दिल्ली-एनसीआर वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग: आदेश से अध्यादेश तक
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आस-पास के इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग के गठन को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक नए अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस कदम ने एक झटके में उन सभी समतियों और प्राधिकरणों को खत्म कर दिया है जो कि न्यायिक या प्रशासनिक आदेशों के आधार पर बनी थीं।
यह अध्यादेश न्यायिक भूमिका को सीमित करते हुए एनसीआर में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए एक अतिकेंद्रित फ्रेमवर्क का निर्माण करता है। क्योंकि यह अध्यादेश वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए कार्यपालकों की भूमिका और जिम्मेदारी को बढ़ाता है। तो यह तलब भी जगती है कि आखिर कठिन निर्णयों पर यह कार्यपालक कैसे कदम बढ़ाएंगे?
एयर-शेड स्तर पर वायु प्रदूषण के निदान की जरूरत को पहचानते हुए यह अध्यादेश निगरानी, प्रदूषण स्रोतों को हटाने और प्रभावी तरीके से अनुपालन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की बात करता है। आयोग को यह शक्ति भी दी गई है कि वह केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बहुक्षेत्रीय योजनाओं को लेकर समन्वय स्थापित करे, जिसमें इंडस्ट्री, पावर प्लांट, एग्रीकल्चर, परिवहन, आवासीय और निर्माण संबंधी मसले भी शामिल हों।
सबसे ध्यान देने लायक बात यही है कि वायु प्रदूषण मामलों में यह न्यायिक भूमिका को सीमित करने का एक प्रयास है और दावा किया गया है कि कार्यपालक की भूमिका और चुने हुए प्रतिनिधियों की शक्ति का इस्तेमाल बढ़ाया जाएगा।
अध्यादेश कहता है "प्रभावी अमल के लिए उच्चस्तरीय निगरानी" और यह आयोग चुने हुए प्रतिनिधियों की देखरेख में काम करेगा जिसे संसद को नियमित रिपोर्ट देनी होगी। इसे कैसे लागू किया जाएगा, इस सर्वोच्च संरचना के संघीय ढांचे में यह अभी तक स्पष्ट नहीं है।
यद्यपि भले ही आयोग की सदस्यता में प्रमुख मंत्रालय और राज्य सरकारें, केंद्र सरकार के सचिव व राज्य सरकारों के मुख्य सचिव शामिल होंगे जिन्हें दिशा निर्देश जारी करने और शिकायतों को दर्ज करने के लिए केंद्रीय राजनीतिक निरीक्षण की आवश्यकता होगी।
यह भी स्पष्ट नहीं है कि राज्य सरकारें अपने क्षेत्रों में निर्णय लेने के लिए शक्तियों का इस्तेमाल कैसे कर पाएंगी। अध्यादेश कहता है कि कोई भी अन्य व्यक्ति, संस्था या प्राधिकरण जो संसद के जरिए गठित की गई है या राज्य सरकार या न्यायिक आदेशों के जरिए नामित की गई है वह उस अध्यादेश के द्वारा कवर किए जाने वाले मामलों में न्यायाधिकार के आधार पर कार्रवाई करेगा। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि राज्य सरकारे इस पर क्या प्रतिक्रिया देंगी।
सर्वोच्चता की टकहराट
हर कोई अच्छे शासन और प्रभावी कार्यपालन के विचार को पसंद करता है। यदि क्षेत्रीय स्तर पर वायु की स्वच्छता के लिए यह सरकार और उसकी शक्तियों की भूमिका को दोबारा परिभाषित करने का अवसर है तो यह गौर करने वाला है कि अभी तक ऐसी कौन सी चीज थी जिसने कार्यपालकों को मौजूदा कानूनों के फ्रेमवर्क में काम करने से रोक रखा था।
मिसाल के तौर पर पर्यावरण संरक्षण कानून, 1986 या वायु कानून, 1981 जैसे कानून क्यों नहीं स्वच्छ हवा के लिए सफल हो सके। या इन्हें जमीन पर क्यों नहीं उतारा गया जब इनके विस्तार और तेजी की जरूरत थी। दिल्ली-एनसीआर में न्यायिक भूमिका की क्यों जरूरत पड़ी?
इसलिए यह जानने में और अधिक रुचि है कि कार्यपालक अब कैसे समाधान को आगे बढ़ाएंगे जो कि एक नजदीक लटकते हुए फल को लपकने से ज्यादा कठिन है, जिसे पहले ही लपक लिया गया है। यहां तक कि जो भी अभी तक कदम उठाए गए हैं, जिनमें कुछ बेहद कठिन थे उन्हें सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की बैकिंग से ही अमल में लाया जा सका है। इनमें जीने के अधिकार जैसे संवैधानिक प्रावधानों की वजह से भी यह संभव हुआ। सुप्रीम कोर्ट गठित पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) की सिफारिशें और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों ने कई विरोध और प्रतिरोध झेले हैं जिसने प्रायः उठाए गए कदमों को कमजोर और धीमा किया है।
इनमें सार्वजनिक परिवहनों के लिए सीएनजी (कंप्रेस्ड नैचुरल गैस) हो या फिर ट्रकों की आवाजाही का प्रतिबंध, पावर प्लांट को बंद करने की सिफारिश, स्वच्छ ऊर्जा नीति और पेटकोक व फर्नेस ऑयल पर प्रतिबंध, उद्योगों के लिए नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर स्टैंडर्ड तय करने का मामला, भारत स्टेज 6 ईंधन को लागू कराना, बसों के लिए योजना, आरआरटीएस और दिल्ली मेट्रो 4 परियोजना, पार्किंग पॉलिसी शामिल हैं। यह सब कुछ बिना किसी वित्तीय और ईपीसीए की कर्मचारी के सपोर्ट के ही हुआ।
बहुक्षेत्रीय व्यापक कार्ययोजना और ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के तहत हर कार्य में या तो रणनीति बनाई जा रही है या जरूरत के मुताबिक रणनीति तैयार करने की क्षमता में कमी के कारण देरी हो रही है। जैसा कि आयोग अब एजेंडा को आगे बढ़ाता है तो गहरी दिलचस्पी यह जानने में होगी कार्यपालक कैसे तत्काल समाधान करते हैं, क्या वे क्षेत्रीय सुधारों और निवेशों में तेजी ला सकते हैं और प्रभावी अनुपालन और एक निवारक ढांचा सुनिश्चित कर सकते हैं।
तैयार रहिए कठिन कदमों के लिए
इस मोड़ पर कार्यपालिका के लिए असली चुनौती यह होगी कि वह कम से कम 60 फीसदी पार्टिकुलेट प्रदूषण को कम करने के लिए उनकी तैयारी कितनी है और कठिनाई व असुविधाजनक समाधानों को वे धक्का कैसे देंगे। यह कैसे होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने एनसीआर में पावर प्लांट के मानकों की समय सीमा 2022 तक बढ़ा दी है। वहीं, कार्यकारी को डिस्कॉम और बिजली मूल्य निर्धारण सुधारों, पुराने संयंत्रों को बंद करने और प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकियों में निवेश करने से संबंधित क्षेत्र के लिए आर्थिक सुधार पैकेज को डिजाइन करना होगा और प्रक्रिया को प्रोत्साहित करना होगा।
क्या अब हम उम्मीद कर सकते हैं कि पावर प्लांट के मानकों को लागू करने में देरी करने वाली याचिका को रद्द कर दिया जाएगा। कुछ दिन पहले ही पर्यावरण मंत्रालय ने बिजली संयंत्रों के लिए नाइट्रोजन ऑक्साइड मानकों को कम कर दिया है। क्या अब हम केंद्र सरकार से गुड्स एंड सर्विस टैक्स के तहत प्राकृतिक गैस मूल्य निर्धारण लाने की उम्मीद कर सकते हैं ताकि उद्योग और बिजली संयंत्रों को सस्ती स्वच्छ ईंधन और प्रभावी ढंग से कोयले के उपयोग की सुविधा मिल सके?
एनसीआर सार्वजनिक परिवहन कनेक्टिविटी, चलने और साइकिल चलाने के बुनियादी ढांचे और वाहन प्रतिबंध उपायों में बड़े पैमाने पर उपायों की प्रतीक्षा कर रहा है। वहीं, राज्य और केंद्र सरकारों को आरआरटीएस और मेट्रो फेज IV पर सहमति बनवाने के लिए ईपीसीए के लिए यह अब तक की लड़ाई रही है। इस क्षेत्र के लिए कोई रूपरेखा या रोडमैप नहीं है।
इसी तरह, यदि सभी राज्य सरकारें कचरा प्रबंधन के लिए केंद्रीय नियमों और विनियमों के आधार पर नगरपालिकाओं को उपनियमों में संशोधन नहीं करवा सकती हैं और अपशिष्ट प्रबंधन में जरूरी बुनियादी ढांचे के लिए पर्याप्त धन नगर निगमों को नहीं आवंटित करती हैं तो कचरा जलाना क्यों रुकेगा? यहां तक कि गहरी दिलचस्पी अनुपालन और निवारक ढांचे में है। इस समय, यह अध्यादेश निरीक्षण का अधिकार प्रदान करता है, जिसमें गैर-अनुपालन वाली स्थिति के लिए दंडात्मक कार्रवाई है। इसमें पांच साल तक का कारावास या एक करोड़ रुपये का राजकोषीय जुर्माना शामिल है।
यदि आयोग शिकायत करता है तभी आपराधिक अभियोजन संभव है। अब तक, राष्ट्रीय वायु अधिनियम के तहत आपराधिक मुकदमा चलाना बेहद कठिन रहा है। इसके लिए पूरे क्षेत्र में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज जवाबदेही की स्थापना की आवश्यकता होगी। इसके अलावा कोविड-19 की स्थिति के बाद विशेष तौर पर ख्याल रखना होगा। ताकि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और स्वतः दिए जाने वाले पर्यावरण मंजूरियां क्षेत्र को किसी तरह से प्रभावित न करें। नया कदम सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट पर तत्काल ध्यान केंद्रित करता है जो इसके योग्य है। लेकिन स्पष्ट रूप से, उम्मीद यह है कि कार्यकारी नई चुनौती पर आवश्यक कठोर समाधानों को लागू करने में खरा उतरे ताकि हमारी हवा और फेफड़े दोनों स्वस्थ्य हों।