वैश्विक स्तर पर दिन प्रतिदिन बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक कचरा यानी ई-वेस्ट एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। यह समस्या कितना विकराल रूप ले चुकी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर सालाना 6.2 करोड़ टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हो रहा है। वहीं यदि 2010 के बाद से देखें तो इस कचरे में 82 फीसदी का इजाफा हुआ है।
इस कचरे की मात्रा कितनी अधिक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यदि इन्हें 40-मीट्रिक-टन क्षमता के ट्रकों को भरा जाए तो इसके लिए 15.5 लाख से अधिक ट्रकों की जरूरत पड़ेगी। इन ट्रकों को एक के पीछे एक लगाया जाए तो यह भूमध्य रेखा के चारों और एक लाइन बना सकते हैं।
यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (यूएनआईटीएआर) और इंटरनेशनल टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन (आईटीयू) द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘द ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2024’ में सामने आई है। संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों का रिपोर्ट में कहना है कि दुनिया इलेक्ट्रॉनिक कचरे के खिलाफ जारी जंग हार रही है।
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया है कि यदि यह इलेक्ट्रॉनिक कचरा इसी तरह से बढ़ता रहा तो यह 2030 तक 32 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 8.2 करोड़ टन पर पहुंच सकता है। आंकड़ों के मुताबिक ई-कचरे का वार्षिक उत्पादन 23 लाख टन प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है।
क्या है यह इलेक्ट्रॉनिक कचरा
देखा जाए तो आज जिस तरह से देश-दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक्स सामान का चाव बढ़ रहा है, वो एक बड़ी समस्या को जन्म दे रहा है। यह इलेक्ट्रॉनिक गैजेट जहर बनकर हमारे वातावरण में वापस आ रहे हैं जो न केवल पर्यावरण बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं।
आमतौर पर हम अपने घरों, उद्योगों में जिन मोबाइल, लैपटॉप, टीवी, टेबलेट, सोलर पैनल्स सहित दूसरे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट और अन्य उत्पादों को इस्तेमाल के बाद फेंक देते है, वहीं बेकार फेंका हुआ कचरा, इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (ई-वेस्ट) कहलाता है।
समस्या तब उत्पन्न होती है, जब इस कचरे का उचित तरीके से कलेक्शन और निपटान नहीं किया जाता। इसका गैर-वैज्ञानिक तरीके से किया जा रहा निपटान ही सबसे बड़ी समस्या है जो मिट्टी, पानी और हवा को जहरीला बना रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में यूरोप, ओशिनिया और अमेरिका ने प्रति व्यक्ति सबसे अधिक इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा किया था। इस कचरे में यूरोप प्रति व्यक्ति 17.6 किलोग्राम के हिसाब से सबसे आगे है। इसके बाद ओशिनिया ने प्रति व्यक्ति 16.1 किलोग्राम और अमेरिका ने 14.1 किलोग्राम कचरा पैदा किया था।
हालांकि साथ ही इन देशों में ई-कचरे को इकट्ठा और रीसाइक्लिंग करने के भी पर्याप्त साधन हैं। नतीजन इन देशों में कचरे की संग्रह और रीसाइक्लिंग की दर भी ऊंची है। गौरतलब है कि यूरोप में प्रति व्यक्ति 7.53 किलोग्राम, ओशिनिया में प्रति व्यक्ति 6.66 किलोग्राम और अमेरिका में प्रति व्यक्ति 4.2 किलोग्राम कचरा एकत्र और रीसायकल किया जा रहा है।
देखा जाए तो समस्या यह है कि दुनिया में जिस तेजी से इलेक्ट्रॉनिक कचरा बढ़ रहा है उसके रीसाइक्लिंग की दर उस गति से नहीं बढ़ रही है। रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में पैदा हुए इस ई-कचरे का महज 22.3 फीसदी हिस्सा आधिकारिक तौर पर एकत्र और रीसायकल किया गया था। हैरानी की बात है कि रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक इलेक्ट्रॉनिक कचरे के संग्रह और पुनर्चक्रण की दर घटकर 20 फीसदी रह जाएगी।
आंकड़ों के मुताबिक दुनिया का करीब एक तिहाई यानी 2,000 करोड़ किलोग्राम इलेक्ट्रॉनिक कचरा खिलौने, माइक्रोवेव ओवन, वैक्यूम क्लीनर और ई-सिगरेट जैसे छोटे उपकरणों के रूप में पैदा हो रहा है।
हालांकि इसके बावजूद इस श्रेणी के उपकरणों की रीसाइक्लिंग दर बेहद कम है, जो वैश्विक स्तर पर केवल 12 फीसदी दर्ज की गई है। वहीं अन्य 500 करोड़ किलोग्राम ई-कचरे में छोटे आईटी और दूरसंचार उपकरण शामिल हैं, जिनमें लैपटॉप, मोबाइल फोन, जीपीएस डिवाइस और राउटर प्रमुख हैं।
इस कचरे का भी केवल 22 फीसदी हिस्सा ही औपचारिक रूप से एकत्र और रीसायकल किया जा रहा है। वहीं इनकी तुलना में भारी उपकरणों जैसे एयर कंडीशनर, स्क्रीन और मॉनिटर आदि को संग्रह और रीसायकल करने की दर अधिक है।
यहां तक की ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिए डिजाईन की गई वस्तुएं जैसे सोलर पैनल भी इस कचरे में बड़े पैमाने पर योगदान दे रही हैं। 2022 में करीब 60 करोड़ टन फोटोवोल्टिक पैनल ने ई-कचरे में योगदान दिया था।
2010 के बाद से, देखें तो इलेक्ट्रॉनिक कचरा, औपचारिक संग्रह और रीसाइक्लिंग प्रयासों में हो रही वृद्धि की तुलना में करीब पांच गुणा ज्यादा तेजी से बढ़ा है। इसका मतलब की इस कचरे का ज्यादातर हिस्सा या तो लैंडफिल या अनौपचारिक रीसाइक्लिंग सिस्टम का हिस्सा बन रहा है। नतीजन पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्याएं पैदा हो रही हैं।
भारत में पैदा हो रहा है सालाना 413.7 करोड़ किलोग्राम ई-कचरा
आंकड़ों से यह भी पता चला है कि अफ्रीका सबसे कम ई-कचरा पैदा कर रहा है, लेकिन साथ ही वो इसे रीसायकल करने के लिए भी संघर्ष कर रहा है, जहां इस कचरे के रीसाइक्लिंग की दर एक फीसदी से भी कम है।
यदि भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में 2022 के दौरान 413.7 करोड़ किलोग्राम इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हुआ था। वहीं चीन में यह आंकड़ा 1,200 करोड़ किलोग्राम दर्ज किया गया था।
बता दें कि भारत में बढ़ते ई कचरे को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सात नवंबर, 2022 को निर्देश दिया था कि इलेक्ट्रॉनिक कचरे के मामले में सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रदूषण नियंत्रण समितियां, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी रिपोर्ट का पालन करें। साथ ही कोर्ट ने सीपीसीबी को भी सभी पीसीबी और पीसीसी के सचिवों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए साल में कम से कम दो बार स्थिति की निगरानी करने के लिए कहा था।
आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में जितना इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हो रहा है उसके करीब आधे (3,000 करोड़ किलोग्राम) के लिए एशिया जिम्मेवार है। हालांकि इस कचरे का सही निपटान और रीसायकल न हो पाना उससे भी बड़ी समस्या है। दुनिया में जितना भी ई-वेस्ट रीसायकल होता है उसका एक चौथाई एशिया का होता है। मतलब की बाकी कचरा ऐसे ही फेंक दिया जाता है। जो पर्यावरण, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार यह ई-कचरा पर्यावरण के साथ-साथ जलवायु से जुड़ी समस्याओं को भी पैदा कर रहा है। देखा जाए तो इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए दुर्लभ धातुओं और कच्चे माल की आवश्यकता होती है, जो ज्यादातर जीवाश्म ईंधन की मदद से प्राप्त होती हैं। ऐसे में इनकी बढ़ती मांग और रीसायकल की घटती दर के साथ वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है।
2022 में पैदा हुए इलेक्ट्रॉनिक कचरे में 3,100 करोड़ किलोग्राम धातुएं थी, जिनमें से 1,900 करोड़ किलोग्राम को मौजूदा सुविधाओं की मदद से सफलतापूर्वक रीसायकल और पुनः प्राप्त किया जा सकता था। इसका मतलब है कि इनमें से करीब 1,200 करोड़ किलोग्राम को ऐसे ही बर्बाद कर दिया गया था।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इस ई-कचरे का सही निपटान और प्रबंधन न करें से पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। यह बढ़ते उत्सर्जन के साथ-साथ हर साल करीब 58 हजार किलोग्राम पारा और साढ़े चार करोड़ किलोग्राम प्लास्टिक युक्त ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट पर्यावरण में मुक्त कर रहा है।
ऐसे में यदि इस इलेक्ट्रॉनिक कचरे का प्रभावी प्रबंधन और निपटान किया जाता तो न केवल पर्यावरण पर बढ़ते दबाव को कम किया जा सकता था, साथ ही यह आर्थिक रूप से भी फायदेमंद होता। इसके साथ ही इससे वैश्विक स्तर पर बढ़ते उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती।
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