आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पारंपरिक चूल्हों की तुलना में उन्नत कुकस्टोव कहीं ज्यादा मात्रा में प्रदूषण के अत्यंत महीन कणों का उत्सर्जन करते हैं। देखा जाए तो इन उन्नत चूल्हों का विकासशील देशों में खाना पकाने के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। लेकिन हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ सरे ने अपने अध्ययन में इस बात की पुष्टि की है कि यह उन्नत कुकस्टोव पारंपरिक चूल्हों की तुलना में करीब दो गुणा ज्यादा पीएम 0.1 उत्पन्न करते हैं।
हालांकि सरे विश्वविद्यालय के ग्लोबल सेंटर फॉर क्लीन एयर रिसर्च (जीसीएआरई) से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक यह बेहतर चूल्हे सूक्ष्म कणों (पीएम 2.5) के उत्सर्जन को 65 फीसदी तक कम कर सकते हैं, लेकिन साथ ही वो अल्ट्राफाइन कणों के उत्सर्जन को भी बढ़ा सकते हैं। इस रिसर्च के नतीजे जर्नल साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं।
रिसर्च में यह भी सामने आया है कि इन अत्यंत महीन कणों का बड़ा सतही क्षेत्र उन्हें आर्सेनिक, सीसा, नाइट्रेट, सल्फेट और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसी खतरनाक धातुओं और रसायनों की एक महत्वपूर्ण मात्रा को अवशोषित करने देता है। जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक है।
देखा जाए तो दुनिया भर में बढ़ता वायु प्रदूषण आज एक बड़ी समस्या बन चुका है। यह समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज दुनिया की केवल 0.001 फीसदी आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही है जो उसके स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है। मतलब की भारत सहित दुनिया की ज्यादातर आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही है, जो उसे हर दिन बीमार बना रही है।
इस बारे में ग्लोबल सेंटर फॉर क्लीन एयर रिसर्च के निदेशक और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर प्रशांत कुमार का कहना है कि, "दुनिया भर में बढ़ती कीमतों और जीवन यापन के सामने मौजूद कठिनाइयों के चलते कई लोगों को खाना पकाने या घरों को गर्म रखने के लिए लकड़ी, कोयला, पीट और अन्य बायोमास ईंधन का उपयोग करने के लिए मजबूर कर दिया है।
ऐसे में रिसर्च के मुताबिक निकट भविष्य में स्वास्थ्य को इसकी कहीं ज्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है। उन्होंने बताया कि यह अत्यंत महीन कण आसानी से नाक के जरिए घुसपैठ कर सकते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकता है। उनके मुताबिक इसकी कीमत सबसे कमजोर तबके को उठानी पड़ेगी।
सिर्फ कमजोर ही नहीं अमीर देशों को भी प्रभावित कर रही है प्रदूषण की समस्या
देखा जाए तो इन उन्नत चूल्हों को खाना पकाने के दौरान ईंधन की कम खपत के साथ धुंए और हानिकारक उत्सर्जन को कम करने के लिए डिजाईन किया जाता है। इसके साथ ही अक्सर इन्हें पारम्परिक चूल्हों की तुलना में अधिक दक्ष और ईंधन को और बेहतर तरीके से जलाने के लिए डिजाईन किया जाता है।
हालांकि यह पहले से ज्ञात है कि घरों में खाना बनाने और गर्म करने के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके बावजूद अभी भी दुनिया भर में इसके लिए करीब 280 करोड़ लोग खाना पकाने और घरों को गर्म करने के लिए इन सॉलिड फ्यूल्स का उपयोग करते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक यह सिर्फ कमजोर देशों में ही नहीं हो रहा। कुछ अमीर देश भी इन्हें अपना चुके है। उदाहरण के लिए आयरलैंड में करीब 20 फीसदी परिवार ईंधन के रूप में लकड़ी का उपयोग करते हैं। वहीं अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के अनुसार देश में करीब 1.27 करोड़ लोग गर्म करने के लिए लकड़ी का उपयोग कर रहे हैं।
यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों को देखें तो दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी यानी 240 करोड़ लोग मिट्टी का तेल, लकड़ी, फसलों के अवशेष, गोबर, और कोयला आदि की मदद से अपना भोजन तैयार करते हैं, जोकि घरों में हानिकारक वायु प्रदूषण का कारण बनता है। 2020 के आंकड़ों को देखें तो यह प्रदूषण हर साल होने वाली 32 लाख मौतों के लिए जिम्मेवार हैं।
प्रोफेसर प्रशांत कुमार के अनुसार ऐसे में एक डीईएफआरए-अनुमोदित ऐसे स्टोव का विकास अहम है जो दहन दक्षता में सुधार के साथ प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करने के लिए डिजाईन किया जाए।
उनके मुताबिक बढ़ता प्रदूषण स्पष्ट रूप से सभी की समस्या है, जो कमजोर देशों और महाशक्तियों को समान रूप से प्रभावित कर रहा है। ऐसे में उनके अनुसार समाज के केवल कुछ भाग्यशाली लोगों को ही नहीं बल्कि हर किसी के लिए साफ हवा उपलब्ध हो, इसके लिए सभी को एकजुट होने की जरूरत है।