क्या वायु प्रदूषित स्थान से मैच प्रतिबंधि करना वुय प्रदूषण समस्या का कारगार हल हो सकता है। इस प्रश्न पर भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व टेस्ट सलामी बल्लेबाज तमिलनाडु के सदगोपन रमेश ने बताया, “बीसीसीआई और आईसीसी के लिए वास्तव में वायु प्रदूषण अब एक बड़ी चुनौती बनते जा रही है कि मैच के लिए जगहों को चुनने के लिए वायु प्रदूषण के मानक क्या तय किए जाएंगे। क्योंकि यह एक ऐसा साइलेंट कीलर है जिसे प्रशासन और सरकारों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।” हालांकि बीसीसीआई और आईसीसी की वायु प्रदूषण की पहल की सराहना करते हुए रमेश ने कहा, “खिलाड़ी और खेल के दृष्टिकोण से यह निर्णय सराहनीय है। लेकिन यह कदम भारत जैसे विशाल भूभाग वाले देश में पानी में लाठी मारने जैसा साबित होगा।
वह कहते हैं, “ खिलाड़ी को खेल के दौरान काफी थकान होती है, जिसकी वजह से वह तेजी से सांस लेता है। ऐसे में वायु प्रदूषित वातावरण उसे और उसके प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है। खेल के दौरान मैदान में प्रकाश कम होता है तो उसे जरूरत के अनुसार सही कर लिया जाता है पर प्रदूषण के स्तर को कम कर पाना एक टेढ़ी खीर है।” रमेश ने कहा कि इस मुद्दे पर भारत में क्रिकेट बंद नहीं किया जा सकता है।
प्रदूषण के कारण भारतीय क्रिकेट मैच होने और नहीं होने के सवाल पर भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व मीडिया मैनेजर रहे चेन्नई के आरएन बाबा का कहना है कि यह जरूरी नहीं कि किसी क्षेत्र व स्थान का वायु प्रदूषण स्तर हमेशा एक समान हो। यह परिस्थिति बोर्ड के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। जैसे अगर नियमों के अनुसार, बोर्ड ने किसी मैच के लिए चेन्नई के मैदान का चयन किया। लेकिन अगर वह भोगी-पोंगल के मौके पर पड़ा तो उस दिन का वायु प्रदूषण स्तर बाकी दिनों की अपेक्षा में अधिक रहेगा। ऐसे कई स्थान और हैं, वहां मनाए जाने वाले त्योहार हैं जो वायु प्रदूषण के स्तर को प्रभावित करते हैं।
यही नहीं, कुछ विशेष स्थानों पर विशेष समय में ऐसे कारक होते हैं जो वायु प्रदूषण के स्तर को प्रभावित करते हैं। इस परिस्थिति से निबटने के लिए भी बोर्ड को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
इस मुद्दे पर उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन के वर्तमान सचिव दिव्य नौटियाल का कहना है कि खेलों का स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। जहां कहीं भी खेल हो, वहां पर्यावरण तो साफ-सुथरा होना ही चाहिए। इसलिए प्रदूषण वाले शहरों में क्रिकेट ही नहीं कोई भी खेल प्रतियोगिता आयोजित नहीं की जानी चाहिए। प्रदूषण का असर खिलाड़ियों पर बहुत अधिक पड़ता है।
इस बाबत मोहम्मद कैफ और सुरेश रैना जैसे खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे चुके उत्तर प्रदेश खेल निदेशालय के पूर्व खेल अधिकारी विनय गिल कहते हैं, “आईसीसी यदि ऐसा कोई मानक तैयार करती है तो यह देखना होगा कि वह क्या स्तर रखता है। क्योंकि वास्तविकता यह है कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया में मानकों की अनदेखी की जा रही है। प्रदूषित वातावरण में खेलने से खिलाड़ियों की प्रतिरोधक क्षमता और कमजोर होती जाती है। यह उनके भविष्य के लिए घातक होता है, विशेषकर तेज गेंदबाजों के लिए। वह कहते हैं, “वायु प्रदूषण के कारण भारत जैसे देशों में क्रिकेट बंद करने की कल्पना करना अभी बहुत जल्दबाजी होगी।”
भारतीय क्रिकेट टीम के अंडर-19 टीम के पूर्व कप्तान अमीकर दयाल आईसीसी के प्रस्तावित प्रदूषण मानकों को काफी हद तक सही मानते हैं। उन्होंने बताया, “जब आम आदमी को वायु प्रदूषित शहर में तेज चलने पर सांस लेने में परेशानी होती है तो एक क्रिकेटर के साथ क्या स्थिति होती होगी, यह सोचना जरूरी है।
मैच में पूरे समय सक्रिय रहने वाले क्रिकेटर को सांस लेने में परेशानी होने पर वह एकाग्रता खो सकता है। इसलिए, प्रदूषण पर चिंता स्वाभाविक है।” वे बताते हैं, “बीते साल 8 दिसंबर को दोपहर एक बजे पटना में हवा गुणवत्ता सूचकांक 401 पर था। ठीक इसी समय दिल्ली का सूचकांक 208 पर दिखा। किसी भी स्थिति में पटना का यह प्रदूषण स्तर सीवियर स्तर दिखा रहा था।”
चेन्नई के वरिष्ठ खेल पत्रकार शिलरजी शाह ने कहा, “बोर्ड इस मुद्दे को लेकर काफी देर से जागा है। लेकिन यह अच्छी बात है। जब जागो तभी सवेरा। भारत में वे खिलाड़ी अधिक प्रभावित होते हैं जो बाहर के देश से आते हैं।” प्रदूषण के संबंध में तमिलनाडु के स्वाथ्य सचिव जे. राधाकृष्णन ने कहा, “बीसीसीआई और आईसीसी जैसी संस्थाएं ऐसे कदम उठाती हैं तो यह सराहनीय है क्योंकि खेल के दौरान मैदान में खिलाड़ियों का स्वास्थ्य सबसे अहम होता है। और यह तभी स्वस्थ रह सकता है जब प्रदूषण का स्तर न के बराबर हो।
आईसीसी को कायदे से प्रदूषण के मानक तैयार करते समय किसी दबाव में नहीं आना चाहिए और उसे खेल और खिलाड़ी के हितों को ध्यान में रखकर कड़े प्रदूषण मानक तैयार करना चाहिए। यह देखने वाली बात जरूर होगी कि प्रदूषण से भविष्य में निपटने के लिए आइसीसी क्या मानक तय करती है और ये मानक कब से लागू होते हैं।
समाप्त