प्रकाश जो इंसानी विकास की धुरी है, वो धीरे-धीरे समस्या का रूप ले रहा है। कई शहरों के लिए आज अंधेरा अवांछित हो गया है। देखा जाए तो शहरों में बढ़ती चकाचौंध धीरे-धीरे कब प्रदूषण में बदल गई, इसका पता ही नहीं चला। आज यही बढ़ता प्रदूषण न केवल इंसानों को बल्कि उसके साथ-साथ अन्य दूसरे जीवों को भी प्रभावित कर रहा है।
प्रकाश प्रदूषण के बढ़ते प्रभावों को लेकर किए ऐसे ही एक नए अध्ययन से पता चला है कि शहरों में बढ़ती चकाचौंध कई पक्षियों को विचित्र तरीके से प्रभवित कर रही है। शहरों में यह चमकदार रौशनी कुछ पक्षियों में शारीरिक बदलाव की वजह बन रहा है। इस प्रकाश के अनुकूल होने के लिए कुछ पक्षियों में आंखों का आकार सिकुड़ रहा
यह अध्ययन टेक्सास ए एंड एम विश्वविद्यालय और वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे 20 सितम्बर 2023 को जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।
अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया है कि टेक्सास के सैन एंटोनियो में शहर के बीचों बीच रहने वाली सांगबर्ड्स की दो प्रजातियों नॉर्दर्न कार्डिनल और कैरोलिना व्रेन की आंखें बाहरी इलाकों में कम रौशनी में रहने वाली अपने समकक्षों की तुलना में करीब पांच फीसदी छोटी थी। हालांकि अध्ययन में प्रवासी पक्षियों की दो प्रजातियों पेंटेड बंटिंग और व्हाइट-आइड वीरियो, की आंखों के आकार में कोई अंतर नहीं देखा गया, भले ही वो साल के अधिकांश समय में शहर के किसी भी हिस्से में रहीं हों।
रोशन रातों की काली सच्चाई
इस अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि जहां आवासीय पक्षी समय के साथ शहरी वातावरण के अनुकूल हो सकते हैं, वहीं प्रवासी पक्षी ऐसा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि वे अपनी सर्दियां जिन क्षेत्रों में बिताते हैं वहां इंसानों द्वारा किया जा रहा प्रकाश और शोर-शराबा कम होता है। इस बारे में वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी की वन्यजीव पारिस्थितिकीविज्ञानी और वरिष्ठ लेखिका जेनिफर फिलिप्स ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि, "इन पक्षियों के लिए प्रजनन के सीजन में शहरी जीवन के साथ तालमेल बिठाना कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो सकता है।"
हाल ही में जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित एक अन्य शोध से पता चला है कि बढ़ता प्रकाश प्रदूषण जीवों के देखने की क्षमता को विचित्र तरह से प्रभावित कर रहा है। रिसर्च से पता चला है कि एलीफैंट हॉकमोथ के देखने की क्षमता कुछ प्रकार की रोशनियों में बढ़ गई थी, जबकि अन्य ने उन्हें बाधित किया था।
पता चला है कि यह बदलाव पौधों, जानवरों और उनके आपसी संबंधों पर भी असर डाल रहा है। अध्ययनों से यह भी सामने आया है कि रात के समय बढ़ता प्रकाश प्रदूषण मछलियों को भी प्रभावित कर रहा है।
एक अन्य शोध से पता चला है कि अमेरिका और कनाडा में पक्षियों की आबादी में करीब 29 फीसदी की गिरावट आई है, यह 1970 के बाद से 300 करोड़ पक्षियों को खोने के बराबर है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इनके आवासों पर पड़ता प्रभाव पक्षियों में गिरावट का मुख्य कारण है, लेकिन इस वर्तमान अध्ययन से पता चला है कि प्रकाश प्रदूषण जैसे कारक भी पक्षियों की शहरी वातावरण के अनुकूल होने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।
बता दें कि अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सैन एंटोनियो के मध्य और किनारे के क्षेत्रों में पाए जाने वाले 500 से अधिक पक्षियों का अध्ययन किया है। उन्होंने इस अध्ययन के दौरान पक्षियों के शरीर और आंखों के आकार की तुलना की है, साथ ही प्रत्येक क्षेत्र में दिन और रात के दौरान शोर और प्रकाश का विश्लेषण भी किया है।
इसी तरह अध्ययन में एक प्रजाति पेंटेड बंटिंग, को छोड़कर, विभिन्न क्षेत्रों में पक्षियों के आकार में कोई ख़ास अंतर नहीं देखा गया। करीब से जांच करने पर, शोधकर्ताओं ने पाया कि उनके आकार में यह अंतर मुख्य रूप से पक्षियों की उम्र से जुड़ा था। युवा और छोटे नर बंटिंग, जो अपने अधिक रंगीन पुराने समकक्षों की तुलना में साथी के लिए प्रतिस्पर्धा करने में चुनौतियों का सामना करते हैं। इसकी वजह से वो कहीं ज्यादा उजले और शोर भरे स्थानों पर कब्जा कर लेते हैं, जो संभवतः उनके लिए कम उपयुक्त होते हैं।
अध्ययन के प्रमुख लेखक टॉड एम जोन्स के मुताबिक, पक्षियों में आंखों का छोटा आकार उन्हें शहरों में उज्ज्वल और लगातार रोशनी वाली परिस्थितियों से निपटने में मदद कर सकता है। वहीं बड़ी आंखों वाले पक्षियों को रोशनी से चकाचौंध का अनुभव हो सकता है या सोने में कठिनाई हो सकती है, जिससे उन्हें शहरी परिवेश में नुकसान हो सकता है।
जोन्स के अनुसार मनुष्य अनजाने में ही सही पक्षियों को उन तरीकों से प्रभावित कर सकता है, जिन्हें हम पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। हम इस बारे में पूरी तरह निश्चित नहीं हैं कि ये अनुकूलन लम्बे समय में पक्षियों को फायदा पहुंचाएगा या नुकसान। खासकर जब उनके शहरी वातावरण में रहने की सम्भावना आगे भी बनी हुई है।