इंग्लैंड में चल रहे क्रिकेट के विश्व कप महाकुंभ के कारण भारत में भी इन दिनों चिलचिलाती गर्मी में भी क्रिकेट का बुखार आमजन के सिर चढ़ कर बोल रहा है। लेकिन इस क्रिकेट को खेलने के लिए भी एक मैदान और ऐसा शहर चाहिए, जहां वायु प्रदूषण न के बराबर हो। अन्यथा उससे न केवल खिलाड़ी प्रभावित होते हैं बल्कि उसे देखने पहुंचे दर्शक भी कम प्रभावित नहीं होते। ध्यान रहे कि दिसंबर, 2017 में दिल्ली टेस्ट मैच के दौरान क्रिकेट के मैदान पर मास्क पहनकर खेलते हुए श्रीलंकाई खिलाड़ियों की तस्वीरों ने जो बहस छेड़ी थी, उसकी गूंज अब भी बरकरार है। ऐसे में जब कल 5 जून को भारत सहित पूरा विश्व पर्यावरण दिवस मनाएगा तो भारत के इस सबसे लोकप्रिय खेल को भविष्य में जिंदा रखने के लिए केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी वायु प्रदूषण के खराब होते मानक पर विशेष रूप से विचार करना होगा।
भारत में धर्म का रूप अख्तियार कर चुके क्रिकेट के लिए यह यक्ष प्रश्न इन दिनों चहुंओर क्रिकेट भक्तों के बीच बहस का मुद्दा अब भी बना हुआ है। सब इसी बहस में उलझे हैं कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे महानगर क्या प्रदूषण से घिरे होने के कारण बड़े क्रिकेट मैचों के आयोजन सेभविष्य में हाथ धो बैठेंगे?
वायु प्रदूषण की मार से क्या भारत अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की पिच पर क्लीन बोल्ड हो जाएगा? भारत में आमजन का खेल बन चुके क्रिकेट की साख परवायु प्रदूषण का संकट तेजी से बढ़ रहा है। सबसे ज्यादा परेशानी उन प्रायोजक कंपनियों की है जो इस खेल और इसके खिलाड़ियों की ब्रांडिंग में खजाना खोल कर बड़े मुनाफे का गुणा-भाग कर चुकी हैं। आम क्रिकेट प्रेमी से लेकर इससे जुड़े बाजार का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद यानी आईसीसी वायु प्रदूषण के मानक तय किए हैं लेकिन उनका कठोरता से पालन नहीं किया जा रहा है।
ध्यान रहे कि इन दिनों चल रहे विश्व कप क्रिकेट में बारिश और रोशनी कम होने की स्थिति के लिए तो नियम-कायदे बनाए गए हैं। लेकिन विश्व में खेले गए पहले टेस्ट मैच (15 मार्च, 1877) के बाद से अब तक के 140 साल के क्रिकेट के इतिहास में पहली बार वायु प्रदूषण को लेकर नियम लागू करने, मानक तय करने की बात अब तेजी से अपना सिर उठा रही है। वायु प्रदूषण की पड़ी मार के असर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब दिल्ली टेस्ट मैच में श्रीलंकाई क्रिकेटरों ने वायु प्रदूषण की शिकायत करने के बाद आईसीसी ने अपना बयान जारी कर कहा था, “हमने इस बात पर ध्यान दिया है कि दिल्ली में टेस्ट मैच किन हालात में खेला गया।
साथ ही, हमने पहले से ही अपनी चिकित्सीय कमेटी को यह मुद्दा भेज दिया है, जिससे भविष्य में इस तरह के मुद्दे से निपटने के लिए दिशा-निर्देश और मानक तय किए जा सकें। कोटला टेस्ट मैच में श्रीलंकाई खिलाड़ी प्रदूषण से निपटने के लिए चेहरे पर मास्क पहने दिखाई पड़े थे। यह एक ऐसी तस्वीर थी, जो पहले कभी क्रिकेट के इतिहास में मैदान पर तो नहीं ही देखी गई थी।”
क्रिकेट मुश्किल में
प्रदूषण के कारण भारतीय क्रिकेट मुश्किल में पड़ सकता है, यह सवाल सुनकर राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व उपाध्यक्ष विवेक व्यास ने लगभग झल्लाते हुए कहा, “यह भारत के लिए शर्म की बात है कि श्रीलंका जैसा छोटा देश भारत में आकर प्रदूषण को लेकर इतना हल्ला मचा गया कि लगभग टेस्ट मैच रद्द होते-होते बचा। इसके लिए पूरी तरह से प्रशासन जिम्मेदार है। आखिर जिस देश में क्रिकेटरों को भगवान का दर्जा हासिल हो, वहां अब वक्त आ गया है कि वायु प्रदूषण जैसे मामलों पर भी नियम कायदा बने। अखिर यह अब यह खेल न हो कर यहां धर्म बन गया है। इस धर्म को बचाने के लिए तो सरकार को कुछ न कुछ कड़े कदम अवश्य उठाने होंगे।
ध्यान रहे कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड पहले से ही इस बात का ऐलान कर चुका है कि भविष्य में नवंबर और दिसंबर के दौरान दिल्ली को अंतरराष्ट्रीय मैचों की मेजबानी से वंचित किया जा सकता है। हालांकि व्यास का कहना था कि वायु प्रदूषण के कारण क्रिकेट को बंद नहीं किया जा सकता, बस उसे किसी दूसरी जगह पर जरूर स्थानांतरित किया जा सकता है।
वहीं, उत्तर प्रदेश के पूर्व रणजी खिलाड़ी विश्वजीत सिंह का कहना है, “भारतीय क्रिकेट में पैसा इतना अधिक है कि वह वायु प्रदूषण जैसे बड़े मुद्दे को भी कमजोर कर देगा। हालांकि, आईसीसी ने वायु प्रदूषण के मानक बनाने की घोषणा की है लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि वह विश्व क्रिकेट में भारतीय क्रिकेट बोर्ड के दबदबे से अपने को निकाल कर कितना सही मानक तैयार कर पाती है।” वह बताते हैं, “ वायु प्रदूषण का असर तो खेल पर पड़ता ही है, जहां तक प्रदूषण के कारण भारत में क्रिकेट बंद हो जाए यह संभव नहीं है। आखिर यह भारतीयों की नस-नस में बस गया है।
आईसीसी अगर कोई मापदंड बनाती भी है तो इसके लिए एक ही हल है। जैसे कि दिल्ली का फिरोजशाह कोटला क्रिकेट मैदान जो कि एक ऐसे स्थान पर स्थित है, जहां सबसे अधिक प्रदूषण का स्तर पूरे साल भर बना रहता है। ऐसे में शहर के बाहरी इलाके में स्टेडियम स्थानांतरित किए जाने की जरूरत है। हो सकता है, नए मापदंड बनने के बाद दिल्ली जैसे और सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में मैच नहीं कराए जाएं।” सिंह ने कहा, “जहां तक बाहरी देशों के प्रदूषण के कारण भारत आने की बात है तो वे पैसे के कारण मना करने की स्थिति में तो कतई नहीं हैं। लेकिन वे जरूर कह सकते हैं कि हम इन-इन स्थानों पर मैच नहीं खेलेंगे। उदाहरण के लिए फिरोजशाह कोटला की जगह ग्रेटर नोएडा में बने स्टेडियम में खेल सकते हैं।
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