केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 18 मई, 2020 को सीवेज ट्रीटमेंट से सम्बंधित एक रिपोर्ट जारी की है| जिसमें उसने 2023 तक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को उपचारित सीवेज के उपयोग के लिए कार्य योजना को लागू करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही सीपीसीबी ने राज्यों को सीवेज की सही मात्रा का अनुमान लगाने का भी निर्देश दिया है|
साथ ही उसने राज्यों को सीवेज ट्रीटमेंट के लिए पर्याप्त क्षमता के विकास करने की भी बात कही है| जोकि उपचारित सीवेज के उपयोग और उसके लिए कार्य योजना को लागू करने के लिए सबसे जरुरी है| इसके साथ ही रिपोर्ट में इस उपचारित सीवेज का उपयोग करने वालों की पहचान करने को भी कहा गया है| जिसमें अधिक मात्रा में उपयोग करने वालों और औद्योगिक प्रयोग को अलग रखने को कहा गया है|
सीपीसीबी ने एनजीटी से सिफारिश की है कि राज्य या केंद्रशासित प्रदेश इस बाबत जानकारी देने में असफल रहे है, उनपर पर्यावरण की क्षतिपूर्ति के रूप में प्रति माह एक लाख रुपए की दर से जुर्माना लगाया जाए| गौरतलब है कि यह राज्य निम्नलिखित हैं:
यही वजह है कि सीपीसीबी ने इन सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों पर जुर्माना लगाने कि सिफारिश की है|
एनजीटी ने 18 मई को एक संयुक्त समिति का गठन किया है| जोकि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण और भोपाल के कौलुवा गांव में सीवेज के खुले में बहाये जाने सम्बन्धी मामले पर फैसला लेगी और उसका निपटारा करेगी। इस समिति में भोपाल नगर निगम, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला मजिस्ट्रेट के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है|
एनजीटी ने 15 मई को बिहार में नालंदा जिले के ग्राम पोखरपुर के एक होटल और राइस मिल द्वारा नदी को नुकसान पहुंचाए जाने की एवज में पर्यावरण क्षतिपूर्ति के आंकलन और जुर्माना वसूल करने का निर्देश दिया है। इस मामले में होटल ने नदी पर अवैध अतिक्रमण किया था| जबकि राइस मिल द्वारा जल प्रदूषण करने के लिए यह आदेश जारी किया गया है|
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि होटल द्वारा अतिक्रमण के मुद्दे पर आगे और जांच करने की आवश्यकता है।
जबकि राइस मिल के मामले में रिपोर्ट से पता चला है कि उसके अपशिष्ट जल के निपटान के लिए लगाया गया ट्रीटमेंट प्लांट (एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) चालू हालत में नहीं था| साथ ही राइस मिल को जिन शर्तों पर चलाने की छूट मिली थी उसने उनका भी पालन नहीं किया है| इसके साथ ही इस मिल का जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत अपशिष्ट जल निकासी आदेश और वायु (रोकथाम और प्रदूषण पर नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत एमिशन सहमति आदेश भी समाप्त हो गया है, जिसके लिए उसपर कार्रवाई शुरू कर दी गई है।