लॉकडाउन के बाद यातायात का दबाव सहने के लिए तैयार नहीं है दिल्ली :  सीएसई

कोविड-19 के दौरान व्यस्त यातायात और वायु प्रदूषण से मिली राहत बरकरार नहीं रह सकी
राजधानी दिल्ली में एक बार फिर यातायात काफी बढ. गया है। फोटो: विकास चौधरी
राजधानी दिल्ली में एक बार फिर यातायात काफी बढ. गया है। फोटो: विकास चौधरी
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नोवेल कोरोनावायरस (कोविड-19) के प्रसार पर रोकथाम के लिए लगा लॉकडाउन हटने के बाद राष्ट्रीय राजधानी में यातायात फिर से खासा बढ़ चुका है। लेकिन यातायात के स्तर में कमी के लिए जरूरी बदलावों के लिए शहर अभी तक तैयार नहीं हैं।

नई दिल्ली के गैर लाभकारी संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने दिल्ली में लॉकडाउन से पहले, लॉकडाउन के दौरान और लॉकडाउन के बाद यातायात के रुझानों पर एक विश्लेषण जारी किया है। इसमें खुदरा और मनोरंजन, किराना और फार्मेसी, पार्क, पारगमन स्टेशन, कार्यस्थलों के साथ ही आवासीय के रूप में वर्गीकृत स्थानों पर जाने वालों की विभिन्न श्रेणियों पर गूगल मोबिलिटी रिपोर्ट से मिले डाटा की सहायता से बदलाव पर गौर किया गया है।

सीएसई ने भीड़भाड़ के स्तर को समझने के लिए गूगल से मिले यातायात की गति से जुड़े डाटा पर भी गौर किया है, जिसका वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर गहरा असर होता है।

विश्लेषण से पता चला कि लॉकडाउन के दौरान सभी तरह की आर्थिक गतिविधियां बंद होने से व्यस्त यातायात और वायु प्रदूषण से अस्थायी रूप से राहत मिली थी, लेकिन यह स्थिति बरकरार नहीं रह सकी।

विश्लेषण से सामने आया कि लॉकडाउन के बाद यात्राएं लगभग सामान्य स्तर पर पहुंच गईं, लेकिन यह पूरी तरह से लॉकडाउन के पहले के स्तर पर नहीं पहुंचीं। उदाहरण के लिए, किराना खरीदारी और कार्यस्थल पर जाने के मामलों में ज्यादातर नवंबर के अंत में ही बढ़ोतरी दर्ज की गई और अब यह लॉकडाउन से पहले की तुलना में सिर्फ लगभग 15 प्रतिशत ही कम है। लॉकडाउन के दौरान किराना और फार्मेसी के लिए बाहर निकलने के मामलों में 70 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आ गई थी।

गंवाई बढ़त

सीएसई के विश्लेषण से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था के खुलने के साथ यातायात की गति धीरे-धीरे कम हुई है, जिसमें लॉकडाउन के दौरान नाटकीय रूप से सुधार दर्ज किया गया था।

लॉकडाउन से पहले शहर के 12 प्रमुख भागों पर यात्रा की गति 24 किलोमीटर प्रति घंटा थी, जो लॉकडाउन के दौरान बढ़कर 46 किलोमीटर प्रति घंटा हो गई। यह 90 प्रतिशत की बढ़ोतरी थी।

लेकिन लॉकडाउन के बाद की अवधि में यह घटकर फिर से 29 किलोमीटर प्रति घंटा (36 प्रतिशत कमी) रह गई।

व्यस्त यानी भीड़भाड़ वाले समय के दौरान चुनिंदा भागों पर यात्रा की गति लॉकडाउन से पहले 23 किलोमीटर प्रति घंटा थी, जो लॉकडाउन के दौरान बढ़कर 44 किलोमीटर प्रति घंटा (89 प्रतिशत बढ़ोतरी) हो गई। लेकिन लॉकडाउन के बाद यह फिर से घटकर 27 किलोमीटर प्रति घंटा (38 प्रतिशत कमी) रह गई।

विश्लेषण के मुताबिक, लॉकडाउन की तुलना में लॉकडाउन के बाद गति में औसत 42 प्रतिशत की कमी आई है। (पहली छमाही में किसी भी समय की तुलना में कम)

विश्लेषण में सामने आया कि सार्वजनिक परिवहन में कम सवारियों और परिवहन के कम विकल्पों के बावजूद यातायात में बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसमें कहा गया कि सामाजिक दूरी के मानकों के चलते सार्वजनिक परिवहन और सीमित होने का अनुमान है।

मीडिया में आई ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली मेट्रो में सवारियों की संख्या 9-10 लाख प्रतिदिन तक ही पहुंच सकी है, जबकि महामारी से पहले यह 55-60 लाख सवारियों के स्तर पर थी।

विश्लेषण के मुताबिक :

  • दिल्ली मास्टर प्लान 2020-21 वर्ष 2020 तक 80 फीसदी सार्वजनिक परिवहन सवारी (राइडर शिप) हासिल करने के लक्ष्य से चूक गया है। केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा दिल्ली डिकंजेंशन प्लान को उचित स्तर पर लागू नहीं किया गया। शहर को 10,000-15,000 बसों की जरूरत है, लेकिन फिलहाल सिर्फ 6,261 बसें ही हैं।
  • वायु के खराब स्तर को ठीक करने के लिए आर्थिक सुधार के तहत, बस परिवहन के पुनरुद्धार के लिए राहत पैकेज की आवश्यकता है।
  • संपर्क मुक्त यात्रा सुनिश्चित करने के लिए टहलने और साइक्लिंग से संबंधित बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराने और व्यक्तिगत वाहनों पर निर्भरता को कम करने पर ध्यान देने की जरूरत है।
  • दिल्ली ने यात्रा मांग प्रबंधन के लिए सबसे पहले पार्किंग नियम अधिसूचित करने में बढ़त हासिल कर ली है, लेकिन इसके कार्यान्वयन के आदेश को शहर भर में लागू करने की जरूरत है।

सीएसई की कार्यकारी निदेशक (रिसर्च और एडवोकेसी) अनुमिता रॉय चौधरी ने कहा, सार्वजनिक परिवहन, टहलने और साइक्लिंग के विकल्पों में बदलाव तथा पार्किंग प्रबंधन क्षेत्र योजना को शहर भर में लागू करने जैसे वाहनों की संख्या में कमी लाने से जुड़े उपाय व्यापक स्तर पर लागू करने की खासी गुंजाइश है और अधिसूचित पार्किंग नियम अभी तक सीमित व अपर्याप्त रहे हैं। दिल्ली में हुए अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि शहर के कुल प्रदूषण में वाहन लगभग 40 प्रतिशत योगदान करते हैं।

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