कावेरी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक जैसे प्रदूषक मछलियों में पैदा कर रहे हैं विकृति

कावेरी नदी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक जैसे प्रदूषक मछलियों के कंकाल में विकृति पैदा कर रहे हैं। इतना ही नहीं बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण के चलते इनके विकास पर भी असर पड़ रहा है
कावेरी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक जैसे प्रदूषक मछलियों में पैदा कर रहे हैं विकृति
Published on

कावेरी नदी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक जैसे प्रदूषक मछलियों के कंकाल में विकृति पैदा कर रहे हैं। इतना ही नहीं बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण के चलते इनके विकास पर भी असर पड़ रहा है। यह जानकारी हाल ही में भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के मॉलिक्यूलर रिप्रोडक्शन, डेवलपमेंट एंड जेनेटिक्स विभाग से जुड़े प्रोफेसर उपेंद्र नोंगथोम्बा की अगुवाई में किए अध्ययन में सामने आई है जोकि जर्नल इकोटॉक्सिकोलॉजी एंड एनवायर्नमेंटल सेफ्टी में प्रकाशित हुआ है।

वैज्ञानिकों को मछली की कोशिकाओं में असामान्य रूप से आरओएस (रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज) नामक अस्थिर अणु मिले हैं। गौरतलब है कि यह आरओएस अणु मछली के शरीर में विकार पैदा कर सकते हैं। साथ ही जीवों के डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक उन स्थानों पर जहां कावेरी का प्रवाह धीमा है या पानी स्थिर है वहां मछलियों पर वैसा ही असर देखा गया है, जैसे इस अणु आरओएस के चलते जानवरों पर प्रभाव पड़ता है। अन्य शोधों से भी पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक्स और साइक्लोहेक्सिल ग्रुप के केमिकल डीओ को कम कर सकते हैं। जिसके कारण मछली जैसे जीवों में आरओएस के जमा होने में मदद करता है।   

इस बारे में प्रोफेसर नोंगथोम्बा ने बताया कि उन्होंने वर्षों से कृष्णा राजा सागर (केआरएस) बांध के पास कावेरी नदी के तट पर भुनी हुई मछलियों का आनंद लिया है। लेकिन हाल के समय में इन मछलियों में शारीरिक विकृतियां दिख रही हैं। ऐसे में क्या पानी की गुणवत्ता इन मछलियों को प्रभावित कर रही है यह बात उन्हें परेशान का रही थी।

इसे समझने के लिए प्रोफेसर नोंगथोम्बा ने अपने सहयोगियों के साथ केआरएस बांध में प्रदूषण के स्तर और मछलियों पर इसके संभावित प्रभावों का व्यापक अध्ययन किया है। उन्होंने तीन अलग-अलग स्थानों से पानी के नमूने एकत्र किए थे। जहां नदी का प्रवाह अलग-अलग था। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि पानी का प्रवाह प्रदूषण के स्तर को प्रभावित कर सकता है।   

अपने अध्ययन के पहले चरण में उन्होंने पानी के नमूनों की भौतिक और रासायनिक मापदंडों का विश्लेषण किया था। जिसमें एक सैंपल को छोड़कर सभी निर्धारित सीमा के भीतर थे। हालांकि जहां प्रवाह धीमा या स्थिर था वहां से लिए नमूनों में डिसॉल्वड ऑक्सीजन (डीओ) का स्तर अनुमान से कहीं ज्यादा कम था।  साथ ही इन स्थानों में साइक्लोप्स, डैफनिया, स्पाइरोगाइरा, स्पिरोचेटा और ई. कोलाई जैसे रोगाणु भी थे, जिनकी मौजूदगी इस बात का सन्देश देती है कि वहां का पानी प्रदूषित है। 

इसके साथ ही वैज्ञानिकों को रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी की मदद से जांच करने में पानी में माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी का भी पता चला था। प्लास्टिक के यह महीन कण इतने छोटे होते हैं जिन्हें आमतौर पर आंखों से नहीं देखा जा सकता। यह माइक्रोप्लास्टिक्स कई घरेलू और औद्योगिक उत्पादों में पाए जाते हैं।  इसमें मौजूद रसायनों में साइक्लोहेक्सिल होता है। इस समूह में पाया जाने वाला साइक्लोहेक्सिल आइसोसाइनेट, आमतौर पर कृषि और दवा उद्योग में उपयोग किए जाता है।

क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने

शोध के दूसरे चरण में वैज्ञानिकों ने यह जानने का प्रयास किया कि पानी में मौजूद यह प्रदूषक मछलियों के विकास को कैसे प्रभावित कर सकते हैं। उन्हें पता चला कि जिन स्थानों पर पानी का प्रवाह धीमा या स्थिर था वहां जेब्राफिश जैसी जंगली मछलियों के कंकाल में विकृति थी। इसके साथ ही उनके डीएनए को नुकसान पहुंचा था।

इतना ही नहीं प्रदूषण के चलते मछलियों के ह्रदय को नुकसान पहुंचा था और उनके सेल्स समय से पहले नष्ट हो रहे हैं, साथ ही इसके कारण उनकी मृत्युदर में भी वृद्धि दर्ज की गई थी। इस पानी में से रोगाणुओं को हटाने के बाद भी उनके शरीर में विकार देखा गया था, जो दर्शाता है कि मछलियों में पैदा होने वाले इन विकारों के लिए हो न हो माइक्रोप्लास्टिक्स और साइक्लोहेक्सिल फंक्शन ग्रुप्स जिम्मेवार हैं। 

इससे पहले आईआईटी मद्रास द्वारा किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि औषधीय अपशिष्ट, प्लास्टिक, कीटनाशक और आर्सेनिक, जस्ता, क्रोमियम, सीसा और निकल जैसी जहरीली धातुएं कावेरी नदी के जल को जहरीला बना रही हैं। इतना ही नहीं निजी देखभाल से जुड़े उत्पाद, अग्निशामक, प्लास्टिक और कीटनाशक जैसे प्रदूषक भी इस पवित्र नदी को गंदा कर रहे हैं।

ऐसे में इस शोध में सामने आए निष्कर्षों ने इस बात को पुख्ता कर दिया है कि कावेरी नदी के जल में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक और अन्य केमिकल्स नदी में रहने वाले जीवों पर व्यापक असर डाल रहे हैं। हालांकि इंसानों पर इसका क्या असर हो रहा है वो अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन यह प्रदूषण इंसानों के लिए भी हानिकारक है इस बात की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।    

देखा जाए तो यह स्थिति सिर्फ कावेरी की ही नहीं है। आज देश की गंगा, यमुना जैसी कई प्रमुख नदियां उद्योगों और घरों से निकलते दूषित पदार्थों के कारण खतरे में हैं। भले ही इन्हें बचाने के लिए कितने बड़े-बड़े वादे और बातें कि जाए पर सच यही है कि इन नदियों की स्थिति कोई खास अच्छी नहीं है, जिसपर तुरंत ध्यान दिए जाने की जरुरत है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in