पांच वर्षीय गुरनूर सिंह एक असामान्य समस्या से पीड़ित हैं। उसके दूध के दांतों के टुकड़े बेतरतीब ढंग से टूटते रहते हैं। गुरनूर के पिता सुखविंदर सिंह पंजाब के लुधियाना जिले के घौंसपुर गांव के निवासी और पेशे से किसान हैं। वह कहते हैं कि गांव में कई बच्चों की यही स्थिति है।
लुधियाना से 200 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम स्थित फजिल्का जिले के बुर्ज मोहर गांव में नौ वर्षीय हरगुन कौर रहती हैं, वह भी दांतों की एक अजीब बीमारी से पीड़ित हैं। दूध के दांत गिरे बिना ही उसके स्थायी दांत निकलने लगे हैं। हरगुन के पिता दिमागी रूप से अक्षम हैं और बोल नहीं सकते इसलिए उसकी देखभाल उसके दादा कुलदीप सिंह के जिम्मे है।
कुलदीप कहते हैं कि दंत चिकित्सक ऐसी समस्याओं के लिए भारी धातुओं और फ्लोराइड जैसे दूषित पदार्थों से भरे पानी के लंबे समय तक सेवन को जिम्मेदार मानते हैं। दांतों की बीमारियों के अलावा, गुरनूर और हरगुन के बीच जो कड़ी है, वह है उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पानी का प्रदूषण स्रोत है यानी बुड्ढा नाला, जो 40 किलोमीटर लम्बा है और सतलुज की मौसमी सहायक नदी है (देखें, प्रदूषण का रास्ता)।
यह मौसमी नदी लुधियाना से निकलकर घौंसपुर से होकर गुजरती है और उसी जिले में सतलुज में विलीन हो जाती है। इस नदी के पूरे रास्ते में लुधियाना के नालों और सीवर नेटवर्क का अपशिष्ट (यह जिला पंजाब का सबसे प्रमुख औद्योगिक केंद्र है, जिसमें लगभग 2,000 इलेक्ट्रोप्लेटिंग और रंगाई इकाइयां स्थापित हैं) आकर मिलता रहता है। बुड्ढा नाले का पानी रिसाव के माध्यम से के भूजल को भी प्रदूषित करता है।
एनवायरमेंट साइंस में 2013 में छपे एक शोध में कहा गया है कि लुधियाना में नाले के आसपास के 6 किमी के क्षेत्र में एकत्र किए गए कई नमूने पीने के लिए अनुपयुक्त थे। 2010 में, केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने नाले को गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र घोषित किया था। चूंकि अधिकांश घौंसपुर निवासी सरकारी जलापूर्ति या अपने घर में बोरवेल से आपूर्ति किए गए पानी का उपयोग करते हैं, इसलिए यह संभव है कि वे दूषित पानी का सेवन कर रहे हों।
यहां के निवासी सुखविंदर सिंह कहते हैं, “जल शोधक कंपनी के एक इंजीनियर ने मुझे बताया कि इस पानी में कुल घुलनशील ठोस पदार्थों (टीडीएस) का स्तर 500 मिलीग्राम/लीटर की स्वीकार्य सीमा से बहुत अधिक है।” सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, क्लोराइड, बाइकार्बोनेट और सल्फेट्स सहित घुलनशील कार्बनिक पदार्थ और अकार्बनिक लवण टीडीएस के अंतर्गत आते हैं। वे किडनी और हृदय को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके बाद बुड्ढा नाला अपने सारे प्रदूषकों के साथ सतलुज में मिल जाता है।
संगम स्थल पर नाले के काले पानी और स्वच्छ सतलुज के पानी में जमीन आसमान का अंतर स्पष्ट दिखाई देता है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) ने सतलुज की जल गुणवत्ता (बुड्ढा नाला से मिलने से पहले) को क्लास सी-पेयजल स्रोत के रूप में वर्गीकृत किया है, इसे पारंपरिक उपचार के बाद कीटाणुशोधन किया जाता है। लेकिन दोनों जलधाराओं के मिलने के बाद, यह ग्रेड गिरकर ई श्रेणी तक पहुंच जाता है।
सिंचाई और औद्योगिक शीतलन (ठंडा होने की प्रक्रिया) के लिए उपयुक्त लेकिन पीने के लिए नहीं। प्रदूषित सतलुज आगे जाकर हरिके वेटलैंड में ब्यास से मिल जाती है, जहां से सरहिंद फीडर नहर निकलती है जो दक्षिण-पश्चिम पंजाब के चार जिलों-फिरोजपुर, फरीदकोट, मुक्तसर और फजिल्का से होकर गुजरती है। यह इसके बाद दो जिलों को पानी की आपूर्ति करती है।
सरहिंद नहर में पानी की गुणवत्ता पर कोई अध्ययन नहीं है, लेकिन आशंका है कि नहर के पानी में प्रदूषक हैं जिसका स्रोत बुड्ढा नाला है। फजिल्का के धारंगवाला गांव के किसानों का कहना है कि वे सिंचाई के लिए नहर के पानी का उपयोग करते हैं और पिछले कुछ वर्षों में कपास, गेहूं और चावल की उपज में 40 प्रतिशत की कमी देखी गई है।
सतलुज के अलावा नहर में मिलने वाली दूसरी नदी ब्यास है जिसके प्रदूषण का स्रोत होने की संभावना नहीं है। ह्यूमन एंड इकोलॉजिकल रिस्क असेसमेंट में 2018 के एक पेपर में सतलुज, ब्यास और हरिके वेटलैंड के भारी धातु प्रदूषण सूचकांक या एचपीआई (समग्र जल गुणवत्ता पर प्रत्येक भारी धातु का संयुक्त प्रभाव) की गणना की गई है, जिससे पता चलता है कि ब्यास का एचपीआई 31.25 था ( 100 के गंभीर प्रदूषण सूचकांक मान के भीतर), जबकि हरिके वेटलैंड और सतलुज के लिए ये आंकड़े क्रमशः 453 और 2,100 से अधिक थे।
इसलिए, जब सरहिंद के दूषित पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है तो भारी धातुओं के फसल में जमा होने और खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करने की आशंका रहती है। कई अध्ययनों में भारी धातुओं को कैंसर के बढ़ते खतरे से जोड़ा गया है। वे जलभरों (एक्वीफर) में भी रिस सकते हैं और उन्हें प्रदूषित कर सकते हैं। इसलिए, यह संभव है कि भूजल का उपयोग जिलों में कैंसर के मामलों को बढ़ा रहा हो।
किसानों का कहना है कि पिछले दशकों में राज्य में कीटनाशकों (जो रिसाव के माध्यम से भूजल को भी प्रदूषित करते हैं) का उपयोग कम हो गया है, लेकिन सरहिंद को प्रदूषित करने वाले बुड्ढा नाले के प्रदूषित पानी के कारण कैंसर की संख्या में वृद्धि हुई है। फिरोजपुर की हरप्रीत कौर कहती हैं, “गांव के निवासी बुड्ढा नाले से प्रदूषित नहर वाला पानी नहीं चाहते।” फरीदकोट जिले में विशेष बच्चों का केंद्र चलाने वाले डॉक्टर प्रीतपाल सिंह कहते हैं, “नहर के पानी का अध्ययन करने की तत्काल आवश्यकता है।”
वे बताते हैं, “समय का चुनाव सही होना चाहिए। बारिश के बाद नमूनों की जांच करने से गलत परिणाम मिल सकते हैं। बारिश का पानी मौजूदा नहर के पानी के साथ मिल जाता है, जिससे प्रदूषक सांद्रता कम हो जाती है। बारिश के बाद स्थिरीकरण की प्रतीक्षा करने से अधिक सटीक परिणाम मिलते हैं। सूखे मौसम के आंकड़ों की तुलना से तनुकरण (डाइल्यूशन) प्रभाव के बारे में जानकारी मिलती है। विभिन्न क्षेत्रों से नमूने लेने से स्थानीयकृत परिवर्तनशीलता को भी कम किया जा सकता है।”
डाउन टू अर्थ ने प्रदूषित जल के प्रभाव को समझने के लिए मई में पंजाब के चार जिलों के 7 गांवों व कस्बों की यात्रा की। ये जिले हैं लुधियाना (जहां से बुड्ढा नाला निकलता है), फिरोजपुर (जहां से सरहिन्द फीडर नहर पानी की आपूर्ति किए बिना गुजरती है), फजिल्का और मुक्तसर (नहर का पानी प्राप्त करने वाले जिले)। जिन लोगों से डाउन टू अर्थ ने बात की, उनमें से अधिकांश ने कहा कि कैंसर, मानसिक अपंगता और ऑर्गन डैमेज के मामले बढ़ रहे हैं।
जिला फजिल्का
मस्तिष्क से संबंधित समस्याएं, त्वचा रोग, कैंसर आम हैं
डाउन टू अर्थ ने फजिल्का के तीन गांवों का दौरा किया: धरांगवाला, बुर्ज मोहर और चूहड़ी वाला। इन सभी में व्यापक स्वास्थ्य समस्याएं हैं। लगभग 450 परिवारों का गांव धारंगवाला, पीने और सिंचाई के लिए नहर के पानी का उपयोग करता है। 48 वर्षीय किसान राजिंदर सिंह कहते हैं, “गांव में कम से कम 40 बच्चों को मस्तिष्क के विकास से संबंधित समस्याएं हैं, लगभग 1,500 लोगों को त्वचा संबंधी बीमारियां हैं और 2022 में कैंसर ने 13 लोगों की जान ले ली।”
25 वर्षीय मजदूर सुनील कुमार का कहना है कि वह अब काम नहीं कर सकते क्योंकि उनके हाथ और पैर घावों से भर गए हैं। खेतों में काम करने वाले मजदूर सीधे नहर के पानी के संपर्क में आते हैं जिससे उन्हें त्वचा संबंधी गंभीर समस्याएं हो जाती हैं। 60-70 परिवारों वाले एक छोटे से गांव बुर्ज मोहर के निवासी भी ऐसी ही स्थिति में हैं। किसान कुलदीप सिंह कहते हैं, “हम लगभग 10 साल पहले नहर के पानी का उपयोग कर सकते थे, लेकिन अब यह बहुत प्रदूषित है। हम इसका उपयोग केवल सिंचाई के लिए करते हैं।”
केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की “एक्विफर मैपिंग एंड मैनजमेंट प्लान: फिरोजपुर एंड फजिल्का डिस्ट्रिक्ट, पंजाब ” के अनुसार, गांव वाले भूजल पीने के लिए मजबूर हैं, जो काफी हद तक अनुपयुक्त है। एडवांस्ड जियोकेमिस्ट्री में 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, फाजिल्का के दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों में भूजल का टीडीएस 1,000 मिलीग्राम/लीटर से ऊपर है।
इंडोर एंड बिल्ट एनवायरनमेंट में प्रकाशित 2016 के एक अध्ययन के अनुसार, भूजल में आर्सेनिक की सांद्रता 20 एमजी/एम3 और सीसे की 40 एमजी/एम3 है, जो स्वीकृत सीमा से ऊपर हैं। इससे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। 61 वर्षीय किसान कुलदीप सिंह कहते हैं, पिछले 10-12 वर्षों में गांव में कैंसर के कारण लगभग 29 लोगों की मौत हो गई है।
उनकी पत्नी पुष्पिंदर कौर को 2017 में स्तन कैंसर का पता चला था और उनके बेटे तिजिंदर सिंह को बोलने में समस्या है। 40 वर्षीय मैकेनिक जसकरन ने 2018 में अचानक चलने की क्षमता खो दी और अब उनका कमर से नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त है। कुलदीप कहते हैं, “हालात ऐसे हैं कि 50 साल की उम्र के लोगों को खड़े होने में परेशानी होती है।” चूहड़ी वाला, 1,100 घरों और 15,000 निवासियों वाला एक अपेक्षाकृत बड़ा गांव है, जहां मुख्य रूप से नहर के पानी का उपयोग होता है।
एक सामाजिक कार्यकर्ता जैत कुमार बताते हैं कि उनके घरों में पानी की आपूर्ति प्राइमरी फिल्ट्रेशन के बिना की जाती है। वह बताते हैं, “कई निजी व्यवसाइयों ने पानी बेचना शुरू कर दिया है और वे बीस लीटर पानी के दस रुपए लेते हैं। लगभग 100 घर निजी व्यवसाइयों से पानी खरीदते हैं।” गांव में बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में कमी के कई मामले हैं। 18 वर्षीय निवासी करनजीत के सरकारी प्रमाणपत्र के अनुसार वे 100 प्रतिशत विकलांगता के साथ सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित हैं। दो भाई, 19 साल का विनोद और 11 साल का दीपू भी इसी हाल में हैं।
शहरों में भी बीमारियां और मौतें देखी जा सकती हैं। फाजिल्का के अबोहर शहर में किराने की दुकान चलाने वाले मनमोहन गोयल ने पिछले दशक में कैंसर के कारण अपनी मां और बड़े भाई को खो दिया है। शहरों में भी बीमारियां और मौतें देखी जा सकती हैं। सर्कुलर रोड (जहां वह रहते हैं) को बोलचाल की भाषा में कैंसर स्ट्रीट कहा जाता है, जहां 65 घरों वाली एक गली में लगभग 20 कैंसर रोगी रहते हैं।
जिला मुक्तसर
2022 में एक गांव में कैंसर से 20 से अधिक मौतें
2,000 लोगों की आबादी वाले गांव पक्की टिब्बी के निवासी पीने के लिए भूजल का उपयोग करते हैं। फोटोग्राफर और गांव के निवासी त्रिलोचन सिंह कहते हैं, “20-25 साल पहले नहर का पानी बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता था, लेकिन अब हम हर दूसरे दिन नहर में जानवरों के शव तैरते देखते हैं।” हालांकि, सीजीडब्ल्यूबी रिपोर्ट के अनुसार, भूजल पीने के लिए उपयुक्त नहीं है। एनवायर्नमेंटल एडवांसेज में प्रकाशित 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, मुक्तसर जिले में फ्लोराइड का स्तर स्वीकृत सीमा से अधिक है।
त्रिलोचन सिंह कहते हैं, “पिछले साल गांव में कैंसर से 20-25 मौतें हुई हैं।” पक्की टिब्बी में स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र की सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी सुनीता कहती हैं, “गांव में हृदय रोग, कैंसर और क्रोनिक फेफड़ों की बीमारी सहित गैर-संचारी रोगों के 65 सक्रिय मामले हैं।” वेलनेस सेंटर में कोई डॉक्टर नहीं है और निवासी इलाज के लिए गांव से लगभग 17 किमी दूर अबोहर शहर जाते हैं।
जिला फिरोजपुर
स्थानीय लोगोें का कहना है कि एक डिस्टिलरी भूजल को नष्ट कर रही है
जिले के लगभग 40 गांवों के लिए भूजल ही पानी का एकमात्र स्रोत है। इन गांवों के निवासियों का कहना है कि 2008 से काम कर रही एक डिस्टिलरी, मालब्रोस इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड प्रदूषण के किसी भी अन्य कारक से अधिक जिम्मेदार है। जीरा शहर की निवासी हरप्रीत कौर कहती हैं, “कंपनी ने रिवर्स बोरिंग करके भूजल को प्रदूषित कर दिया है। इस प्रक्रिया में अनुपचारित अपशिष्टों को भूमिगत एक्वीफरों में डाल दिया जाता है।”
उन्होंने बताया कि पिछले 11 महीनों में 40 गांवों में कैंसर और किडनी की समस्याओं के कारण छह-सात लोगों की मौत हो गई है। फैक्ट्री से लगभग 2 किमी दूर स्थित सुधीवाला गांव के 48 वर्षीय किसान जगदेव सिंह को चार साल पहले गले के कैंसर का पता चला था। वह कहते हैं, “डॉक्टर ने मुझे बताया है कि मेरी हालत के लिए प्रदूषित पानी जिम्मेदार है।”
मई 2023 में जारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार, डिस्टिलरी इकाई में और उसके आसपास जांचे गए 29 बोरवेलों में से किसी का भी पानी पीने के लिए उपयुक्त नहीं था। लगभग 10 साल पहले, पंजाब के जल आपूर्ति व स्वच्छता विभाग ने कई गांवों में निजी कंपनियों द्वारा संचालित 1,000 से अधिक रिवर्स ऑस्मोसिस जल उपचार (आरओ) संयंत्र स्थापित किए थे।
डाउन टू अर्थ ने जिन भी गांवों का दौरा किया उनमें ये संयंत्र थे, लेकिन केवल पक्की टिब्बी में ही एक संयंत्र चालू था। अधिकांश गांवों में संयंत्र या तो गांव के निवासियों की पहुंच से बहुत दूर थे या दिन भर में केवल थोड़ी अवधि के लिए पानी की आपूर्ति करते थे। इसके कारण लोग अन्य स्रोतों पर निर्भर रहते थे। जो लोग रिवर्स ऑस्मोसिस इकाइयां खरीद सकते हैं, उन्होंने अपने घर में लगा लिया है। बाकी लोग भूजल या नहर के पानी पर निर्भर हैं।