) के मुख्य सचिव से पूछा है कि क्या भुवदेवपुर पट्टी गांव में मौजूद स्टोन क्रेशर पहाड़ी क्षेत्र में है या फिर वो मैदानी क्षेत्र में है। मामला उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में कोटद्वार के भुवदेवपुर पट्टी गांव का है।

गौरतलब है कि स्टोन क्रेशर राज्य के खनन नियमों के अनुरूप है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 3 अगस्त 2022 को यह आदेश पारित किया था।

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