सेंटर फॉर साइंस एंड इनवॉयरमेंट (सीएसई) ने अपने ताजा अध्ययन में कहा है कि दिल्ली को वायु प्रदूषण से तभी मुक्ति मिल सकती है जब वह अपने यहां मौजूदा स्थितियों में 65 फीसदी प्रदूषण को घटा दे। सीएसई का यह अध्ययन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ओर से संसद में पेश किए गए वार्षिक वायु गुणवत्ता आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है।
सीएसई के मुताबिक विस्तृत स्वच्छ हवा कार्ययोजना और ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान की पहल के बाद से वायु प्रदूषण में कमी के और स्वच्छ हवा गुणवत्ता सूचकांक वाले दिनों की बढ़ोत्तरी के शुरुआती संकेत मिले हैं। वहीं, स्मॉग जैसी गतिविधियों में भी बदलाव आया है।
संसद में सीपीसीबी की ओर से पेश किए गए तीन वर्षों के वायु गुणवत्ता आंकडो़ं के मुताबिक 2016 से 2018 के दौरान पार्टिकुलेट मैटर 2.5 में 2011-2014 की तुलना में 25 फीसदी कमी आई है। हालांकि, सीएसई ने प्रदूषण में इस कमी के दावे के बाद आगाह किया है कि दिल्ली को स्वच्छ हवा हासिल करने के लिए मौजूदा बेसलाइन से करीब 65 फीसदी प्रदूषण को कम करना होगा।
सीएसई की कार्यकारी निदेशक (रिसर्च एंड एडवोकेसी) अनुमिता रॉय चौधरी ने 25 फीसदी की कमी को लेकर कहा है कि प्रदूषण में यह रुकावट विभिन्न क्षेत्रों में हस्तक्षेप के बाद संभव हुआ है। मसलन वाहनों से लेकर औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण का यह परिणाम है।
सीएसई ने कहा कि पेटकोक और फर्नेस ऑयल जैसे प्रदूषणकारी ईंधन को चरणबद्ध हटाने का फैसला हो या फिर दिल्ली में कोयला आधारित प्लांट को बंद किया जाना साथ ही ईंट-भट्ठों की चमनियों को जिग-जैग बनाने व कचरे से जैसे कदमों ने भी प्रदूषण की स्थिति में सुधार पैदा किया है।
हालांकि 65 फीसदी तक प्रदूषण में कमी के लिए काफी सख्त कदम उठाने होंगे। दिल्ली की तरह अन्य शहरों को भी परिवहन की व्यवस्थाओं में परिवर्तन जैसे कदमों को उठाना होगा। वहीं, दिल्ली और अन्य शहरों को स्वच्च हवा के लिए तीसरी पीढ़ी के लिए कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए। राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत हालिया बैठक में सीएसई ने अगले कदमों के लिएकदम उठाने का खाका भी पेश किया है।